Chapter 22 - Palak. (Part 1)
हेल्लो दोस्तों, हर बार की तरह समय की कमी होने के बाद भी मैंने दिल लगाकर इस चैप्टर को लिखा है । लेकिन इसके बावजूद भी अगर कोई कमी हो तो प्लीज़ संभल लीजिएगा । और अपने कमाल के एक्स्पीरियंस इस चैप्टर के कॉमेंट बॉक्स में साझा करिएगा।
मैं जानती हूं कई साइलेंट रीडर्स भी इस कहानी को बिना भूले पढ़ रहे है। लेकिन ऐसा करने से आप मेरे लिए महज एक नंबर बनकर रह जाएंगे। इसलिए प्लीज़ इस कहानी को अच्छी रेटिंग दे और अपनी खुशी तथा अनुभव मेरे साथ यहां साझा कर हमारी इस यात्रा का हिस्सा बने। मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट हमेशा कीमती रहेंगे।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
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कहानी अब तक: मैं बस ख़ामोशी से पलक की ओर निहारता रहा । लिखते हुए पलक की आंखें भारी होने लगी । और उसके कुछ ही देर बाद वो वहीं सो गई । पलक के सोते ही मैंने उसे उस दूसरे सोफ़ा पर ठीक से लिटा दिया । अगले ही पल मैंने आहिस्ता से पलक को चद्दर ओढ़ाई।
तभी सोते हुई पलक का मासूम सा चेहरा देखकर अचानक मेरे ज़हन में आज उसके साथ हुए हादसे की तस्वीरें उभर आई। पलक इस समय मेरी नज़रों के सामने चैन की नींद में खोई थी और वो अब महफूज़ थी। मगर इसके बावजूद वो ज़्यादा थकी हुई और परेशान लग रही थी। जिसे महसूस कर मेरे माथे पर भी चिंता की लकीरें दौड़ गई। तब अपनी इसी चिंता में उसे ओढ़ाते ही मैं वहीं पलक और आर्या के सामने कुर्सी पर बैठ गया और इसी तरह एक और पूरी रात मैं उनकी निगरानी करता रहा ।
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अब आगे...
सोमवार रात 8:00 बजे।
मैंने और आर्या ने आज जिन मुसीबतों का सामना किया उससे उबरना मेरे लिए बहोत मुश्किल था। अगर आज चंद्र सही वक्त पर न आया होता तो हमें अपने रिसर्च की बहोत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती।
उस वक्त मैं बहोत ज़्यादा डर गाई थी। जब उन बदमाशों ने मेरा पीछा करते हुए पेहली बार मुझ पर हाथ उठाया तब आर्या ने बीच में आकर मुझे बचा लिया। लेकिन वो बदमाश हमारी सोच से कई ज्यादा खतरनाक निकले। वो सब पूरी तैयारी के साथ, हम दोनों पर झुंड बनाकर टूट पड़े। ऐसे में आर्या ने और मैंने भी उन्हें रोकने की, उन्हें समझाने की बहोत कोशिश की मगर उनकी ज्यादती बढ़ती चली गई। और फिर आर्या के लिए भी उन्हें संभाल पाना मुश्किल हो गया। आर्या ने अकेले उनसे लड़ते हुए मुझे वहां से भागने को कहा। लेकिन उसे वहां अकेला छोड़ जाने का मेरा मन नहीं किया। वो काफ़ी जाबाज़ी से उनसे लड़ रहा था। मगर तभी दो बदमाश अपने हाथ में छुरा लिए मेरी ओर बढ़ने लगे। और तब ना चाहते हुए भी मुझे आर्या को छोड़कर वहां से भागना पड़ा।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस ओर जा रही थी। डर के मारे मेरे हाथ-पैर फुल रहे थे। मेरा पूरा शरीर डर से कांप रहा था। मगर इसके बावजूद किसी तरह मैं जान बचाकर भागे जा रही थी । भागते वक्त मैं बस यहीं दुआ कर रही थी, 'भगवान करे मुझे कोई ऐसा मिल जाए जो हमारी मदद कर पाए।' तब अचानक मुझे चंद्र की वो बाते याद आई । और अगले ही पल अचानक मेरे मुंह से चंद्र का नाम निकल गया। एकाएक मैं अनजाने में चंद्र को पुकारने लगी।
