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यह शांत पड़ी रात
कल शोर में डूबी होगी
अंधकार से नाता तोड़
यह रोशनी में सजी होगी

बदलेगी नहीं वह अपने आप को
वो तो बस बहती चलेगी
फिर भी हर पल एक
नया जज़्बात वह कहती चलेगी

कुछ यू ही तो है इस रात का जलवा
हर रंग वह अपने में समा लेती है
टूटे दिलो का साथ निभाने
हर ग़म वह अपने में समा लेती है

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