Chapter 26 - Palak (Part 2)

Hello, my dear friends,
I know I kept you waiting for so long & I regret that. But now I am back with another exclusive update of your favourite "Asambhav" si Prem kahani. And I hope you are ready for this exciting journey of the ghostly world. So let's get started without any delay...
Enjoy the journey... ☺️💖

हानी अब तक: शुरुआत में चाहे मुझे इस नॉवेल की कहानी उबाव लगी हो। मगर पढ़ते-पढ़ते अब मुझे कहानी में इंटरेस्ट आने लगा था। और मैं उस कहानी की गहराई में डूबती जा रही थी। क़रीब आधे घंटे बाद पढ़ते हुए मुझे अचानक आभास हुआ कि कमरे के दरवाज़े पर कोई है। और मैं बिस्तर से उतरकर दरवाज़े के पास गई।

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अब आगे।

पता  नहीं  क्यूं  पर  उस  वक्त  मुझे  थोड़ा  डर  लग  रहा  था,  मेरे   हाथ   कांप  रहे  थे।  अगर  वहां  चंद्र  ना  होकर  कोई  और  हुआ  तो  मैं  क्या  करूंगी...  और  इस  खौफ  को  दिल  में  दबाएं  मैंने  दरवाज़ा  खोलने  की  हिम्मत  की।
"थैंक  गॉड  कि  ये  तुम  हो।"  अपने  सामने  चंद्र  को  पाते  ही,  "तुम  कहां  रहे  गए  थे..."  मैंने  राहत  की  सांस  भरी।
"माफ़  करना।"  चंद्र  थोड़ा  परेशान  लग  रहा  था।  "मगर  तुम  अब  तक  सोई  नहीं?!"
शायद  चंद्र  मुझे  लेकर  कुछ  ज़्यादा  ही  फिक्र  कर  रहा  है।
चंद्र  के  अंदर  आते  ही  मैंने  दरवाज़ा  बंद  कर  लिया।
"हां,  वो  मैं  बस  सोने  ही  वाली  थी।  पर  तुम  यहां  नहीं  थे  तो  मुझे  तुम्हारी  फिक्र  हो  रही  थी..."  मेरी  बात  सुनते  ही  चंद्र  की  हैरत  भरी  नजरें  मुझ  पर  उठ  गई --
"मेरी  फिक्र!  अब  मुझे  और  क्या  हो  सकता  है..."  उसने  बेपरवाह  होकर  कहते  ही  अपनी  नज़रे  फेर  ली।  वो  आगे  बढ़  गया।
पता  नहीं  आज  तुम्हें  क्या  हुआ  है?!  अभी  कुछ  देर  पहले  तो  तुम  इतने  खुश  थे।  अब  अचानक  ऐसे  सीरियस  क्यों  हो  गए?!  न  जाने  मैं  तुम्हें  पूरी  तरह  कब  समझ  पाऊंगी...
"आई  एम  सॉरी!"  चंद्र  के  सर  झुकाकर  कहते  ही,  "तुम  इतनी  देर  क्या  कर  रही  थी?"  मैं  भी  उसके  पीछे  अपने  बिस्तर  तक  चली  आई।
"दरअसल,  मैं  नॉवेल  पढ़  रही  थी।  क्या  तुम्हें  बुक्स  पसंद  है?"  बिस्तर  पर  बैठते  ही  मैंने  चंद्र  को  वो  नॉवेल  दिखाई।

