Chapter 23 - Chandra (part 3)
हैलो दोस्तों, बिल्कुल नया और रोमांचक भाग प्रकाशित किया जा चुका है। और मुझे उम्मीद है कि आपको आज का भाग पसंद आएगा। मैंने दिल लगाकर और नींद को भुलाकर 😉😄 इस चैप्टर को लिखा है। लेकिन फिर भी अगर कोई कमी हो तो प्लीज़ संभाल लेना। और अपने कमाल के एक्स्पीरियंस इस चैप्टर के कॉमेंट बॉक्स में ज़रूर×2 साझा करिएगा।
साथ ही मैं छुपेरुस्तम पाठक को भी धन्यवाद करती हूं जो बिना भूले मेरी कहानी पढ़ रहे है। लेकिन अगर आप यूंही सिर्फ़ छुपेरुस्तम बने रहे तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए प्लीज़ इस कहानी को अच्छी रेटिंग दे और अपनी खुशी तथा अनुभव ज़ाहिर करे। इस असंभव सी यात्रा का हिस्सा बने। एक लेखक काफ़ी मेहनत और लगन के साथ कोई कहानी लिखता है। और आपको उसकी कहानी पसंद आती है फिर भी अगर आप उसके साथ अपनी खुशी साझा नहीं करेंगे तो ये कितनी दुख की बात होगी। मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट कीमती रहेंगे। इसलिए अपनी खुशी साझा करना बिलकुल न भूले।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
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कहानी अब तक: उस शैतान राजकुमारी की भयानक हरी आंखें पलक को घूर रही थी। और मेरा ध्यान उस ओर जाते ही उसके होठों पर अभिमान भरी मुस्कान फैल गई। पलक के लिए मुझे बेबस देखकर उसकी मुस्कान और गहरी हो गई।
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अब आगे।
लेकिन वो गलत थी। मैं बेबस नहीं था। पलक के कारण मैं कभी कमज़ोर नहीं पड़ सकता था। क्योंकि वो इस बात से बेखबर थी कि पलक मेरी कमज़ोरी नहीं बल्कि मेरी ताक़त थी।
तब उस शैतान राजकुमारी नैनावती को देखते ही किसी अनहोनी के आभास से मेरी बाहें पलक की सुरक्षा में उसके चारों तरफ़ और कस गई। और मैंने उसे अपने सीने में छिपा लिया।
गुस्से और आक्रोश में नैनावती की ओर घूरते हुए, "क्या किया है तुमने पलक के साथ?!" मैं इसका जवाब मांगने से ख़ुद को नहीं रोक पाया।
घमड़ के साथ कहते हुए, "बस इतने में ही डर गए!? तब क्या होगा जब तुम्हारी इस बेचारी पलक की एक-एक उंगलियां, उसके शरीर का हर एक अंग मुड़ेगा। शरीर की हर एक नसे खींचेगी। उसके नाज़ुक से बदन की एक-एक हड्डियां चटकेंगी। टूटेंगी । और आख़िर में..." उस राजकुमारी की घिनौनी हंसी गूंज उठी। "तुम्हें क्या लगा लड़के, अपनी इन मामूली शक्तियों से तुम हमारा सामना कर सकते हो!? नहीं, हरगिज़ नहीं।" और राजकुमारी के शैतानी साए ने अपना असली रूप उजागर किया।
इसके अगले ही पल नैनावती के भयानक चेहरे पर भद्दी सी मुस्कुराहट उभर आई और उसने अपना वहीं डरावना रूप धारण कर लिया। उसके चेहरे और शरीर पर वहीं डरावने बदलाव प्रगट हो गए। उसकी छल-कपट से भरी चमचमाती हरी आंखे तेज़ाब सी जल उठी।
अपनी बात जारी रखते हुए, "हम अब तक अट्ठानवे इंसानों की बलि चढ़ा चुके हैं। और ये लड़की... हमारा निन्यानवा शिकार है। जिसे तुम कभी बचा नहीं पाओगे।" उसने अपनी घिनौने कर्तूतों पर गुरूर करते हुए कहा।
मेरा अंदेशा बिल्कुल सही था। नैनावती की नज़रे पलक पर थी। और उसकी बातों से ये साफ़ ज़ाहिर था कि वो पलक को मारना चाहती थी। इतना ही नहीं बल्कि वो अपने किसी ख़ास मक़सद के लिए उसकी बलि चढ़ाना चाहती थी!
