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बैठे बैठे क्या करें?
करना है कुछ काम
क्या करे क्या ना करें
इसी सोच में बीती शाम
तारे देखो टिमटिमा रहे
चांद भी है आज खिल उठा
मुस्कुराहट की इन हवाओं में भी
क्यों है मेरा ये मन रूठा?
ना किसी की याद है
ना ही किसी का इंतजार
फिर भी ये आंखे ढूंढ रही है
कुछ तो उन बादलों के पार
रोक रही है मन को ये
शब्दों में डूब जाने से
पता नही क्या हर्ज़ है इन्हे
मेरे थोड़ा सा सुकून पाने से
क्या करे क्या ना करें
इसी सोच में बीती शाम
शब्दों का साथ भी नहीं है आज
अब तो बस हो सकता है सिर्फ सोने का ही काम।

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