"हां,  बचपन  से।" मेरी बात सुनते ही चंद्र के चेहरे पर फीकी सी मुस्कान आ गई -- "मुझे किताबे पढ़ना इतना पसंद था कि कभीकाभर तो मैं अपने बाबा के वैद-पुराण भी पढ़ लेता -- जो पचपन में मुझे ठीक से समझ तक नहीं आते थे। लेकिन उनके उच्चारण मुझे बहोत अच्छे लगते थे।" बचपन की याद उसकी आंखों में चमक ले आई थी। और अपनी यादों में खोए उसकी नज़रे दूर कही ठहरी थी।
"उच्चारण!" मैं उसकी बात से सरप्राइज्ड थी।
"हां, प्रोनंसिएशन।" उसकी नज़रे मुझ पर उठ गई।
"क्या तुम इसकी कहानी जानना चाहोगे?" मैंने अपनी नोवल चंद्र को दिखाई। और उसने जवाब में हल्के से पलके झपका कर सहमति दी।

"ये कहानी एक गोबलिन और एक इंसान के प्यार की है। एक गोबलिन, जो पेहले एक जांबाज योद्धा था। मगर उसे देश द्रोह के जुर्म में मौत की सज़ा दी गई। राजा के आदेश पर उस योद्धा के सीने में उसी की तलवार गाड़ दी गई।" कहते हुए मैं खड़े होकर बालकनी तक गई --
"मगर परमात्मा उसकी नेकी को जानते थे। इसलिए मौत के बाद भी उस योद्धा की जान बच गई। लेकिन राज्यादेश मानते हुए हजारों लोगों की जान लेने के लिए उसे शापित जिवन मिला। कई सो सालों का शापित जिवन, जिस में ना तो उसकी उम्र बढ़ी और ना कोई कभी उसके साथ लंबे समय तक रह पाया।" बालकनी के बर्फ़ से ठंडे फर्श पर पैर पड़ते ही मेरे शरीर में कपकपी की लहर दौड़ गई। मैंने अपने पैरों की उंगलियां तुरंत सिकोड़ ली। और आहिस्ता से आगे बढ़ गई --
"उसके सीने की तलवार उसे गुनाहों की याद दिलाती रहती। वो तलवार उसे जलाती। तड़पती। मगर सिवाय उसकी दुल्हन के न तो कोई उसे देख सकता और न ही छू सकता।" मेरी नज़रे झरोखे से बहार बरसती बारिश पर थी --
"उस गोबलिन ने अपने आसपास के कई लोगों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा। और वो योद्धा हर बार अकेला पड़ जाता।
उस तलवार को सिर्फ़ बोगलिन की दुल्हन निकाल सकती थी। अंखिरकार उस योद्धा की जिंदगी में एक लड़की आई। गोबलिन ने उसकी जान बचाई और अंजाने में वो लड़की उससे प्यार करने लगी।" तेज़ हवा के झोके से मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैंने ठंड से अपने हाथ सिकुड़ लिए --
"वो लड़की सही मायनों में उस योद्धा की दुल्हन बनने के काबिल थी। पर एक दिन एक एक्सीडेंट में उस लड़की की भी मौत हो गई। उस गोबलिन योद्धा का दिल फ़िर टूट गया। मगर मरने से पहले उस लड़की ने -- उसकी दुल्हन ने अपने प्यार से वादा किया कि वो दोनों एक दिन फ़िर मिलेंगे और हमेशा साथ रहेंगे। उन्होंने वादा किया कि, वो दोनों एक-दूसरे को फिर ढूंढ लेंगे।
इस वादे के साथ अंखीरकार उस लड़की ने गोबलिन की बांहों में दम तोड़ दिया। मगर मरने से पहले उसकी दुल्हन ने गोबलिन का शाप तोड़ दिया। उसे उसके शापित जिवन से मुक्त कर दिया।" तब कहानी कहते हुए मेरे दिल में एक टीस सी उठी और मेरी आंखें नम हो गई।