अपने मक़सद की सफलता का फिज़ूल जश्न मनाते हुए, "अब हमारे और हमारे मक़सद के बीच केवल ये लड़की बची है।" उस काले साए ने कहते ही "केवल सो ज़िंदगीयों की बलि पुरी होते ही 'हम' यानी 'महान राजकुमारी नैनावती' फिर एक बार इस दुनियां में लौट आएंगी। इस धरती पर हमारा साम्राज्य स्थापित होगा। और तब... हमें रोकनेवाला कोई नहीं होगा। ना तुम्हारी ये पलक, ना तुम और... नाहीं मेरे पिता।" उसकी नफ़रत भरी आंखें हम दोनों पर टिक गई।
अपने भयानक इरादे को कामयाब करने में पागल उस बिगड़ेल राजकुमारी की बाते सुनकर मैं दंग रहे गया था। उसकी बातों से ये तय था कि वो यहां आने वाले इंसानों को बेवजह नहीं मार रही थी। राजकुमारी को अपनी सोच और मान्यताओं पर पुरा यकीन था। मगर जो व्यक्ति सालों पेहले ही मर चुका है उसका किसी भी अनुष्ठान के ज़रिए वापस लौटना काफ़ी बेतूका और भयानक था!
"ये नामुमकिन है। ये कुदरत के नियमों के विरुद्ध (खिलाफ़) है।" पलक को अपनी बाहों के घेरे में हिफाज़त से समेटते हुए, "मरने के बाद हर आत्मा को इस दुनियां को छोड़कर जाना ही पड़ता है। अपना सफ़र पूरा किए बग़ैर उसे नया जन्म नहीं मिल सकता।" मैं परेशान होकर ये कहने से ख़ुद को नहीं रोक पाया। इसी के साथ मेरी गुस्से और हैरत से भरी नज़रे उसे घूरती रही।
मेरी बातें सुनते ही, "हम कुदरत के किसी भी नियम को नहीं मानते।" वो शैतान राजकुमारी अचानक भड़क उठी और गुस्से में अपने दांत पीसते हुए उसने अपनी हरी तेजाबी नज़रों से पलक को देखा।
पलक को लेकर बार-बार इतने बेरहेम और मनहूस लब्ज़ो को सुनकर मैं तिलमिला उठा था। "नहीं, तुम ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकती। ये असंभव है । तुमने बहोत मनमानी कर ली। यहां तक कि तुमने मुझे और मेरे दोस्तों तक को नहीं बक्षा। मगर अब मैं तुम्हें किसी और मासूम इंसान की जान नहीं लेने दूंगा।" उसके बाद मैं उस शैतानी साए की घिनौनी बाते चुपचाप नहीं सुन पाया।
मगर उस काले साए पर मेरी बात का कोई असर नहीं हुआ। उल्टा मुझे परेशान होते देखकर उसके भद्दे चेहरे से कातिलाना हंसी फूट पड़ी।
"वापस अपना शरीर पाने के लिए मुझे उस रास्ते पर चलने की ज़रूरत नहीं । मैं उन यातनाओं से गुज़रे बिना नया शरीर धारण करुंगी।" अपनी ज़हरीली मुस्कान के साथ, "और ये करने से हमे कोई नहीं रोक सकता। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अब हमे सिर्फ़ इस मामूली लड़की को मारना है।" उस घमंडी राजकुमारी ने अपनी आंखों से अचानक आग बरसाते हुए कहा।
मगर इससे पेहले की वो आग पलक को छू पाती मैं पलक को थामे अपनी तेज़ रफ़्तार के साथ दूसरी तरफ जा पहुंचा।
तब अगले ही पल पीछे मुड़कर उस राजकुमारी को गुस्से से देखते ही, "हर इंसान को कर्मयोग की भट्ठी में जलना ही पड़ता है। और तुम भी अपने गुनाहों की सज़ा से नहीं बच सकती । यही नियती है।" मैंने सर्द आवाज़ में उसे चेतावनी दी और इतना कहते ही मैं बिना रूके पलक को अपनी बाहों में उठाकर उसके कमरे में ले आया।
