Chapter 9 - Palak (Part 1)
सुबह 8 : 30 बजे ।
अचानक नींद में, "पलक ! पलक ? तुम अब तक सो रही हो ! तुम्हारी तबियत तो ठिक है ?" मैंने सलोनी की आवाज़ सुनी ।
तब अगले ही पल मैंने महसूस किया कि, वो मेरे कंधे को धीरे से हिलाते हुए मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी ।
मैं उसे सुन सकती थी और महसूस भी कर सकती थी । लेकिन मेरी आँखें खुलने का नाम नहीं ले रही थी ।
तब मुझे हिलाते हुए, "पलक...! पलक..? प्लिज़... कुछ तो कहों ।" सलोनी परेशान होकर ऊँची आवाज़ में चिल्लाई ।
और इस बार सलोनी की तेज़ आवाज़ कानों में पड़ते ही मेरी आँखें झट से खुल गई । इसी के साथ मेरे सर में काफ़ी तेज़ दर्द शुरू हो गया । और मैं अपना सर पकड़कर बैठ गई ।
मैंने उठकर बैठते हुए, "हाँ, मैं.. मैं ठिक हुं । वो.. बस कल रात मुझे नींद नहीं आई इसलिए काफ़ी थकान महसूस हो रही है ।" धीरे से कहा ।
मेरी हालत देखकर, "तब तो मुझे नहीं लगता कि आज तुम्हे ऑफ़िस जाना चाहिए ।" सलोनी ने मुझे ऑफ़िस जाने से मना किया ।
सलोनी की तरफ़ देखकर, "हाँ, शायद । लेकिन मे'म ?" मैंने धीरे से सवाल किया ।
मेरी बात सुनते ही, "तुम उनकी फ़िक्र मत करो । अगर तुम्हारी तबियत ठिक नहीं तो तुम आराम करो । मेड़म को मैं सँभाल लुंगी ।" सलोनी जवाब देते हुए मुस्कुराई और उस पर भरोसा करते हुए मैंने उसकी बात में सहमती दिखाई ।
सलोनी ने मेरे हाथ पर हाथ रखाकर, "ठिक है । तो फ़िर मैं चलती हूं । वरना मुझे भी देर हो जाएगी । आराम करो मैं तुमसे शाम को मिलती हूं ।" मेरी फ़िक्र करते हुए कहा और खड़ी हो गयी ।
जाते समय मेरी चिंता में पीछे पलटकर, "बाय.! टेक केयर और हाँ अगर तुम्हे कोई भी प्रोबलम हुई तो मुझे कॉल कर देना ।" सलोनी ने धीमे से कहा और मेरी सहमती पाते ही आगे बढ़ गई ।
अपने झूठ से मैंने सलोनी की चिंता कम कर दी थी । लेकिन मेरी तबियत अभी ठिक नहीं हुई थी । मुझे काफ़ी कमज़ोरी और थकान महसूस हो रही थी । मेरा सर दर्द से फटनेवाला था । इसलिए मैंने सलोनी से ज़्यादा बात नहीं की । और उसके जाते ही मैं फ़िरसे अपने बिस्तर पर लेट गई ।
सुबह 11 : 30 बजे ।
थोड़ी देर के आराम के बाद अब मैं पहले से बेहतर महसूस कर रही थी । मगर ना चाहते हुए भी मैं अपने डर को ख़त्म नहीं कर पा रही थी ।
मैं अब भी इस बात को लेकर चिंता में थी कि यहां इस महल में मेरे सिवा कोई औ़र भी है, जो इन्सान नहीं; जो एक परछाईं था; एक आत्मा ।
मैं डरी हुई थी मगर अब मुझे पहले की तरह उससे डरने ज़रूरत नहीं थी । इसलिए उठने की हिम्मत करते हुए मैं नहाकर तैयार हो गई ।
नहाने के बाद अपने कपड़े (लॉग ब्लू ड्रेस और डार्क ब्लू जैकिट) पहनते ही मैं बिल्कुल तैयार थी । नहाने के बाद अब मैं काफ़ी हद तक तरोताज़ा महसूस कर रही थी । लेकिन मेरी कमज़ोरी ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा था ।