अपने उलझे हुए जज़्बात और बहते आंसुओ का ऐहसास होते ही मैंने चंद्र से चेहरा छुपा लिया, जो मेरे पीछे मुझसे बस कुछ इंच की दूरी पर खड़ा था। दूसरी ओर चेहरा फेरते ही मैंने आहिस्ता से अपने आंसू पोंछ दिए।
न जाने कैसे और क्यों पर अचानक मुझे इस कहानी से जुड़ाव सा महसूस हुआ। मुझे उस लड़की की कहानी अपनी सी लगने लगी। मैं खुद को उस लड़की की जगह और... चंद्र को... उस गोबलिन की जगह देखने लगी!! ये मुझे क्या हो गया है? मुझे अचानक इतनी घुटन क्यों हो रही है?!
अब  तो  बारिश  की  रिमझिम  आवाज़  भी  जैसे  मेरे  मन  में  हलचल  मचाने  लगी  थी...  कई  सवाल  उठा  रही  थी।  मगर  चंद्र  के  आने  से  इस  सर्द  माहौल  में  भी  जैसे  गर्माहट  आ  गई  थी। 
मैं  समझ  नहीं  पा  रही  थी  कि  मैं  अपनी  ये कश्मकश  चंद्र  से  कैसे  छुपाऊ।  मैं  उसे  और परेशान  नहीं  करना  चाहती।  अपने  ही  खयालों  से  बेचैन  होकर  मैं  दोबारा  तेज़ी  से  मुड़कर  बिस्तर  के  पास  चली  गई।
"उम्मीद है तुम्हारे इस नोवेल का राइटर इतना ज़ालिम नहीं होगा।" चंद्र के वो शब्द सुनकर मेरी हैरान नज़रे उसकी ओर मुड़ गई। "इस कहानी का अंजाम अच्छा ही रहा होगा।" वो भी मेरे पीछे अंदर लौट आया।
मेरे मुड़ते ही वो मेरे सामने खड़ा था। मेरे बिल्कुल नज़दीक। मैं उसकी गहरी आंखों में अपनी परछाई देख सकती थी। चंद्र वो गहरी भूरी आंखे सीधे मेरी आंखों में झांक रही थी। जैसे मुझसे बहोत कुछ कहे रहे थी। उनमें किसी बात का डर, गुस्सा, अफ़सोस और लगाव सब एक साथ नज़र आ रहा था। लग रहा था जैसे उसकी इन ख़ामोश नज़रों के पिछे बहोत बड़ा तूफ़ान छुपा था।
एक तरफ़ मुझे तसल्ली है चंद्र कि तुम मेरे साथ हो। मगर दूसरी ओर तुम्हें गंभीर देखकर मुझे तुम्हारी फिक्र हो रही है। ऐसे हालात में क्या तुमसे दूर जाना भी सही होगा...
मेरी नज़रे उसे देख रही थी। मगर मैं चंद्र की बात का कोई जवाब नहीं दे पाई। मैं हड़बड़ाकर पीछे हट गई। और बिस्तर से टकराकर वहीं बैठ गई। मेरे होठों पर नकली मुस्कान थी। तो वहीं मेरे दिल में अंजानी सी टीस उठ रही थी। मेरी आंखें नम हो चली थी।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी पलके झपकाकर हामी भर दी। और हमारे बीच कुछ पलों की ख़ामोशी फैल गई। अगर कुछ सुनाई दे रहा था तो वो थी तेज़ बारिश के बिच शोर मचाती मेरे दिल की धड़कने।
"वैसे...  तुमने  अभी  तक  मेरे  सवाल  का  जवाब  नहीं  दिया।"  मेरी  बात  सुनते  ही  चंद्र  सोच  में पड़  गया। 
चंद्र... जब तुम लौटे तो काफ़ी परेशान थे। क्या वजह है तुम्हारी इस परेशानी की? क्या तुम मेरे साथ अपनी परेशानी शेयर नहीं कर सकते?
"राणा  सूर्यभान  सिंह  का  क्या  हुआ?  और  उद्धम  सिंह  राणा  कैसे  बना?"  हमारे  बीच  माहौल  हल्का  करने  के  लिए  मैंने  उस  वक्त  बात  को  बदलना  ही  ठिक  समझा।
चंद्र  अब  थोड़ा  शांत  हुआ  --  "बताता  हूं।"   उसने  हाथ  उठाकर  मुझे  बिस्तर  में
लेटने  को  कहा  और  मैंने  वैसा  ही  किया।  वहीं  चंद्र  पास  वाली  कुर्सी  पर  बैठ  गया।