मुझे उस घमंडी राजकुमारी की आज की की गई इस हरक़त पर बहोत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था। अगर आज मैं एक पल भी और वहां उसके सामने रुकता तो उस राजकुमारी पर हमला करने से ख़ुद को नहीं रोक पाता। मगर इस समय उस बेकार राजकुमारी से उलझने की बजाय मेरा पलक पर ध्यान देना ज़्यादा ज़रूरी था।
गनीमत थी कि आज पलक के साथ जो भी घटना घटी उस समय वो पुरी तरह बेसुध थी। इसलिए उसे इस घटना की कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन अगर आज वो अपने पुरे होशो-हवास में होती तो वो बहोत ज़्यादा डर जाती, जिसका फ़ायदा उठाकर वो शैतान राजकुमारी पलक के दिलों-दिमाग पर हावी हो सकती थी, जो मैं हरगिज़ नहीं चाहता था। क्योंकि अगर एक बार पलक के ऊपर नैनावती हावी हो जाती तो वो उसे तब तक यातनाएं देती जाती जब तक कि पलक ख़ुद मरने की दुआ नहीं मांगती। और मैं ये कभी बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगा कि पलक पर कभी भी ऐसी नौबत आए।
मगर परमात्मा का शुक्र है कि वो राजकुमारी पलक पर काबू नहीं कर पाई थी। और सही मौके पर वहां पहुंचकर मैं पलक को उससे दूर ले आया। वो इस भयानक घटना से अंजान थी। मगर फिर भी बेहोशी के आलम में उसके शरीर ने काफ़ी कुछ झेला था।
मैंने पलक को उसके बिस्तर पर लिटाया और उसे कंबल ओढ़ा दिया। मैंने देखा कि पलक का शरीर काफ़ी कमज़ोर पड़ चुका था। उसके चेहरे की रौनक फीकी पड़ चुकी थी तो वहीं उसके होठ काले पड़ चुके थे। पलक पर अब भी बेहोशी छाई थी। मगर उसकी आंखें परेशानी में इधर-उधर घूम रही थी। इस वक्त पलक बेशक मेरे सामने थी। मगर उसके दिमाग़ में काफ़ी उथलपुथल मची हुई थी। उसके बेरंग से मुरझाए हुए चेहरे पे किसी बात का डर साफ़ छलक रहा था, जो मेरे लिए चिंता का कारण था।
मुझे इस बात की थोड़ी तसल्ली थी कि अब पलक मेरी नज़रों के सामने थी। मगर अब भी उस पर से उस शैतानी साए का दुष्प्रभाव पुरी तरह नहीं उतर पाया था। इसलिए उसका मन अब भी अशांत था। और तब पलक के परेशानी की वजह का ऐहसास होते ही मेरी फिक्रमंद नज़रे उसकी भोली सी सूरत को निहारती रह गई।
"आई एम सॉरी, पलक। मुझे माफ़ कर देना। ये सब मेरी वजह से हुआ है।" पलक के दर्द भरे चेहरे की ओर गहराई से देखते हुए, "मुझे तुम्हें अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहिए था। अगर मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाता तो तुम्हारे साथ ये सब नहीं होता।" मैंने धीमे से उसके सिर को अपने होठों से छूकर माफ़ी मांगी।
मैं पलक को इस हाल में देखकर काफ़ी परेशान था। मुझे दुख था कि मैं आज पलक की हिफाज़त ठीक से नहीं कर पाया था। और मुझे इस बात का बहोत ज़्यादा अफ़सोस था, जो मेरे मन को खाए जा रहा था।
