कहीं करता होगा वो मेरा इंतज़ार

अश्लेषा कैसेट की दुकान पर गयी तो वहां लड़के-लड़कियों की बड़ी सी कतार लगी हुई थी. वैसे दुकान पर भीड़ तो हमेशा ही होती थी, पर आज तो माजरा ही कुछ अलग नज़र आरहा था.

"दादा, मेरा कैसेट भी भर दो," एक लड़की ने आवाज़ दी.

"दादा, मेरा भी."

"तुम दोनों को भी आर्यन का नया गाना चाहिए," कैसेट की दुकान वाले दादा से अब भीड़ संभाली नहीं जा रही थी.

"हाँ," लाइन में कई सारी लडकियां एक साथ बोली.

"ये क्या आर्यन नाम का नया फितूर चढ़ा है लड़कियों के दिमाग में?" अश्लेषा सोचने लगी. वैसे तो ऐसा कोई भी हैंडसम दिखने वाला नया एक्टर या सिंगर होता, तो अश्लेषा को ज़रूर पता होता. मगर इस बार दो महीनों से अश्लेषा कॉलेज फंक्शन की तैयारियों में ऐसी उलझी कि म्यूजिक और फिल्मों के मामले में हर बात पता रखने वाली अश्लेषा को पता ही नहीं चला की ये आर्यन नाम का नया पंछी सावंतवाड़ी की लड़कियों के मन की बगिया में कब आ बैठा.

"और बेटा, तुम्हे भी आर्यन का नया गाना चाहिए?" कैसेट शॉप वाले दादा ने पूछा.

"नहीं," अश्लेषा ने कहा, "मुझे कॉलेज फंक्शन के लिए मैंने पायल है छनकाई चाहिए, फाल्गुनी पाठक वाला."

अश्लेषा जब तक घर लौट कर आई, उसकी सारी सहेलियां छत से जा चुकी थीं. फिर भी अश्लेषा इतनी मेहनत  से गाना भरवाकर लायी थी, अगर आज उस पर भरवाया गाना नहीं सुनती तो कैसेट को बुरा लग जाता. आकाश में अब चन्द्रमा निकल आया था और भीनी भीनी चांदनी की चादर ओढ़े हुए सावंतवाड़ी किसी परिकथा के भूले बिसरे शहर सा लग रहा था. अश्लेषा ने गहरी साँस भरी और टेप का नीला प्ले बटन दबाकर छत के छोर पर खड़ी हो गयी.

"अरे ये क्या? ये तो फाल्गुनी पाठक की नहीं किसी लड़के की आवाज़ थी," अश्लेषा कुनमुनाई. इतनी देर लगाने के बाद भी कैसेट वाले दादा ने गलत गाना भर दिया. अश्लेषा स्टॉप बटन दबाने ही वाली थी, मगर वो आवाज़ कुछ ऐसी थी जैसी बचपन में सुनी कोई भूली बिसरी सुन्दर राजकुमार की कहानी. जिसे सुनते ही ये लगे की इसे पहले कहीं सुना है, पर कब, किससे और कहाँ ये याद ही ना आये. अश्लेषा ने टेप रिवाइंड किया. हर बार वो आवाज़ में कुछ नया सा लगता फिर भी जाने क्यों...vo आवाज़ जानी पहचानी सी लगती. पूरा गाना सुनने के बाद अश्लेषा ने टेप फिर रिवाइंड किया. और यूँ ही वो एक गाना सुनते सुनते ही आसमान पर कब लाली छा गयी अश्लेषा को पता ही ना चला.

कॉलेज में लेक्चर के वक़्त अश्लेषा को इतनी जम्हाइयां आयीं की गिनना मुश्किल हो गया.

"क्यों अश्लेषा, सारी रात सोई नहीं क्या?" उसकी
दोस्त कंचन ने कोहनी मारते हुए पूछा, "चल, मैं तुझे कुछ सुनाने वाली हूँ जिससे  तेरी नींद चुटकियों में भाग जाएगी."

"रहने दे कंचन, मेरा बिलकुल मन नहीं है," आज अश्लेषा को कंचन से कॉलेज की गपशप सुनने का बिलकुल मन नहीं था.

"अरे तू चल तो," कहकर कंचन अश्लेषा को केमिस्ट्री लैब में ले गयी. केमिस्ट्री लैब कॉलेज बिल्डिंग के आखिरी कोने में बनी हुयी थी और इस समय बिलकुल खाली थी. कंचन ने अपने कुर्ते की जेब में से कुछ निकला.

"कंचन," अश्लेषा का मुँह खुला रह गया, "तू कॉलेज में वॉकमेन ले आयी. किसी ने देख लिया तो?"

"कोई नहीं देखेगा. तू ये तो सुन," कहकर कंचन ने वॉकमेन की वॉल्यूम धीमी करने के बाद प्ले बटन दबा दिया और उसमे से बजने लगा वही गाना जिसके कारण अश्लेषा रात भर नहीं सोई थी.

गाने के बजने के बाद कुछ देर दोनों चुप रहीं.

फिर कंचन बोली, "बता इसे सुनके तेरी नींद भागी या नहीं?"

"अरे इसने तो रात से ही मेरी नींद उड़ा रखी है," अश्लेषा बोली, "पर तू बता ये गाना गया किसने है?"

"किस दुनिया में रहती हैं अश्लेषा मैडम," कंचन ने कहा, "सावंतवाड़ी क्या, इंडिया की हर लड़की को आर्यन का एक एक गाना और इसके बोल रटे हुए हैं. मगर सबसे बड़ी दिक्कत तो ये है कोई नहीं जानता वो दिखता कैसा है? रहता कहाँ है?"

"अरे इतना बड़ा सिंगर है ? कोई जानता कैसे नहीं?" अश्लेषा ने पूछा .

"रेडियो पर एक इंटरव्यू में उसने कहा था उसे लोगों से बात करने में बहुत झिझक होती है ," कंचन ने कंधे उचका कर कहा, "मेरी आवाज़ इसकी तरह दस परसेंट भी होती तो मैं तो लाउडस्पीकर से पूरे सावंतवाड़ी में मुनादी करवा देती."

"अभी तक किसी को आर्यन की पहचान इसलिए नहीं पता है क्यूँकि अश्लेषा इसे नहीं जानती थी. अब तू देख कैसे मैं इसकी कुंडली निकलती हूँ," अश्लेषा ने अपने आप से कहा.

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