तुम आए नहीं

राह तक तक मुर्झी मेें अपने आंगन के पैर तले,

पर तुम आए नहीं।

सूजे मेरी नैन ये, देखने को तरसे तुम्हें

पर तुम आए नहीं। 

थामी अपनी सांसो को रही निहारती राह तेरी ,

पर तुम आए नहीं। 

जाने क्या कसूर था मेरा जो चलें तुम गए,

और आए नहीं।

गीले शिकवे तो मुझे भी है तुमसे,

फिर भी तेरी यादों मेे सब भुलाये बैठी हूँ,

और तुम, आए नहीं। 

सोचती हूँ अब ज़रा ठहर मैं भी जाऊं,

खुदका साथ ज़रा मैं भी निभाऊं,

क्यूँकि तुम तो आए नहीं।

कोशिश तो खैर की बहुत थी मैंने,

पर मजबूर इस ह्रदय से हुई, जो तेरे मोह से मोहित है, 

दिन बीते, बीते रात, बीती ये रैना,

तुम आओगे नहीं, साफ जाहिर है जैसे कोई आइना,

दिल ये मेरा तू तोड़ गया, तरस भी तुझे आई न,

और तुम भी आए ना!

इंतज़ार मैं तेरा फिर भी करुँगी,

अपने आंगन मेें,

जहाँ तू मुझे लौट आने के वादा कर गए थे,

पर आए नहीं। 

वादे तो वो टुट गए,

मोह के रूप छूट गए,

दिल के झोंके कहीं खो गए,

पर तुम आए नहीं।।

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