पलक से माफ़ी मांगने के बाद आहिस्ता से पलक के माथे पर अपना हाथ फेरते हुए मैंने अगले ही पल अपने हाथों को आगे की ओर पलक के ऊपर लहराए और अपनी आंखे मूंद ली। मेरे हाथ आगे हवा में उठे थे और अपनी आंखे मूंदते ही मैंने अपनी तिलस्मी मानसिक शक्ति का आवाहन किया। इसके अगले ही पल मेरे हाथों के पंजों से मेरी शक्ति का प्रवाह नीली रंग की चमकीली रोशनी के माध्यम से बाहर आने लगा, जो मेरे हाथों से निकलकर पलक के शरीर पर गिर रहा था। जिसके असर से अब पलक शांत होने लगी थी।
मेरी अलौकिक शक्तियों के असर से अब पलक की तकलीफ कम होने लगी थी। उसके माथे और बाए हाथ पर आई खराशें ठीक होने लगी थी। उसका मन शांत होते ही उसकी धड़कने साधारण होने लगी। धीरे-धीरे अब उसके चेहरे की रंगत वापस लौट रही थी। पलक की परिस्थिति में सुधार आते ही मैंने अपनी आंखें खोलकर उसकी स्थिति की जांच की।
उसके मासूम से चेहरे को देखकर मैं बता सकता था कि अब वो पेहले से बेहतर थी। मगर उसे पूरे आराम की ज़रूरत थी। इसलिए मैं पीछे हटकर वहीं बिस्तर के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। और पुरी रात पलक की हिफाज़त और देखभाल में वहीं उसके पास बैठा रहा।
गुरुवार सुबह 10:00 बजे।
आम दिनों की तरह पलक अपने ऑफिस जा चुकी थी। सुबह जागने पर उसे किसी बात का कोई शक नहीं हुआ। उसे कल रात घटी भयानक घटनाओं का कोई अंदाज़ा नहीं था। और ना ही वो कमज़ोरी या बेचैनी महसूस कर रही थी।
सुबह जागने पर अपने सूर्य देव को प्रणाम करते ही वो अपने काम में जुट गई। पलक बिल्कुल तरोताजा और फुर्ती से अपने रोज के काम में लगी थी। उसके चेहरे पर हर सुबह की तरह वही हल्की मुस्कान थी। उसे सही-सलामत देखकर मेरे मन को थोड़ा करार आया। और मैंने कुछ समय के लिए उसे अकेला छोड़ दिया।
गुरुवार रात 9:00 बजे।
पलक ऑफिस से वापस लौट चुकी थी। रात का खाना खाने के बाद उसने किचन के सभी काम तेज़ी से निपटा लिए थे। और मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था कि इस वक्त वो हॉल में बैठे मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मगर कल रात जो कुछ भी हुआ उसके बाद न जाने क्यों पर मैं पलक के सामने जाने से कतरा रहा था। मेरे मन में कल रात पलक के साथ घटी उन भयानक घटनाओं के दृश्य अब भी ताज़ा थे। उस घटना से जुड़े कई सवाल मुझे सताए जा रहे थे। और इसी वजह से मैं डर रहा था कि कही मेरे मन की परेशानी अगर मेरे चेहरे पर आ गई तो पलक को शक हो सकता था। और मुझे परेशान देखकर वो भी बेचैन हो जाती, जो मैं नहीं चाहता था।
मेरे मन में बहोत कुछ एक साथ चल रहा था। जिसके कारण मैं पलक के सामने जाने से असहेज महसूस कर रहा था। मगर इसके बावजूद मुझे उसके पास तो जाना ही था।