और, महादेव का शुक्र है कि अगले ही पल चंद्र मेरे सामने खड़ा था ।
चंद्र ने आते ही मुझ पर हमला करने आए गुड्डों को मार भगाया । साथ ही उन सभी बदमाशों को अच्छा सबक सिखाया, जो मुझे और आर्या को मारने आए थे । चंद्र की अद्भुत शक्तियों के आगे कोई भी बदमाश नहीं टिक पाया।
आज सिर्फ़ चंद्र की वजह से हम दोनों की जान बच पाई थी। मैं आर्या को वहां अकेला उस हालत में नहीं छोड़ सकती थी। इसलिए मेरे कहने पर चंद्र उसे घर ले आया । लेकिन घर पहुंचने के बाद भी मैं हम पर हुए इस हमले को लेकर काफी परेशान थी। ऐसे में चंद्र ही था जिसने फिर मुझमें हौसला जगाया । उसके बाद खुदको संभालते हुए मैंने आर्या के जख्मों को साफ़ कर उसकी पट्टी की और अपने रोज़ के काम ख़त्म किए ।
चंद्र के साथ होने से काफ़ी चीजों को संभालना मेरे लिए आसान हो गया और धीरे-धीरे मैं साधारण स्थिति में आने लगी। चंद्र के वापस आते ही हमने तरंग और उसके भाई की अधूरी छोड़ी कहानी को आगे बढ़ाया। मगर तभी अचानक हमने देखा कि आर्या को ठंड लग रही थी और उसे कंबल की ज़रूरत थी। इसलिए कहानी के बीच में उठकर मैं किचन का सामान रखकर ऊपर अपने कमरे में आर्या के लिए कंबल लेने पहुंची।
मगर जैसे ही मैंने कमरे के अंदर पैर रखा मैंने एक अजीब सी घूटन महसूस की। मुझे अंदर जाते समय घबराहट हो रही थी। मगर फिर भी हिम्मत कर मैं अंदर गई और अलमारी से कंबल निकाला, जो दरवाज़े के बिल्कुल सामने कमरे के अंखिर में थी। पर तभी अचानक मैंने अपने पीछे एक ठंडी हवा का झोंका मेहसूस किया, जैसे मेरी रीड की हड्डी जम सी गई हो। तब अगले ही पल मैंने मुड़कर खिड़की की ओर देखा । मगर कमरे की खिड़की बंद पाते ही मेरी धड़कने तेज हो गई। मुझे किसी अंजान डर के साए ने घेर लिया। डर के मारे मैंने तेज़ी से अपने कदम उठाए और कमरे से बाहर जाने की कोशिश की। मगर तभी अचानक मैंने अपने पैरों को जकड़ा हुआ पाया। और सर झुका कर देखते ही खौफ के मारे मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ गया।
सर झुकाते ही मुझे दो भयानक लंबे काले हाथ दिखाई दिए। कमरे के फर्श से निकले हुए उन डरावने ज़हरीले-लंबे नाखून से भरे पंजों ने मेरे दोनों पैरों को जकड़ रखा था। इस डरावने दृश्य को देखते ही मैंने चिल्लाना चाहा। मगर मेरी आवाज़ मेरे मुंह में ही अटक कर रह गई। मगर ये खौफनाक मंज़र यहां नहीं रुका। अगले ही पल उसी किस्म के दूसरे दो हाथ मेरे शरीर के इर्दगिर्द लिपट गए। धिरे-धिरे उन सभी हाथों की पकड़ मुझ पर कसती जा रही थी और वो मुझे पीछे घसीटने लगे। खुदको इस भयंकर हालत में फंसा पाकर काफ़ी मुश्किल से अपनी हिम्मत को इक्कठा कर एक बार फ़िर मैंने चिल्लाने की कोशिश की। मगर उसी वक्त अचानक मैंने अपनी सांसे बंध होती महसूस की, जैसे कोई मेरा गला दबा रहा था।
