लौटा दो वो दिन मुझे
लौटा दो वो दिन मुझे,
इस समझदारी से अच्छा,
मुझे वो नादानी लगती है..
इस खामोशी से अच्छा,
मुझे वो बक बक लगती है..
इस कड़वी सच्चाई से अच्छा,
मुझे वो झूठी कहानियां अच्छी लगती है..
इस जिंदगी के बोझ से अच्छा,
मुझे वो किताबों का बोझ अच्छा लगता है..
इस झूठी दुनिया से अच्छा,
मुझे मेरा वो सच्चा बचपन लगता है..
लौटा दो मुझे वो मेरा बचपन,
जहां ना जिम्मेदारियों का बोझ था,
ना झूठ बोलने की बंदिशें..
ना सहने की शक्ति थी,
ना चुप रह जाने की मांग…
ना थी तब बोलने पे पाबंदी,
ना था सलीके का चोला..
ये खुदा, लौटा दे मुझे मेरा वो बचपन
फिर से मैं, मैं बनना चाहती हूँ
बेझिझक बातें कह देना चाहती हूँ,
इस समझदारी के भीड़ से बिछड़ना चाहती हूँ,
उस खुले आसमान में आज़ाद पंछी बनना चाहती हूँ..
एक बार फिर मैं, मैं बनना चाहती हूँ।।।
~अनामिका ~
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