"आज तुम कहां रहे गए थे, चंद्र? मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं।" अचानक अपनी सोच के बीच पलक के इन शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा। और मुझे उसके सामने प्रगट होना पड़ा।
"माफ़ करना, मैं बस यूंही..." कतराते हुए ही सही, "पर तुम बताओ तुम्हारा प्रेजेंटेशन कैसा रहा?" मगर पलक के सामने जाते ही मैंने बात को पलटते हुए सामान्य रहने की कोशिश की।
"बहोत ही बढ़िया।" मेरी ओर देखते ही, "सबको हमारा प्रेजेंटेशन बहोत पसंद आया। और मैडम ने खुश होकर सेमिनार में भी इस नई मैगजीन का प्रेजेंटेशन मुझे ही देने के लिए कहा है।" पलक ने प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा।
"कॉग्राटुलेशंस.!" उसके सामने जाकर बैठते ही मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
"कॉग्राटुलेशंस टू यू टू। ये कामयाबी मेरी नहीं, हमारी है।" अपनी गहरी नजरों से मुझे देखते हुए, "इसके शब्द भले ही मैंने लिखे थे मगर इसकी सोच तुम्हारी है।" पलक ने धीमे से कहा। और उसकी बात सुनकर मेरे होठों पर फिर एक बार मुस्कान उभर आई।
मैं पलक को इसके आगे और कुछ नहीं कह पाया और मेरी नज़रे पलक को एकतक देखती रही। पर तब अचानक कल रात हुए हादसे के दृश्य याद आते ही मेरा मन फिर बेचैन हो उठा।
मगर पलक को देखकर लग रहा था कि उसे पिछली रात घटी घटना का कोई अंदाज़ा नहीं था। और वहीं उसके लिए बेहतर था। पलक अब बिल्कुल ठीक थी। जिस वजह उसे कोई शक नहीं हुआ।
"चंद्र, क्या अब हम कहानी शुरू करे?" पलक की आवाज़ ने फिर मुझे अपने खयालों से बाहर खींचा। पलक पेहले ही अपनी डायरी और पैन लिए तैयार बैठी थी। और उसे देखते ही मैंने पलके झपकाते हुए हामी भर दी।
4) द ब्लडी रैन
अपने इन्हीं शब्दों के साथ, "ये कहानी है एक ऐसे क्रूर शासक की, जिसने अपनी ही प्रजा के मौत के परवाने पर मोहर लगा दी। और उनकी रक्षा करने की बजाय उन्हें मौत के घाट उतार दिया।" आंखिरकार मैंने इस अंतिम कहानी की शुरुआत कर दी।
"क्या! कोई राजा ऐसा कैसे कर सकता है!?" मेरे शुरूआती शब्दों को सुनते ही हैरानी में पलक के मुंह से निकल गया।
"हां, तुमने सही सुना।" उसकी ओर नज़र उठाकर देखते ही, "निसर्व, श्रवा और अविनाश मुंबई के एक प्रोडक्शन हाउस में काम करते थे। और उन दिनों तीनों भारत के भूतिया स्थानों पर बनाने वाले एक टीवी शो पर काम कर रहे थे।" मैंने आगे बढ़ते हुए कहा।
पिछली रात जो भी हुआ उसका मुझे बहोत अफ़सोस था। मगर वही नाजुक हालात मुझे पलक के कुछ ज़्यादा ही क़रीब ले आए थे, जो मैं नहीं चहता था। और इसी असमंजस के चलते मैं पालक से नज़रे नहीं मिला सकता था। इसलिए उसके आसपास चक्कर काटते हुए मैंने कहानी को जारी रखा।
कहानी आगे बढ़ाते हुए, "उनका 'अनहोनी' नामक टीवी शो कई सारे हिट एपिसोड्स दे चुका था। और अब अगले भाग के लिए निसर्व, श्रवा और उनकी टीम राजस्थान पहुंची। और राजस्थान के भानगढ़ पेलिस और कुलधरा गांव की तहकिकात शुरू कर दी।" मैंने कहना जारी रखा।