उन डरावने जानलेवा मंजर में जकड़े अब मेरी सांस मंद होने लगी और मुझ पर बेहोशी छाने लगी। तब अचानक अगले ही वो सभी भयानक हाथ पलक झपकते ही गायब हो गए। जैसे वहां कभी कुछ था ही नहीं।
उन भयानक भूतिया हाथों की चूंगल से छूटते ही मैं भागते हुए कमरे से बाहर निकल आई। और बाहर आते ही चंद्र को अपने सामने पाकर मेरी जान में जान आई।
शायद हमारे साथ बस्ती में घटी घटना को लेकर मैं कुछ ज्यादा ही परेशान और डरी हुई थी। और शायद इसी कारण मुझे अजीब अजीब सी चीजे नज़र आ रही थी। शायद ये मेरा वहेम ही था, जिसने मुझे इतना सेहमा कर रख दिया था।
"चंद्र..!" चंद्र की मौजूदगी ने मुझे हिम्मत दी और मैं उसके साथ नीचे हॉल में लौट गई।
मेरा बुझा हुआ चेहरा देखकर शायद चंद्र को किसी अनहोनी का एहसास हो गया था। और अपनी इसी बेचैनी के वश उसने मुझसे अपनी परेशानी की वजह जाननी चाही। मगर मैं चंद्र को फिर से दुःखी नहीं करना चाहती थी। इसलिए मैंने इस हादसे को नज़रंदाज़ कर दिया।
मैंने चंद्र से इस डरावने दृश्य का कोई ज़िक्र नहीं किया । क्योंकि एक बार फ़िर मैं उसे परेशान नहीं करना चाहती थी। साथ ही मुझे डर था कि इस घटना के बारे में जानकर चंद्र मुझे यहां हरगिज़ नहीं रहने देगा। वो मुझे इस जगह से और खुदसे दूर कर देता। जो मैं नहीं चाहती थी।
वापस जाते ही मैंने सावधानी से आर्या को कंबल ओढ़ाया और ख़ुद भी चद्दर ओढ़े अपनी जगह पर बैठ गई। मेरे सवाल के साथ ही चंद्र ने एक बार फ़िर कहानी शुरु की ओर मैं उसके कहें शब्दों को अपने डायरी के पन्नों में संजोती रही। तरंग और पूर्वा की इस कहानी में आगे बढ़ते हुए कहानी का अंत सुनते-सुनते कब मुझे नींद आ गई पता ही नहीं चला।
मंगलवार सुबह 7:00 बजे।
अपने चेहरे पे तेज़ हवा का झोंका मेहसूस करते ही मेरी आंखे खोल गई । और तभी मैंने आर्या को अपने सामने पाया । वो अब पूरी तरह होश में आ चुका था और मेरे सामने खड़ा था । वो बिल्कुल मेरे सोफ़ा के क़रीब उससे सट कर खड़ा था । वहीं उसका एक हाथ मेरी दूसरी तरफ सोफ़ा के कगार पर था और वो मुझ पर झुका हुआ था ।
उसे अपने इतना क़रीब पाते ही मैं हड़बड़ाहट में उठकर बैठ गई और चंदर को ऊपर तक खींचते हुए मैंने खुदको छुपाने की बेकार कोशिश की। हड़बड़ाहट में मैंने यहां-वहां सर घूमते हुए चंद्र को ढूंढा। मगर अफ़सोस वो वहां नहीं था।
तब फिर से आर्या की तरफ नज़र घूमते हुए, जो अब दो कदम पीछे हट कर सीधा खड़ा हो गया था। "आ...आर्या..! तत..तुम अपनी जगह से क्यू उठे.?! तुम्हें आराम की ज़रूरत है।" मैंने परेशान होकर कहा।
हल्की घबराहट से अपना सर झुकाते हुए, "मैं अब ठीक हूं, पलक।" आर्या ने कहा और धीरे से पलटते हुए सोफ़ा पर मेरे पास बैठ गया।
आर्या के बैठते ही मैंने कतराते हुए अपने पैर अंदर खींच लिए और पैरों को मोड़कर सीधी बैठ गई।