अचानक  अपनी  नज़रे  मुझसे  हटाते  ही,  "तो  सुनो,  चौदस  की  उस  काली  रात  सगरोन  की  बस्ती  पर  हमला  करने  के  बाद  उद्धम  सिंह  सीधे  राजमहल  पहुंचा।  इससे  पेहले  कि  राणा  सूर्यभान  सिंह  उसकी  हकिकत  जान  पाते  उद्धम  ने  छल  से  उनकी  और  उनके  पुरे  परिवार  की  हत्या  कर  दी।"  चंद्र  मेरे  सवाल  का  जवाब  दे  ही  रहा  था  कि --
"तो  इसका  मतलब  क्या  राणा  सूर्यभान  कभी  भी  उद्धम  की  सच्चाई  जान  ही  नहीं  पाए?!"  मैंने  उसे  बीच  में  टोक  दिया।  और  अपनी  नादानी  का  एहसास  होते  ही  मेरी  नज़रे  झुक  गई। 
पता  नहीं  मैं  क्या  बेकार  की  बाते  सोच  रही  थी।  चंद्र  मेरे  हर  बात  का  जबाव  बीना  किसी  एतराज़  के  देता  है  इसका  मतलब  ये  तो  नहीं  कि  मैं  उसे  हमेशा  परेशान  करती  रहूं।
"नहीं,  राणा  सूर्यभान  सिंह  ये  कभी  जान  ही  नहीं  पाए  कि  उनके  पीछे  उद्धम  ने  प्रजा  को  कितनी  यातनाएं  दी।  उद्धम  इतना  शातिर  दिमाग  था  कि  राणा  और  उनके  परिवार  की  हत्या  को  भी  उसने  बड़ी  ही  सफ़ाई  से  छुपा  दिया।  उसने  सबके  सामने  ये  साबित  कर  दिया  कि  जब  वो  देशाटन  पर  निकला  था  तब  महेल  पर  पिंडारियों  ने  हमला  किया।  और  उसी  हमले  में  राणा  जी  और  उनका  परिवार  पिंडारियों  के  हाथों  मारे  गए।"  चंद्र  ने  सहजता  से  सारी  हकीकत  बताई।
"उद्धम  सिंह  सच  में  बहोत  घिनौना  इंसान  था।  उसने  अपने  बहन  के  घर  तक  को  नहीं  छोड़ा।"  सारी  बातें  जानने  के  बाद  मूझे  उद्धम  सिंह  पर  गुस्सा  आ  रहा  था।
"सही  कहा  तुमने,  वो  वास्तव  में  बिल्कुल  घटिया  किस्म  का  इंसान  था।  राणा  सूर्यभान सिंह  और  उनके  परिवार  को  मारने  के  बाद  अब  वो  इक  लौता  शख्स  था,  जो  रॉयल  फैमिली  से  बिलॉन्ग  करता  था।  इस  बात  का  फ़ायदा  उठाकर  उसने  ख़ुद  को  उस  राज्य  का  राणा  घोषित  कर  दिया  और  सारी  रियासत  पर  कब्ज़ा  कर  लिया।  राणा  बनने  का  उसका  सपना  तो  साकार  हो  गया।  मगर  सारी  धन-दौलत,  जायदात  और  राज्य  पर  कब्ज़ा  करके  भी  उसे  चैन  नहीं  मिला।  क्यूंकि  वैदेही  ने  अपनी  जान  देकर  उसे  हरा  दिया  था।  एक  अकेली  लड़की  ने  उसे  शिकस्त  दे  दी  थी।  इतना  सब  कुछ  करने  के  बाद  भी  उद्धम  सिंह  वैदेही  को  हासिल  नहीं  कर  पाया।  जिसका  अफ़सोस  उसके  दिलों-दिमाग़  को  जलता  रहा।  वो  इस  कदर  पागल  हुआ  कि  पागलपन  में  उसने  महल  की  छत  से  कूद  कर  आत्महत्या  कर  ली।  