|एक बात दिल से|

बीहड़-से जीवन के कीचड़ का मारा,
इन होटों को दिल में जो मैंने उतारा,
दिल ने कहा, आख़िर कैसी है मुश्किल,
कि राज़ों को नाराज़ ने आज है पुकारा?

मैंने कहा,
कि ज़िंदगी बेकार है,
आठों दिशा,
बस क्रोध की फुहार है,
खुशियाँ तो झोंके-सी छूकर हैं जाती
आँसू ही पलकों पर अब बर्क़रार है।

कैसे रहूँ मैं इस जीवन को राज़ी,
जो ज़र्रे के सुख की ना करता नवाज़ी?

दिल ने कहा,
तू मुसकान-आँसू को मत गिन,
ग़म और ख़ुशी में है बाँटा हर पलछिन,
जो पलड़ा पलट जाए दुख की दिशा में,
बुन लेना तू पलभर की धूप इस जहाँ मैं,

ना करना कभी ख़ुद को मेरे हवाले,
के मुझसे ही आसूँ ये बनते हैं सारे।

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A/N- Hindi poem #2!
Okay no one will read this but thanks a lot anyway xD

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