"पलक..?" मेरे बैठते ही आर्या की नज़रे मुझ पर मुड़ गई। "कल... मेरे बेहोश होने के बाद क्या हुआ था.?! और हम यहां... कैसे आए.? मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि तुम अकेली मुझे यहां तक कैसे लाई.?!" आर्या ने अपनी हल्की भूरी आखों से शक भरी निगाह से घूरते हुए सवालों की छड़ी लगा दी।
एक आम इंसान होने के नाते उसका शक करना बिल्कुल जायज़ था। आर्या के सिवाय अगर उन हालातों में कोई भी आम आदमी होता तो वो भी उन बातों पर ज़रूर गौर करता, जो आर्या के दिमाग में खलबली मचा रहे थे।
लेकिन सोचने वाली बात ये थी कि आर्या की इस हालत में मैं उसे क्या बताती.?! क्या उसे ये बताती कि चंद्र ने हमें बचाया था! और अगर वो चंद्र के बारे में पूछता तो क्या उसे मैं ये कहती कि 'चंद्र एक बहोत अच्छी आत्मा है। वो यहीं मेरे साथ रहता है और मैं उससे...' नहीं, हरगिज़ नहीं। मैं आर्या को ऐसा कुछ भी नहीं बता सकती थी।
तब अचानक मेरी आंखों के सामने चुटकी बजाते ही, "कहां खो गई तुम..?" अपने खयालों से बाहर आकर मैंने आर्या को कहते सुना।
तब चौकते हुए उसकी ओर देखते ही, "वववो... तुम्हारे बेसुध होने के बाद बस्ती के कुछ लोगों ने आकर हमारी मदद की। उन्होंने सभी गुड्डो को मारकर भगा दिया। मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि तुम्हे कहां ले जाऊ । इसलिए उनकी मदद से मैं तुम्हें यहां ले आई।" मैंने अपनी सफ़ाई में धीरे से कहा।
"थैंक गॉड कि कम से कम बस्ती के बाकी लोग अच्छे हैं।" गहरी सोच के साथ कहते ही, "वैसे तुम तो ठीक हो ना.?" आर्या ने मेरी ओर देखा और मेरी फिक्र करते हुए उसने बारी-बारी से मेरे हाथों को पलटते हुए मेरी सलामती की जांच की।
आर्या मेरी सुरक्षा को लेकर काफ़ी परेशान था। मेरे लिए उसकी चिंता उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी। मगर उसकी इस अचानक की गई हरकत से मैं बिल्कुल स्तब्ध रह गई। उसके छूते ही मैं हिचकिचाहट मेहसूस कर रही थी। मगर उसकी हालत देखकर मैं उसे कुछ नहीं कह पाई।
तब कुछ पलों बाद परेशान होकर मेरे हाथों की जांच करते ही आर्या ने अपना हाथ मेरे चेहरे की ओर बढ़ाया।
मेरे गाल को हल्के से छूते ही आर्या ने मेरे चेहरे को धीरे से एक तरफ मोड़ा। "तुम्हें कहीं चोट तो नहीं आई.?" और अपने दूसरे हाथ से मेरे कंधे से बालों को हटाते हुए आर्या ने मेरे चेहरे और आसपास के अंगो की जांच की।
उस वक्त मैं जानती थी कि आर्या को मेरी चिंता थी। और अपनी इसी चिंता के कारण वो परेशान होकर मेरी सलामती को सुनिश्चित कर रहा था। मगर फिर भी उसकी नज़दीकी से मैं असहज महसूस कर रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं आर्या को कैसे रोकूं.?! क्योंकि उसके जज्बातों को ठेस पहुंचाकर मैं उसे नाराज़ भी नहीं करना चाहती थी।
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं और तभी अचानक मैंने सामने की ओर पलटते ही आर्या के हाथों को अपने हाथों में ले लिया। "मैं... बिल्कुल ठीक हूं, आर्या। प्लीज़, तुम परेशान मत हो।" और उसे यकीन दिलाते हुए आहिस्ता से कहा।
