8.
कई शामें बीती सुबह को निहारते,
कई सुबहें गोधूलि की आस में गवाएँ हैं,
कई लम्हें दिल के कोने में सिमटे रहे,
कई रैन तेरे इंतज़ार में बिताए हैं ।
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कई शामें बीती सुबह को निहारते,
कई सुबहें गोधूलि की आस में गवाएँ हैं,
कई लम्हें दिल के कोने में सिमटे रहे,
कई रैन तेरे इंतज़ार में बिताए हैं ।
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