ऐ कलम !

Hi guys....thanks for going through this page......its my 2nd poem ..

...I hope u all like it :) <3 <3 <3


ऐ कलम मुझको बता , मैं क्या लिखूँ , मैं क्या लिखूँ ? 

भाव है अंदर छिपे , कैसे कहुँ , कैसे कहुँ ?


क्या लिखूँ कि है सुने मैंने प्यार के कई दास्ताँ ,

क्या कहुँ सरहदों पर मिलते हैं नफरत के निशान ,


क्या लिखूँ कि है सुने कन्या की हत्या के सिलसिले ,

क्या कहुँ मैंने है देखा लड़की को पर्वत चढ़ते हुए ,


क्या लिखूँ कि माँ बाप के चरणों से अच्छा कोई धाम नहीं ,

क्या कहुँ वृद्घा आश्रम आज क्यों है भरे पड़े ,


क्या लिखूँ सुना है मैंने , मानवता है कहीं खो गयी ,

क्या कहुँ मैंने है देखा लोगों को मदद करते हुए ,


राह तो है अनेक , चुनना अब हमारे बस में है ,

देश की उलझन समझना ही हमारे हित में है ,


इस उलझन को है सुलझाना की मैं क्या लिखूँ , 

मैं क्या लिखूँ ?भाव है अंदर छिपे कैसे कहुँ , कैसे कहुँ ?


Plz Vote , comment & give me suggestion about this poem....

Thanku ! :)

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