प्रेम व प्रेम

•  षष्टः •

जब से तोए देखा,

मौं नाहिं कछुक चेतना,

तैं की प्रेमी,

एक ही दोहाल,

तूँ व मोए मिलन।

जब से तोए देखा

मौं नाहिं कछुक चेतना,

तैं कथन,

और कछुक नाहिं भावे,

बस सुनो तुझे को,

रे सुनो इको बार,

मुरली के धुन।

जब से तोए देखा

मौं नाहिं कछुक चेतना,

• • •

दोहाल - इच्छा

कछुक - कुछ

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