गिला

अब क्या गिला, कैसी शिकायत
न वो वक़्त है,
न अब वो गली
जिसकी मोड़ पर हमने
की थी इक़रार और इंकार की बातें,
अब कैसे शिकवें करें
दे कर दुहाई यादों भरे वादे ?
जब हम थे
तब मैं नदी-सी सागर में मिल गई
सागर की सीमा बढ़ी
पर नदी कहीं गुम हो गई,
अब जब हम नहीं
तो उस नदी की तलाश का
पता तुमसे क्यों पूछु?
मैं ही तो बावरी थी
जो प्रेम की सांकरी गली में
उस भागीरथी का पता भूल बैठी
तो अब तुमसे क्या गिला करूँ?

वृंदा मिश्रा
(VRINDA MISHRA)

Bạn đang đọc truyện trên: AzTruyen.Top