लिखते हुए अचानक सर उठाकर, "चंद्र, क्या ये वहीं मशहूर भुतहा जगह है जहां आज भी भारत सरकार ने शाम के वक्त जाने पर रोक लगा रखी है?" पलक ने गहरी सोच के साथ सवाल किया।
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ना चाहते हुए भी उसकी आवाज़ सुनते ही मेरी नज़रे पलक के प्यारे से चेहरे पर उठ गई, "हां।" और उसकी छोटी सी झलक पाते ही मैंने हड़बड़ाहट में अपना सर झुका लिया। "निसर्व और उसकी टीम अपनी शूटिंग ख़त्म करने के बाद अगली सुबह राजस्थान से निकलने वाले थे। इसलिए सभी ने राजस्थान में अपनी इस आंखरी रात को यादगार बनाने के लिए रेगिस्तान में म्यूजिकल इवनिंग करने का फैसला किया।
उस दिन अंधेरा होने तक सब लोग जल्दी ही अपना काम ख़त्म कर चुके थे। और अब समय था राजस्थान के रेगिस्तान का लुफ्त उठाने का। सब लोग यहां का काम अच्छी तरह ख़त्म होने पर काफ़ी खुश थे।
रेगिस्तान का शांत और ठंडा वातावरण, खुले आकाश के तले जलती लकड़ियों पर बना स्वादिष्ठ खाना और राजस्थानी संगीत उनकी खुशी को दुगना कर रहा था।
संगीत और नृत्य का कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद अब बारी थी अगली पेशकस की यानी कठपुतली नाच की। जिसे पेश करने के लिए जोगिंदर काका अपने साथियों के साथ वहां आ पहुंचे। उनके आते ही कुछ ही मिनटों में कठपुतली नाच का माहौल सजा दिया गया।
सभी ने राजस्थान की वेशभूषा, प्राचीन संस्कृति, संगीत और कठपुतली नाच के बारे में बहोत कुछ सुना था। मगर इन चीज़ों को ख़ुद अनुभव करना सभी के लिए एक अलग ही जादुई ऐहसास था। और फिर तब शुरू हुआ राजेस्थान और जोगिंदर काका का मशहूर कठपुतली नाच। जो माहौल में एक अजब ही किस्म का रंग घोल रहा था।
इस बीच हमेशा की तरह कठपुतली नाच की शुरूआत होते ही निसर्व ने इन खूबसूरत पलों की कई सारी यादें अपने कैमरा में कैद करने लगा । वही उसका दूसरा कैमरा पेहले ही विडियो मोड़ पर सेट इन पलों को संजो रहा था।" और पलक के सवाल का जवाब देते ही मैंने कहानी आगे बढ़ा दी।
"अपने देश की अलग-अलग संस्कृति जानना सच में काफ़ी रोमांच और उत्साह से भरपूर होता होगा।" पलक ने एक अजब से लगाव और उत्साह से कहते हुए अपनी आंखें बंद कर ली और एक गहरी सांस ली और अचानक ही पलक के चेहरे पर खूबसूरत सी मुस्कान उभर आई, जिस पर से नज़रे हटा पाना मेरे लिए मुश्किल हो गया था।
इतने महिनों में आज पेहली बार मैंने पलक को बिना किसी दबाव या उलझन के इतने खुले दिल से मुस्कुराते हुए देखा था। वो ऐसे बर्ताव कर रही थी, जैसे वो भी सभी के साथ उस जगह पर मौजूद हो। और उस म्यूजिकल नाईट का आनंद ले रही हो। आज सच में उसे देखकर लग रहा था जैसे वो अपनी उन यादों की तकलीफ़ से बाहर आ चुकी थी। और पलक का मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरे होठों पर भी मुश्कन ले आई।
