तस्वीर

ढूंढती हूं जिस सुकून को,
मिलता है वो तुम्हारी तस्वीर में।
ना जाने किस जहान में हो तुम,
जो तुमसे मिल नहीं सकती।
इसलिए तुम्हारी तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

मेरी रातें कटती हैं तुम्हारे सपनों में,
और दिन ढलता है तुम्हारे खयालों में।
जब तुम्हारी तस्वीर साथ ना हो,
तुम्हारी कविताओं से अपने आप को संभालती हूं।
इसलिए तुम्हारी तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

लोग पूछते हैं, दुनिया पूछती है,
पूछते हैं ये पहाड़, पेड़ और ये वादियां तुम्हारी खासियत के बारे में।
सभी को एक ही बात कहती हूं कि 'अगर प्यार ना हुआ उस प्यारी मुसकान तो कहना'।
इसलिए तुम्हारी तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

लगाते हैं लोग मुखौटे अपने चेहरों पर,
पर तुमने ऐसा कभी नहीं किया।
तुम्हारी इसी सादगी पर तो फ़िदा हो गई,
और तुम सा बनना चाहा,
पर मेरी कोशिश नाकाम रही।
अच्छा ही हुआ, हां, अच्छा ही हुआ,
जो नाकाम हुई,
नहीं तो तुम्हें इतना प्यार कैसे कर पाती?
इसलिए तुम्हारी तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

जाने कहां गए वह दिन जब हम मीलों का सफ़र साथ तय किया करते थे,
याद है मुझे तुम्हारी हाथों की लकीरें जिन पर लिखा था तुमने मेरा नाम,
भूली नहीं हूं वो चैन की नींद जो मिलती थी तुम्हारे कंधों पर।
इन्हीं यादों के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

याद है मुझे सब कुछ तुम्हारे बारे में,
तुम्हारी एक - एक बात जो तुमने कहकर मुझे ख़ास महसूस कराया।
तुम्हारे वह दिल को छू जाने वाले अल्फ़ाज़ भूली नहीं हूं,
अफ़सोस है इस बात का की, अब ना तुम्हें सुन सकती हूं, ना महसूस कर सकती हूं और ना ही छू सकती हूं।
कुछ कर सकती हूं तो सिर्फ,
तुम्हारी तस्वीर को सीने से लगाकर सिसक सिसक कर रो सकती हूं।
इसलिए तुम्हारी तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

जिसकी वजह से हम बिछड़े,
कुदरत का वह दस्तूर सबसे बुरा है।
मगर आभार भी है उस ईश्वर का,
जिसने तुम्हें मेरे लिए चुना।
पल भर की खुशी ही सही,
खुशी तो मिली।
वह खुशी थी उस मिराज की तरह,
जो हमेशा मुझसे दूर जाती रही।
फिर भी तुम्हारी ही तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

चाहती हूं तुमसे दूर जाना,
मगर ख़ुद को रोक नहीं सकती,
तुम्हारी प्यार भारी बातें मेरे मन में घर कर गईं हैं,
उन्हें वहां से कैसे निकलूं?
हां पता है मुझे की तुम अब मेरे नहीं हो,
और ना ही आगे हो सकते हो।
मगर, ये बात तुम्हें भी याद होगी कि राधा जी श्री कृष्ण की कभी ना होकर भी उन्हीं की रही।
और यही कारण है कि आज तुम्हारी तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।

कहते है लोग पागल मुझे, सब कहते है, सच कहते है,
आखिर किसी की तस्वीर के सहारे ज़िन्दा रहने का दावा करना, पागलपन है तो है।
कैसे कहूं उनसे यह पागलपन नहीं है,
तुम मेरे जीने कि इच्छा हो,
जो ज़िन्दगी के लिए कितनी ज़रूरी है शायद ही कोई जानता होगा।
तुम मेरी जीने कि वजह हो,
जो औरों को समझ नहीं आएगी।
इसलिए तुम्हारी तस्वीर के सहारे आज ज़िन्दा हूं,
और मरती हूं तुम्हारी मुसकान पर।


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