बेटियों की शादी का फरमान

कितना अटपटा है यह ईश्वर का संविधान,

कुछ अलग ही है बेटियों की शादी का
फरमान।

बचपन से लेकर जिस माता पिता ने पाला
पोसा है,

बेटी के दूसरे माता पिता पर आज उन्हें
कितना भरोसा है।

थमा देते हैं बेटी का हाथ उनके हाथों में,

कोई उस पिता से पूछे कैसे नींद आती है रातों में

चली जायेगी उनकी गुड़िया उनकी दुलारी
उनकी प्यारी,

अब फ़ोन पर नही सुनाई देगी- माँ मेरे लिए।
बाजार से क्या ला रही।

हो जाएगा अब वह आंगन सूना सूना,

कौन खेलेगा गुड्डे गुड़िया, मिट्टी का खिलौना।

फिर भी दिल पे पत्थर रख के कर देते हैं।
अपने चाँद को विदा,

न चाहते हुए भी हर पिता को होना है अपनी
बेटी से जुदा।

कितना अटपटा है ईश्वर का संविधान,

कुछ अलग ही है बेटियों की शादी का
फरमान।।।

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So here's my first hindi poetry of my book. Hope you like it...and if then hit that star button and let me know your views in comment box...

Love you all...

~Ankit Jaiswal

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