और चलिए अब अलविदा कहने का वक़्त आ गया
अश्लेषा जैसे तैसे हड़बड़ी में आर्यन के होटल पहुंची. तभी आर्यन भी कहीं से भागते भागते होटल की लॉबी में कहीं से आ रहा था. अश्लेषा को देखते ही उसने सनग्लासेस पहन लिए.
"इस वक़्त तुम कहाँ से आ रहे हो? और अभी तुम्हारी आँखों का रंग..."अश्लेषा ने पूछा.
"क्यों कहीं भी आने जाने के लिए मुझे तुम्हारी परमिशन लेनी होगी?" आर्यन ने पलटकर पूछा.
"नहीं , वो तो मैंने इसलिए पूछा क्योंकि तुम सावंतवाड़ी पहली बार आये हो और यहां के बारे में तुम्हें कुछ नहीं पता."
"तुम चीज़ें बड़ी जल्दी assume जल्दी कर लेती हो अश्लेषा. हो सकता है जो तुम सोचती हो वो सच न हो?"
"मतलब?" अश्लेषा ने सवाल किया.
आर्यन ने अपनी घड़ी चेक करते हुए कहा, "मतलब ये है कि सुबह के साढ़े पांच बज रहे हैं और इतनी सुबह अपने फैन्स की फालतू बातें सुनने का वक़्त नहीं है मेरे पास."
"तुम अपने फैंस को फालतू समझते हो," अश्लेषा को अब गुस्सा आने लगा था.
"मैंने अपने सारे फैंस को तो फालतू नहीं कहा," आर्यन की आवाज़ में हलकी सी मुस्कराहट थी.
"मतलब तुमने मुझे फालतू कहा?" गुस्से से अश्लेषा की नाक लाल हो गयी.
"सेल्फ रियलिज़शन बहुत अच्छी आदत है अश्लेषा," आर्यन ने अश्लेषा की पीठ थपथपाते हुए कहा, "यू शुड ट्राय it sometimes ."
"खैर छोड़ो," अश्लेषा ने गहरी सांस लेकर एक चिट्ठी आर्यन के हाथ में देकर कहा,"इसे पढ़ो."
"क्या?" आर्यन ने चौंकते हुए कहा, "तुम चाहती हो तुम्हारा लव लेटर मैं रिसेप्शनिस्ट और बाकी होटेल स्टाफ के सामने पढूँ. चलो टेरेस पर चलते हैं."
"ये तुम्हारी कोहनी पर खून कैसा?" आर्यन ने टेरेस पर पहुंचते पूछा.
"वो जल्दी जल्दी में यहां आये वक़्त मैं गिर गयी थी," अश्लेषा बेपरवाही से बोली.
"तुम भी न अश्लेषा," आर्यन ने झुंझलाकर कहा, "अपना ध्यान बिलकुल नहीं रखती. अपनी अलग ही दुनिया में खोई रहती हो. कितनी बार कहा है तुमसे..."
"तुमने ऐसा कब कहा मुझसे?" अश्लेषा को ना चाहते हुए भी आर्यन में किसी का अक्स दिखने लगा था, "चलो लेटर पढ़ो."
"चुप, एकदम चुप," आर्यन ने अश्लेषा के होठों पर उंगली रख दी, "चुपचाप बैठो. मैं अभी फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आता हूँ."
आर्यन ने बहुत ध्यान से जिससे अश्लेषा को ज़रा सा भी दर्द न हो, उसकी चोट सेवलॉन से साफ़ की.
"दर्द तो नहीं हो रहा अश्लेषा," आर्यन ने हौले से पूछा.
अश्लेषा ने ना में सर हिलाया और बोली, "अब पढ़ो उसे."
अश्लेषा की हरकतों पर आर्यन को हँसी आ गयी, "अरे प्रिंसिपल मैडम, रुकिए तो सही.पढ़ता हूँ अभी."ये कहकर आर्यन ने चिट्ठी पढ़ना शुरू की.