"मीलों तक फैला शांत सर्द रेगिस्तान, शरीर में कपकपी भरती ठंड, काले अंधेरे में सामने की ओर जलती गर्म आग की लपटे और खुले आकाश तले रात के सन्नाटे के बीच सुनाई देता कठपुतली नाच का पारंपरिक संगीत एक गज़ब का माहौल बना रहा था।" मुश्किल से पलक से अपनी नज़रे हटाते ही, "तब अचानक अपने कैमरा से तस्वीर खींचते वक्त निसर्व ने उन कठपुतली वाले लोगों पर गौर किया। और उनके चेहरे पर एक अजीब सी गहरी उदासी देखकर वो सोच में पड़ गया।
निसर्व के संगीत के बोल पर ध्यान देने पर उसे समझ आया कि जोगिंदर काका और उनके साथी कठपुतली नाच और पारंपरिक संगीत के ज़रिए सालों पुरानी किसी लोककथा का वर्णन कर रहे थे। कहानी के बदलते किरदार, माहौल और परिस्थितियों के साथ उन सभी लोगों के चेहरे के भाव बाकी सब की तरह बदल तो रहे थे। मगर फिर भी उन सभी की आंखों में किसी बात का गहरा दर्द छुपा था। किसी अनकही बात की तकलीफ़ और डर दोनों उनकी आंखों से साफ़ ज़ाहिर थे। उन सबको दुखी देखकर निसर्व ने इसके पिछे की वजह जाननी चाही। और उसने उनके कठपुतली नाच और संगीत पर ध्यान देते हुए उसे समझने की कोशिश की। लेकिन उसके लिए भाषा काफ़ी अलग होने की वजह से उसे कहानी पूरी तरह समझ नहीं आई। मगर तब 'राणो थो घणो क्रूर। थोए गाम नी जणता ने दियो मौत ने घाट उतार। जे दिन थो नीर कोनी बरसावे बादली, सदा खूणी सावण होय। इन कुछ आधे-अधूरे मुश्किल से समझ आने वाले शब्दों को सुनकर निसर्व को पता चला कि, 'वो राजा बहोत निर्दय था। उसने गांव की जनता को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। और तब से गांव में पानी नहीं बर्षा बल्कि सावन खूनी हो गया।" मैंने आगे कहना जारी रखा।
मेरी बात सुनते ही, "कोई राजा ऐसा कैसे कर सकता है ? और वो लोग उदास क्यों थे, चंद्र?! और... खूनी सावन' ये कैसी कश्मकश थी!" पलक अपनी व्याकुलता और परेशानी में बहोत कुछ बोल गई।
तुम्हें परेशन देखकर एक बार फिर मुझे तुम्हारी चिंता होने लगी है। नहीं पलक, इतना जज़्बाती होना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है। तुम भले ही अपने अतित के दर्द से निकल चुकी हो। मगर अब भी तुम दूसरो की तकलीफ़ ज़रा भी नहीं सह सकती। तुम... इतनी कमज़ोर नहीं पड़ सकती। तुम्हें मज़बूत बनना होगा, पलक। तुम्हें अपने जज़्बातों पर काबू करना सीखना होगा।
पलक के इस सवाल ने मुझे फिर परेशान कर दीया। पलक अपनी डायरी में मेरे कहे शब्दों को सहेजने में व्यस्त थी। मगर मेरी फिक्रमंद नज़रे एक बार फिर उस पर रुकी रही। पर मैं उसके सामने अपनी परेशानी ज़ाहिर नहीं कर सकता था।
अपने मन को मज़बूत करते हुए, "इन सब रहस्यों का खुलासा कल होगा। काफ़ी देर हो चुकी है। तुम्हें अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहिए।" सख़्ती से कहा । मगर पलक ने बिना किसी एतराज़ के मेरी बात मान ली, जैसे उसे मेरी सख़्ती से कोई फ़र्क नहीं पड़ा।