मेरे इस अनायास बर्ताव से आर्या एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। और बिना कुछ कहे हैरानी से मुझे देखता रहा।
तब मुझे लगा कि आर्या के हाथों को थामकर मैंने ठीक नहीं किया। कहीं आर्या इसका मतलब कुछ और ना समझ बैठे?! मैं आर्या को कोई भी ऐसा संकेत नहीं देना चाहती थी जिससे मुझे लेकर उसके मन में ऐसी उम्मीदें बंधे जिसे मैं कभी पूरा न कर पाऊं।
"आई एम सॉरी!" अचानक आर्या ने हमारे बीच की ख़ामोशी तोड़ते हुए धीमे से कहा और अपना सर झुका लिया।
शायद आर्या ने मेरे चेहरे पर उमड़े असहेज भाव को पढ़ लिया था। वो मेरी मजबूरी समझ चुका था। और शायद इसीलिए वो अपनी फिक्र और जज़्बात को दबाए शांत हो गया। जो मेरे लिए अच्छा था।
अपनी भूल का एहसास होते ही, "लेकिन क्या तुम ठीक हो, आर्या?" मैंने अपने हाथ पीछे खींच लाए और धीरे से सवाल किया।
आर्या ने मेरी आंखों में गहराई से देखा, "मैं ठीक हूं, पलक।" और जवाब देते ही झट से खड़ा हो गया।
लेकिन खड़े होते ही आर्या के मुंह से दर्द भरी आह निकल गई। शायद कल की हाथापाई में आए जख्मों के घाव अब भी आर्या को तकलीफ़ दे रहे थे। उसके वो घाव अब भी ताज़ा थे।
"तुम्हें आराम की ज़रूरत है।" अगले ही पल अपने पैरो पर खड़े होते ही, "प्लीज़, तुम यहीं बैठो मैं तुम्हारे लिए चाई बनाकर लाती हूं।" मैंने आर्या की तरफ देखकर उससे गुजारिश की। और ख़ुद तेज़ी से किचन की ओर बढ़ गई।
किचन में जाते ही अपना चेहरा और हाथ धोते ही मैंने चाई उबाल के लिए रख दी। पर आर्या की तबियत ध्यान में रखते हुए मैं नाश्ते में कुछ भी ऐसा-वैसा नहीं बना सकती थी। मुझे कोई ऐसी डिश बनाने की ज़रूरत थी जो पौष्टिक और सेहतमंद हो साथ वो आसानी से बन जाए। इसलिए मैंने नाश्ते में रवा थालीपीठ बनाने की सोची। और फिर मैं तुरंत अपनी तैयारी में जुट गई।
मैं अपने काम में व्यस्त थी। लेकिन मेरी नज़रे चंद्र को खोज रही थी। मैं जानती थी कि आर्या की मौजूदगी के कारण वो मेरे सामने नहीं आयेगा। लेकिन इसके बावजूद वो यहीं कहीं होगा। और कल जिस तरह उसने मेरी हिफाज़त की उसे लेकर अब चंद्र पर मेरा विश्वास और भी मज़बूत हो गया था।
कल चंद्र ने ना सिर्फ मेरी रक्षा की बल्कि उसने आर्या को भी बचाया । मेरे कहने पर चंद्र आर्या को महल ले आया और इतना ही नहीं बल्कि मेरे साथ चंद्र भी सुबह तक वहीं बैठा रहा । उसी दौरान कल चंद्र ने मुझे जिस कहानी का अंतिम भाग कहे सुनाया वो अभी तक मेरे जहन में ताज़ा था।
और तब चंद्र और उसकी कहानी का ख्याल आते ही मुझे अचानक याद आया कि मैं अपनी डायरी वहीं हॉल में सोफ़ा पर छोड़ आई थी। और कहीं अगर वो डायरी आर्या के हाथ लग गई तो वो चंद्र का राज़ जान जाएगा, जो मैं हरगिज़ नहीं होने दे सकती थी। इसलिए डायरी का ध्यान आते ही मैं तेज़ी से हॉल की तरफ़ भागी।
"क्या हुआ ?" मुझे जल्दबाजी में आते देख आर्या ने पूछा।
"नहीं, वो मैं बस कुछ भूल गई थी।" मैंने डायरी के लिए नज़रे चारों ओर घूमते हुए कहा।