मगर  मरने  के  बाद  भी  उसकी  आत्मा  में  राणा  सूर्यभान  सिंह  का  सामना  करने  की  हिम्मत  नहीं  थी।  वो  डरता  था  कि  कहीं  उन्हें  उसकी  गद्दारी  का  पता  न  चल  जाए।  इसलिए  जब  उसने  राणा  सूर्यभान  सिंह  का  खंजर  देखा  तो  उसकी  आत्मा  कमज़ोर  पड़  गई  और  सच  का  सामना  करने  की  हिम्मत  न  होने  की  वजह  से  वो  खत्म  हो  गया।"  चंद्र  किसी  गहरी  सोच  में  डूबा  था।  उसे  देखकर  लग  रहा  था,  जैसे  वो  कहना  कुछ  और  चाहता  था  मगर  उसके  शब्द  कोई  और  कहानी  सुना  रहे  थे।
"ठीक  कहा  तुमने,  चंद्र।  प्यार  और  भरोसा  कभी  कोई  भी  ज़ोर-जबरदस्ती  से  हासिल  नहीं  कर  सकता।  अगर  कर  सकता  तो  इस  दुनियां  में  कोई  अनाथ  न  होता।  कोई  भी  आई-बाबा  अपने  बच्चों  के  प्यार  के  लिए  नहीं  तरसते।"  चंद्र  की  बातें  सुनकर  मैं  अपने  आई-बाबा  के  खयालों  में  डूब  गई।  और  फिर  न  जाने  वो  बातें  कब  मेरे  मुंह  से  निकल  गई।
मगर  होश  आते  ही  मैं  खामोश  हो  गई।  तभी  मैंने  जाना  कि  चंद्र  की  गहरी  आंखें  मुझे  ही  देख  रही  थी।
इसी  के  साथ  हमारे  बीच  ख़ामोशी  फैल  गई।  मैं  उसकी  उदासी  का  कारण  पूछकर  उसे  फिर  परेशान  नहीं  करना  चाहती  थी।  इसलिए  मैं  ख़ामोश  ही  रह  गई।
शायद  मेरी  बातों  ने  तुम्हें  भी  उदास  कर  दिया  है, चंद्र।  क्यूंकि  तुम  भी  मेरी  तरह  अपने  परिवार  से  जुदा  होने  के  गम  में  इतने  बरसों  से  घुटते  आए  हो।  माफ़  करना  मैंने  तुम्हारे  झख्मों  को  फिर  हरा  कर  दिया...

To Be Continued...

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बारिशें कई अनसुलझे और अनकहे जज्बातों को जगा देती है। तो बारिश के इस खूबसूरत गाने के साथ मेहसूस करे इस खूबसूरत जज़्बात को... 💖🌧️☔

तो क्या लगता है आपको, क्या पलक अपनी feelings ❣️ को समझ पाएगी?
क्या बढ़ते खतरों के बीच चंद्र अपना प्यार जाहिर कर पाएगा? ❣️
या नैनावती मिलने से पहले ही हमेशा के लिए कर देगी दूर इन दोनों को? 💔

Comment में ज़रूर बताएगा। I hope कि आपको ये भाग पसंद आया होगा। अपना प्यार, कॉमेंट और लाइक यहां पर ज़रूर दे। हर बार आपके फीडबैक मेरे लिए टॉनिक है।

तब तक सब्र रखें और साथ ही मेरी सभी नोवेल्स पढ़ते रहिए।
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अगले अपडेट तक टेक कैर! सायोनारा...! 👋🏻💖
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