अनकही ख्वाइशें
एक अनोखा सा एहसास है
ख्वाइशों का पूरा होना
अधूरी ख्वाइशें भी आगे चलकर
यादों का रूप ले लेती हैं।
ख्वाइश कोई जि़द नही है
जिसकी पूर्ती पर अहंकार ग्रसित हो जाऐं
ख्वाइश तो सफर है रूह की,
इस जन्नत से उस जन्नत तक।
कुछ ख्वाइशें मन की गहराईयों में
पालथी लगाई बैठी हैं
कभी-कभी सोच में पड जाता हूं
आखिर किस को रू-ब-रू करूं इनसे।
कभी अतीत के कुछ क्षण
पुनः व्यतीत करने की कामना की है?
क्या इन अधूरे क्षणो को
अधूरे ख्वाइशों का नाम दे सकता हूं?
यह साढे तीन अक्षरों का शब्द
मन को अपनी ओर आकर्षित कर
तथा प्रत्येक क्षण को वश मे करके
सूर्य को चांद बना देता है।
महसूस कर सकता हूं इन्हें (ख्वाइशों को)
संगीत के फीके स्वरों में
कलपना के सागर में
एवं समय के साये में।
शायद किसी अलौकिक मंच पे
ये ख्वाइशें पूरी हो रही हों
क्या इस राज़ का पर्दाफाश कर दूं
या इन्हें अनकहे रहने दूं?
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