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शब्दों के जाल बुनकर
बहुतों को उनमें फसा गए
और जब वक्त आया खुद के फसने का
तब उन्हीं शब्दों की ढाल बनाकर निकल गए।
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शब्दों के जाल बुनकर
बहुतों को उनमें फसा गए
और जब वक्त आया खुद के फसने का
तब उन्हीं शब्दों की ढाल बनाकर निकल गए।
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