उस हादसे के बाद मेरे जिने का एहसास और मेरी भूख दोनों मर चूके थे । मगर.. कई महीनों बाद अब कही जाकर मुझे तेज़ भूख का एहसास हो रहा था । उस वक्त मुझे लग रहा था जैसे खाना ना खाने पर मैं बेहोश हो जाती या मर जाती ।
आख़िरकार अपनी ना सेहन होनेवाली भूख से परेशान होकर मैं नीचे कित्चन तक पहुँची । आज पहली बार मैं अकेले ख़ुद के लिए कुछ बनाने जा रही थी, जो मुझे पसंद नहीं था । मुझे कुछ समझमें नहीं आ रहा था । और तभी पौंहाँ बनाने का ख़्याल आते ही मैंने अपना काम शुरू कर दिया ।
मैं कित्चन में पौंहाँ बना रही थी और तभी अचानक मुझे अपने पीछे किसी के होने का एहसास हुआ । उस एक पल के लिए मैं बहुत डर गई । लेकिन फ़िर मैं समझ गई कि वो शायद वही था और मैंने पीछे मुड़कर देखा ।
मेरे मुड़ते ही उसने मायूसी भरी नज़रों से मुझे देखा, "माफ़ करना मैंने तुम्हे फ़िर से डरा दिया । मैं.. जा रहा हूं ।" उसने परेशान होकर कहा । और मेरे कुछ कहने से पहले ही वहां से ग़ायब हो गया ।
सुबह 7 : 30 बजे ।
अगली सुबह जागने पर मैं अच्छा महसूस कर रही थी । यहां आने के बाद कल रात पहली बार मैं ठिकसे सो पायी थी । जिस वजह से अब मेरी तबियत पहले से ठिक लग रही थी । मैं पहले ही ऑफ़िस से छुट्टी ले चुकी थी । मगर आज मैं ऑफ़िस जाना चाहती थी और इसी लिए मैं जल्दी से तैयार हो गई ।
नहाकर अपना ग्रीन ड्रेस और ब्लेक जैकिट पहनते ही मैं बिल्कुल तैयार थी । उसके बाद बिस्तर से अपना मोबाईल उठाते ही मैं जाने के लिए आगे बढ़ी ।
लेकिन तभी अचानक किसी के होने के एहसास ने एक पल के लिए मेरे दिल की धड़कनें तेज़ कर दी । पर.. अगले ही पल सच का एहसास होते ही मैंने पीछे पलटकर देखा ।
मैं बिल्कुल सही थी वो वही, कमरे के दरवाज़े के पास खामोशी से खड़ा था । लेकिन अब उसने अपने उस डरावने रुप में मेरे सामने आना छोड़ दिया था । इसलिये मेरा खौफ दूर हो गया था ।
मुझे परेशान देखते ही उसने अपना सर झुकाकर, "आई'एम सोरी..! तुम फ़िक्र मत करो मैं जाता हूँ ।" उसने परेशान होकर माफ़ी मांगी और फिर से मेरे कुछ कहने से पहले ही वो ग़ायब हो गया ।
उस डरावनी रात के बाद उसने मुझे कभी परेशान नहीं किया था । लेकिन शायद मेरा यहां होना उसे बेचैन कर रहा था; शायद मेरा यहां होना उसे परेशान कर रहा था । और मेरी वजह से उसका परेशान होना मुझे ठीक नहीं लग रहा था ।
शायद मुझे उससे बात करनी चाहिए । लेकिन इस वक़्त मुझे ऑफ़िस जाना था । इस लिए अपना मोबाईल उठाते ही मैं वहां से चली आई और सलोनी के साथ ऑफ़िस पहुँची ।
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