मेरे इतना ढूंढने के बावजूद मुझे अपनी डायरी कहीं नहीं मिली। लेकिन किचन में स्टॉव ऑन होने की वजह से ना चाहते हुए मुझे यूंही वापस लौटना पड़ा।
अगर वो डायरी आर्या के हाथों लग गई तो पता नहीं क्या होगा?! मायूस होकर मैं किचन में अपना काम किए जा रही थी। पर अब भी मुझे डायरी को लेकर चिंता हो रही थी। चंद्र... कहां हो तुम.? प्लीज़ आ जाओ, मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। मैं भोलेनाथ से बस यहीं प्रार्थना कर रही थी के किसी भी तरह वो डायरी आर्या के हाथ ना लग पाए।
"फिक्र मत करो, पलक।" अचानक कहीं से चंद्र का स्वर धीमे से मेरे कानों में गूंजा, "तुम्हारी डायरी सुरक्षित है।" और मेरे मुड़ते ही चंद्र ने अपना हाथ आगे बढ़ाया जिसमे मेरी वहीं डायरी थी।
"थैंक यू सो मच, चंद्र। इस डायरी की वजह से तो मैं परेशान हो गई थी। आई एम सॉरी, चंद्र। तुम तो जानते ही हो कि अगर ये डायरी आर्या के हाथ लगती तो क्या होता।" चंद्र के हाथ से डायरी लेते ही मैंने राहत की सांस ली और उस डायरी को अपने सीने से लगा लिया, मानो जैसे वो कोई कीमती खज़ाना या खज़ाने का नक्शा हो।
चंद्र मुझे इस तरह भावूक होते देख निशब्द रह गया। और मुझे खामोशी से निहारता रहा।
"इट्स ओके। अब तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं।" चंद्र ने हल्की मुस्कान के साथ कहा। "तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। हम बाद में मिलते है।" और मैंने भी जवाब में हल्की मुस्कान के साथ अपना सर हिलाया।
उसके कुछ मिनिटों बाद मैं चाई-नाश्ता लेकर हॉल में पहुंची जहां आर्या टीवी देखते हुए सोफ़ा पर बैठा मेरा इंतज़ार कर रहा था। हॉल में पहुंचते ही मैंने चाई-नाश्ते की प्लेट सोफ़ा के सामने टेबल पर रख दी।
उसके बाद यूंही इधर-उधर की हल्की-फुल्की बाते करते हुए हम दोनों ने अपना नाश्ता ख़त्म किया। उस वकत जानबूझकर मैंने पिछले शाम का कोई ज़िक्र नहीं होने दिया, ताकि आर्या फिर कल शाम हुई आफत के बारे में ज्यादा सवाल-जवाब ना कर सके।
"थैंक्स, पलक। नाश्ता सच में लाज़वाब था।" आर्या ने अपनी प्लेट नीचे रखते ही मुस्कुराते हुए कहा। और मैंने जवाब में मुस्कुराते हुए अपना सर हिलाया।
"लेकिन अब मुझे चलना चाहिए। वैसे भी तैयार होकर ऑफिस जाना है।" अगले ही पल आर्या ने अपने पैरों पर खड़े होते ही कहा। और साथ मैं भी अपनी जगह से खड़ी हो गई।
"लेकिन आर्या, अभी तुम्हारे घाव पूरी तरह ठिक नहीं हुए हैं। तुम्हें आराम करना चाहिए।" मैंने फिक्र करते हुए कहा।
"मैं अब बिल्कुल ठिक हूं, पलक।" धीरे से अपना जैकेट पहते ही मेरी ओर मुड़ते हुए, "सिर्फ़ बदन में थोड़ा सा दर्द था। लेकिन तुम्हारे छूने से अब वो भी कम होने लगा है।" आर्या ने अपने हाथों को गहराई से देखते हुए मुस्कुराकर कहा।
