कितनी बार.....।

कितनी बार कहा तुमसे
यूँ झूठी उम्मीदों की पोटली
मेरे दर पर न छोड़ जाय करो,
इक टीस-सी उठती है
जब उम्मीद कि लाश की
चिता भावनाओं की वेदी में जलती है,
नहीं आओगे,
स्वीकार लिया है मैंने
इस कटु सत्य को,
तब क्यों बार-बार दे जाते हो
दस्तक भावनाओं के पटल पर,
और फिर बिखेर जाते हो
स्मृति में हसीन वह पल,
चले जाते हो तुम तो
आकर फिर कहीं हो गुमशुदा
पीछे रह जाती हूँ मैं
चुनती एक-एक स्मृति-मोती को
सहेजती उसे, जैसे हो
वो मेरे आखिरी सम्पदा।

–वृंदा मिश्रा
VRINDA MISHRA

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