मेरे कहने पर पलक अपने कमरे में जाकर आराम से सो चुकी थी। मगर मैं उसकी चिंता में एक भी पल चैन से नहीं बैठ सकता था। कहने के लिए तो मैं पलक के साथ उसके कमरे में उसके सामने बैठा था। मगर मेरा मन लगातर कल रात घटी घटना की ओर खीच रहा था।
तब अचानक अपने गहरे चिंतन के बीच मेरी नज़रे पलक के सोते हुए प्यारे से चेहरे पर गई। आरामदायक बिस्तर पर सोते हुए उसने अपने नर्म-मुलायम कंबल को आगे से अपने सर के नीचे दबाए रखा था। और उसने दोनों हाथों कंबल को कसकर सीने से लगा रखा था। सोते समय उसकी सूरत पर एक ठंडक भरा सुकून था और उसके नाज़ुक से होठों पर मंद सी मुस्कान फैली थी। वो इस तरह सोते हुए काफ़ी प्यारी लग रही थी।
मगर रात बीतते हुए ठंड बढ़ रही थी। इसलिए खड़े होकर पलक के पास जाते ही मैंने आहिस्ता से उसके हाथों से कंबल निकाला और उसे पलक को ठीक ओढ़ा दिया। इस दौरान पलक के आकर्षक उजले चेहरे की देखते ही मैंने उसके गाल और सर पर हल्के से हाथ फेरा। और उसे अपनी निगरानी में बेखौफ होकर चैन से सोते हुए देखकर मुझे फ़िर खुद की नाकामी पर अफ़सोस होने लगा। और एक बार फ़िर पिछली रात का वो खौफ़नाक मंज़र मेरी आंखों के ज़िंदा हो उठा।
रह-रहकर उस मायावी राजकुमारी के कहे शब्द मेरे जहेन में घूम रहे थे। वापस लौटने के कैफ में वो कई बेगुनाह लोगों की जान ले चुकी थी, जो किसी भी प्रकार से जायज़ नहीं था। मगर उसकी हरकतें देखकर ये भी ज़ाहिर था कि पलक के सामने शुरूआती दिनों में मेरी रखी गई शर्त की वजह से वो शैतान राजकुमारी पलक पर सीधे वार नहीं कर पाई थी। वरना वो पलक को कब की मार चुकी होती। मगर अपना मक़सद पुरा करने के लिए उसने इस बार अपने शिकार को मारने के लिए दूसरा तरीका इजार्द किया था। लेकिन मैं ये बात नहीं समझ पा रहा था कि जब सो बलि चढ़ाने के बाद राजकुमारी का मक़सद पुरा हो सकता है तो उसने ऐसा क्यों कहा कि 'उसके और उसके मक़सद के बीच केवल ये लड़की यानी पलक थी.!? जबकि पलक उसका सौवा नहीं बल्कि निन्यानवा शिकार थी।
क्रमश:
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शुरूआत हो चुकी है चंद्र की सबसे महत्वपूर्ण अंतिम कहानी की। क्या राज़ खोलनेवाली है पलक के सामने चंद्र की ये कहानी? क्या पलक इस कहानी में छिपी पहेली को बूझ पाएगी? क्या होगा अंजाम पलक की इस उलझनों से भरी ज़िंदगी में? जानने के लिए पढ़ते रहे जज़्बातों के उतार-चढ़ाव, रहस्यों का जाल और बेखबर प्यार की ये कहानी से लिपटी इस दास्तान को, जिसका नाम है ____?! 🤔 (अब आप ही बताए।)
आने वाला अगला भाग और भी डरावना और दिलचस्प होने वाला है। अगले अपडेट के लिए हमसे जुड़ें रहे और हमें अपने बहुमूल्य अभिप्राय ज़रूर दे। साथ ही अगर आपको ये कहानी पसंद आए तो इस कहानी पर वोट, कमेंट कर मुझे प्रोत्साहन भी ज़रूर दे।
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