अगले ही पल आर्या ने अपनी नज़रे उठकर मेरी ओर देखा, जैसे वो मुझसे कुछ कहना चाहता था। मगर ये समझते हुए भी मुझे उससे ये पूछने की हिम्मत नहीं हुई। क्योंकि आर्या कब कौनसा सवाल पूछ बैठता इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था। और मैं ये नहीं चाहती थी कि आर्या मुझसे कोई ऐसा सवाल करे जिसका मैं उसे कोई जवाब न दे पाऊं।
आर्या को लेकर मेरे दिमाग़ में कई चीजें दौड़ रही थी, जिसके चलते मैं उसे कुछ नहीं कहे पाई और बस ख़ामोशी से देखती रही। तभी अगले ही आर्या बिना कुछ कहे पलटते ही आगे बढ़ गया। उसने तेज़ी से अपने जूते पहने और आगे बढ़ गया।
आर्या के बाहर जाते ही मैं भी उसे देखने उसके पीछे दौड़ पड़ी। मैं सिर्फ़ ये सुनिश्चित करना चाहती थी कि वो सही-सलामत अपने घर पहुंच जाए।
महल की सीढ़ियों से उतरते ही आर्या ने पलटकर मुझे देखा और मुसकुराते हुए अपना हाथ हिलाया। उसके तुरंत बाद आगे मुड़ते ही वो अपने मोबाइल फोन पर किसी से बात करता हुआ आगे चला गया।
आर्या के जाने के बाद मैं भी दरवाज़ा बंद कर अपने कमरे में तैयार होने चली गई।
सुबह 10:00 बजे।
सलोनी के साथ सही समय पर ऑफिस पहुंचने के बाद मैं अपने आर्टिकल पर काम करने में व्यस्त हो गई। तब काम करते वक्त अचानक मेरा ध्यान आर्या के कैबिन की ओर गया।
क्या आर्या ठिक होगा? क्या वो सच में आज ऑफ़िस आया होगा?! होश में आने के बाद वो जिस तरह महल से अकेले गया था उसे लेकर मुझे आर्या की थोड़ी फिक्र हो रही थी।
हमारे मैगजिन के अगले इश्यू की डेट क़रीब होने की वजह से मुझ पर काम का काफ़ी दबाव था। मगर इसके बावजूद कई बार मेरा ध्यान आर्या के कैबिन की और गया। लेकिन मैं अपनी जगह पर चुपचाप बैठे अपना काम करती रही।
तभी किरन ने मेरे पास आते ही बताया कि, क्रितिका मैडम ने मुझे उनकी कैबिन में बुलाया है। उन्हें तुमसे कुछ इंपोर्टेंट बात करनी है। जो यहां की रिसेप्शनिस्ट थी। और उसे थैंक्स कहते ही मैं तुरंत क्रितिका मैडम की कैबिन की ओर चल पड़ी।
"मे आई कम इन, मेम?" कैबिन का दरवाज़ा खोलते ही मैंने मैडम की ओर देखते हुए इजाज़त मांगी। और उनका इशारा पाते ही मैं अंदर उनके सामने जाकर खुर्शी पर बैठ गई।
मैडम किसी फाइल को अपने हाथों में लेकर उसे ध्यान से देख रही थी।
"आपने मुझे बुलाया?" उनकी ओर देखकर मैंने धीरे से सवाल किया।
"हां, मैंने सुना कल आर्या और तुम पर हमला हुआ था।" फाइल टैबल पर रखते ही, "क्या ये बात सच है?" मैडम ने मुझे देखते हुए गंभीरता से सवाल किया।
"जी मेम, ये सच है।" मैंने गंभीरता से सोचते हुए धीमे से जवाब दिया।
मैडम को ये कैसे पता चला? कहीं आर्या ने तो उन्हें ये नहीं बताया?! और अगर बताया भी है तो उसे ये करने की क्या ज़रूरत थी! मैं बेकार में इस बात को बढ़ावा देकर सबकी नजरों में नहीं आना चाहती थी।
अपने चश्में के पीछे से गंभीरता से घूरते हुए, "क्या मैं इस घटना के बारे में डिटेल में जान सकती हूं ?" मैडम ने फिर एक और सवाल किया।
मैडम के चेहरे पर इतनी गंभीरता को देख कर मुझे डर लगने लगा था। न जाने आर्या ने ऐसा क्या बताया होगा कि मेम इतनी गंभीरता से इस घटना के बारे में पूछताछ कर रही थी!