"डिअर आर्यन, लगभग तीन साल पहले टीवी पर मैंने फरेरो रोशेर का विज्ञापन देखा था. तभी से मैंने बाबा से ज़िद पकड़ ली थी कि मुझे वही चॉकलेट खानी है. दिन रात मैं हर समय फरेरो रोशेर के ही सपने देखती. सावंतवाड़ी की किसी दुकान में उसके न मिलने पर मैं इतना रोई कि बाबा को हारकर अगले संडे मुंबई जाना पड़ा और फरेरो रोशेर लानी पड़ी. बहुत अच्छी थी वो चॉकलेट, एक दम सोफिस्टिकेटेड. मगर जब से फरेरो रोशेर आई थी, मैंने संतरे की टॉफ़ी खानी छोड़ दी थी. एक दिन मेरी कॉलेज में कंचन से लड़ाई हो गयी, तो पता मैंने क्या किया? गली के मोड़ वाली दुकान जाकर एक साथ दस संतरे की टॉफ़ी खरीदी क्योंकि फरेरो रोशेर खुशियां मनाने के लिए तो परफेक्ट थी, मगर दुःख होता है तो सिर्फ संतरे वाली टॉफ़ी का ही ध्यान आता है. तुम मेरे लिए फरेरो रोशर हो आर्यन. एक सपने की तरह हसीं लेकिन कभी मैं अपना गुस्सा तुम पर नहीं उतार सकती, न ही दोस्तों से झगड़ा होने पर तुम्हारे कंधे पर सर रखकर रो सकती हूँ. उसके लिए तो मेरी संतरे की टॉफ़ी..."
पढ़ते पढ़ते आर्यन का गला भर आया फिर भी उसने चिट्ठी पढ़ना जारी रखा, "उसके लिए तो मेरी संतरे की टॉफ़ी अनिरुद्ध ही ठीक हैं. मैं हमेशा उनको इग्नोर करती रही, कभी किसी एक्टर के पीछे पागल हो कर और तुम्हें सुनने के बाद तो मैंने उनका दिल कितना दुखाया. मगर अब मैं समझ गयी हूँ कि खुश रहने के लिए एक लड़की को सफ़ेद घोड़ी पर बैठा सुन्दर राजकुमार नहीं, बस सच्चे दिल से प्यार करने वाला सीधा सादा इंसान चाहिए. जानती हूँ बहुत गुस्सा होंगे वो क्योंकि मैंने कभी उनकी कद्र नहीं की. मगर तुम्हारे लिए मेरे दिल में सिर्फ एक अट्रैक्शन है, आर्यन, प्यार तो मैं अपने अनिरुद्ध से ही करती हूँ. सो टाटा बाय बाय. वैसे भी तुम पर तो मुझसे कई ज़्यादा खूबसूरत बड़े शहर की लड़कियां जान छिड़कती हैं. तुम्हें कोई अंतर नहीं पड़ेगा. मैं जा रही हूँ अनिरुद्ध के पास. पता नहीं वो मुझे माफ़ करेंगे भी या नहीं."
ये कहकर अश्लेषा जाने लगी तो आर्यन ने उसे कोंकणी में आवाज़ दी, "रुको अश्लेषा."
फिर अश्लेषा का चेहरा अपने पास ले जाकर आर्यन ने कहा, "मैंने कहा था न की चाहे मैं कितना गुस्सा हूँ, तब भी जब भी तुम्हें मेरी ज़रुरत होगी, मुझे अपने पास पाओगी."
अश्लेषा हक्की बक्की रह गयी.
"अब भी नहीं पहचाना तुमने मुझे अश्लेषा?" कांपते हाथों से अश्लेषा ने आर्यन के चेहरे से जैसे ही मास्क हटाया, अश्लेषा को वही चेहरा दिखा जिसे इस समय वो सबसे ज़्यादा देखना चाहती थी.
"अनिरुद्ध..."अश्लेषा के शब्द थरथरा रहे थे, "आप ही आर्यन हो? मुझे...बताया..."
"अनिरुद्ध की चुप्पी तो तुम्हें समझ ही नहीं आ रही थी, अश्लेषा," फिर अनिरुद्ध ने अपना दिल्ली वाला लहजा इस्तेमाल करते हुए कहा, "तो आई थॉट, आर्यन का स्टाइल ही तुम्हे अनिरुद्ध के जज़्बात समझा पायेगा."
"आई हेट यू अनिरुद्ध," अश्लेषा ने मुंह फुलाते हुए कहा. तभी अनिरुद्ध ने आर्यन का वो गाना गाना शुरू किया जो अश्लेषा ने पहली बार सुना था.
अश्लेषा भाव खाकर बोली, "अगर अनिरुद्ध मुझे मानते तो मैं कभी नहीं मानती, मगर इतना डैशिंग रॉकस्टार आर्यन मुझे मना रहा है तो, मैं कैसे गुस्सा रह सकती हूँ."
"तुम्हे तो मैं छोड़ूंगा नहीं," जैसे ही अनिरुद्ध ने ये कहा, अश्लेषा उसे ठेंगा दिखाकर भाग गयी.
To ye thi kahaani ki aakhiri kadi. Kaisi lagi ye kahaani please zaroor batana.
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