दोस्ती

विश्वास उठ सा गया इस शब्द से
जब से दोस्त अंजान बने है

दोस्ती से बढ़कर था जो रिश्ता
आज यादों में रह गया है
आज भी आंसू आ जाते है उन लम्हों को याद करके
मुस्कुरा देती हूँ उनकी तस्वीर निहार के

कुछ बदल जाते है वक़्त के साथ
नए साथी मिल जाए तो पुराने की कदर नहीं होती
धीरे धीरे धुंधली होने लगती है दोस्ती
आखिर टूट ही जाती है दोस्ती

ना याद तुझे मैं तो क्या
मेरी तो दिल में अब भी है तू
बिखर गई तो क्या
जी रही हूँ मैं अभी

एक है गुज़ारिश तुझसे
फिर ना किसीको अपना बनाकर ऐसे छोड़ना
मुश्किल है तेरे बिना जीना
पर आगे है चलना
अब है मुश्किल किसी पर विश्वास करना||

_ पलक _

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