"जी, असल में कल शाम हम उसी बस्ती में फिर गए थे। हमारी मैगजिन के अगले इश्यू के लिए वहां के लोगों पर रिसार्च करते वक्त हमें पता चला कि लोकल गुड्डे और माफिया निर्दोष बस्ती वालों को अंधेरे में रख कर गैरकानूनी काम करवाते थे।" बस्ती में घटी घटना के बारे में जानकारी देते हुए, "कल मैं और आर्या यहीं बात समझाने बस्ती पहुंचे। मगर जब उन गुंडों को पता चला कि हमारे समझाने से कई लोग इस तरह के काम करने से पीछे हट रहे हैं तो उन्होंने हमें धमकी दी और फिर हमला कर दिया। मगर हम वहां से सही-सलामत बच निकले।" मैंने गंभीरता से कहा।
"वैल डॉन, पलक। इस बार तुम सबने सचमुच में बहोत बढ़िया काम किया। ये हमारे समाज में छुपे हुए ऐसे काले नासूर है जिसका उजागर होना जरूरी है। तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा।" मेरी ओर देखते हुए मैडम ने हमारी तारीफ़ की। अब मुझे उनके चेहरे पर गर्व और दृढ़ मुस्कान नज़र आने लगी थी।
"थैंक यू, मैडम। सभी साथ था इसलिए ये काम मुमकिन हो पाया।" मैंने सर झुकाते हुए धीमे से कहा।
"वैसे तुम ठिक तो हो?" मैडम के सवाल पर मैंने 'ना' में सर हिलाया। "अगर किसी भी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो बेझिझक बताना। हमारे ऑफ़िस की सबसे होनहार एंप्लॉय की मदद कर के हमें खुशी होगी।" तब अपनी बात ख़त्म करते हुए मैडम ने हलकी मुस्कान के साथ कहा।
उसके बाद मैडम से इजाज़त मांगते ही मैं अपने काम पर वापस लौट गई। मगर मुझे यहीं बता चुभ रही थी कि कहीं मैडम इस घटना की गहराई से जांच न करवाए। क्योंकि, अगर ऐसा हुआ ये बात सामने आ सकती है कि उस शाम किसी बस्ती वाले ने हमारी मदद नहीं की थी। अपने इन्हीं खयालों को मन में दबाए मैं अपने काम पर लौट गईं।
क्रमश:
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जैसा कि आप देख पा रहे होंगे कि ये चैप्टर पिछले सभी चैप्टर से लंबा और कई रहस्यों समाए हुआ है। इसी तरह आगे आने वाले सभी चैप्टर्स और भी रहस्यमय, अजीबोगरीब और डरावने होने वाले है।
* क्या है पलक के साथ घटी भयानक घटना के पीछे का सच?
* क्या चंद्र पलक की इस मुश्किली को जान पाएगा?
* क्या वजह है आर्या के बदलते हुए अंदाज़ की?
(ज़रा अंदाजा तो लगाइए प्यारे दोस्तों? 😉)
आने वाला अगला भाग और भी डरावना और दिलचस्प होने वाला है। अगले अपडेट के लिए हमसे जुड़ें रहे और हमें अपने बहुमूल्य अभिप्राय ज़रूर दे। साथ ही अगर आपको ये कहानी पसंद आए तो इस कहानी पर वोट, कमेंट कर मुझे प्रोत्साहन भी ज़रूर दे।
🙂🙏🏻💖
दिल थाम कर रहिएगा अगला भाग रमज़ान ईद/ ईद-उल-फितर को यानी 14 मई 2021 को प्रकशित होगा। ✍🏻
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