सपनो से भरे नैना
तारो सी चमकती रात थी,
खुशियों से झूम रहा था घर मेरा..
चारों ओर जगमगा रही थी रोशनी,
लबों पे सबके खेल रही मुस्कान थी..
सबके लहू में दौड़ रही खुशी की लहर थी,
पर शायद मुझ में ही कोई कमी सी थी..
सब मस्ती में झूम रहे थे,
मौज में घूम रहे थे..
एक मेरी ही आँखे थी,
जो..
इन खुशियों में खुशियाँ ढूँढ रही थी..
कोई गेहने लेके आता कोई कपड़े लेके आता,
मेरे नैना ढूँढ रहे उसको, कि काश कोई सवाल लेके आता.
काश कोई पूछता "क्या तुम खुश हो, इस शादी से?"
पर मेरे नैना तरसते रह गए,
कोई ना आया..
आया वो जिसके संग अब मुझे जाना ही था..
मेरे सपनो से भरे नैना बिखर गए,
जो सपने थे वो टूट गए,
अब कोई उम्मीद ना रही दिल में..
शायद जो सपने देखे मैंने, वो टूटने के लिए ही बने थे..
या शायद मुझे वो देखने का हक़ ही ना था!??
दिल अंदर से झींझोर रहा था,
फिर भी अपने लबों पे मुस्कान लिए,
अपने सपनो को सीने में दफ़न किए,
चल पड़ी हूँ, एक नई शुरुआत की ओर..
इस विश्वास के साथ,
की
शायद अब कोई सपना ना टूटेगा..
- Anamika
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