Chapter 19 - Chandra (part 2)
हेल्लो दोस्तों, ये हमारा दूसरा हैलोवीन है । मुझे उम्मीद है कि, आप इस कहानी को एंजॉय कर रहे हैं । तो हैप्पी हैलोवीन के साथ शुरू करते हैं ये हैरतअंगेज कहानी ।
शुरू करने से पेहले एक ज़रूरी बात । पढ़ने के बाद अपने एक्स्पीरियंस बांटना ना भूलें । मेरे लिए आपके वोट और कॉमेंट हमेशा कीमती रहेंगे ।
आपकी, बि. तळेकर ♥️
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मैं अपनी रफ़्तार से दस गुना धीमे मैगज़ीन के पन्ने पलटता गया और उस मैगज़ीन को पढ़ता गया । वहीं पलक आराम से अपना खाना खाती रही । और उसका खाना ख़त्म होने पर हम रोज की तरह होल में लौट आए ।
अपना काम ख़त्म करते ही पलक तेज़ी से अपनी डायरी और पैन लेकर सोफा पर बैठ गई । और उसे देखते ही मैं समझ गया कि, अब हम अपनी कहानी शुरू कर सकते थे ।
अपने गोद में तकिये के साथ पैन और डायरी लेकर बैठते ही, "कहानी शुरू करे ?" पलक ने मेरी ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा और उसकी सहमति में सर झुकाते ही मैं उसके पास चला आया ।
मैंने एक बार फ़िर उस काली परछाई को पलक से दूर कर दिया था । पर मैं अभी भी उसे लेकर परेशान में था । क्योंकि मुझे मालूम था कि, वो मनहूस साया इतनी जल्दी हमारा पीछा छोड़ने वाला नहीं था । लेकिन अगर इस वक़्त मैंने इस बेचैनी को अपने चेहरे पर आने दिया तो पलक परेशान हो जाएगी । इसलिए मैं उसके सामने बिल्कुल सामान्य बना रहा ।
पलक के सामने सोफा पर बैठते ही, "सेंराट हर बार की तरह अपने सपने को लेकर परेशान था । और ये बात उसने अपने दोस्त हरून को बताई । तब हरून ने उसे सुझाव दिया कि, उसे इस बारे में कांजी काका से बात करनी चाहिए । और उसने यही किया । वो जल्दी से तैयार होकर अकेले ही कांजी राम काका से मिलने निकल पड़ा । सेंराट अपने रास्ते जा ही रहा था कि, तभी होटेल के गार्डन में उसने किसी लड़के की आवाज़ सुनी और वो उस तरफ गया । तब उसने देखा कि, कौशिक अपने घुटने के बल बैठ कर किसी लड़की को प्रपोज़ कर रहा था । और उसके सामने बेंच पर और कोई नहीं बल्कि जिया बैठी थी । सेंराट को उन्हें साथ देखकर बहोत दुःख हो रहा था । लेकिन उससे भी ज़्यादा वो इस बात से हैरान था की, कौशिक ने उसे ये कहेकर जानबूझकर अंधेरे में रखा था के, वो दोनों एकदूसरे को चाहते हैं । जबकि उसने जिया से अपने प्यार का इज़हार किया ही नहीं था । लेकिन इसके बावजूद सेंराट उसे कुछ नहीं कहे पाया और वहां से चला गया । कुछ ही देर में वो कांजी राम काका के पास पहुंचा । सेंराट अब राजकुमार बाजी, स्वर्णरेखा और मोहिनी के बारे में काफ़ी कुछ जान चुका था । और कौसंबा के लोगों के लिए काफ़ी चिंता में था । वो किसी भी तरह इन हादसों को रोकना चाहता था । और उसने अपने इन्हीं सवालों के जवाब कांजी काका के ज़रिए जानना चाहा । 'क्या मोहिनी के श्राप को तोड़ा नहीं जा सकता ?' सेंराट के इस सवाल पर कांजी काका ने बताया कि, 'माना जाता था कि, मोहिनी के पास एक काली विद्याओं की किताब थी । उसी किताब से मोहिनी को शैतानी शक्तियों में महारथ हासिल हुई थी ।' 'तब तो उसे रोकने का उपाय हमें उस किताब से मिल सकता है । काका प्लीज़ मुझे बताइए, वो किताब मुझे कहां मिलेगी ?' सेंराट के इस सवाल पर कांजी काका ने कहा कि, 'वो किताब कई बरसों से कौसंबा के महल में संभाल कर रखी गई है, जो आज एक म्यूज़ियम में तब्दील हो चुका है ।' 'शुक्रिया काका । मैं अपनी पुरी कोशिश करूंगा कि, आपका गांव इस मुसीबत से निजाद पा सके ।' काका से जानकारी मिलते ही सेंराट ज़ल्दबाज़ी में उस ओर चल पड़ा । और कमाल की बात ये थी कि, वो उस किताब को हासिल करने में भी कामयाब रहा । लेकिन तब तक शाम हो गई थी । इसलिए उसे वापस होटेल लौटना पड़ा । वापस आकर उसने सारी बात अपने दोस्त हरून को बताई, जिसे जानकर वो चिंता में पड़ गया ।" मैंने केहना शुरु किया । लेकिन मेरी नज़रे पुरी सतर्कता से हर पल का जायज़ा ले रही थी, जो माहौल में आए ज़रा से भी बदलाव को पहचानने के लिए तैयार बैठी थी ।
"लेकिन क्या सेंराट ने कौशिक से कुछ नहीं कहा ?" इस सवाल का जवाब पाने की उम्मीद में पलक की नज़रें मुझ पर उठी हुई थी ।
उसकी सहमति में सर हिलाते ही, "अगले दिन सेंराट हॉटेल के लॉन में उस किताब को लेकर बैठा था । सेंराट उस किताब के ज़रिए मोहिनी की शक्तियों और उसकी कमज़ोरियों का पता लगाना चाहता था । लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । क्योंकि वो किताब गांव की प्राचीन भाषा में लिखी गई थी । इसी वजह से वो एक बार फिर कांजी काका से मिलने के लिए निकल पड़ा । पर तभी कौशिक की आवाज़ ने उसे रोक लिया । 'क्या हुआ काफ़ी परेशान नज़र आ रहे हो ?' कौशिक ने आते ही अनजान बनकर सवाल किया, 'शायद किसी का प्यार उसे नहीं मिल पाया । इसलिए तुम उसके गम में शरीक होना चाहते हो । है ना ?' पर इससे पेहले कि सेंराट कुछ केहता कौशिक ने घमंड के साथ कहा । 'हां । वैसे कंग्रॅजुलेशन, मुझे धोखा देकर तुम्हें तुम्हारा प्यार मिल गया ।' सेंराट के इन शब्दों ने कौशिक की ज़बान को बंध कर दिया । 'लेकिन बी केयरफुल । क्योंकि प्यार मिलना बहोत क़िस्मत की बात है । और प्यार कोई ट्रॉफी नहीं जिसे हासिल किया जाए ।' और उसे सोचने पर मजबूर कर दिया । इतना कहते ही सेंराट अपने रास्ते चला गया । कांजी काका के पास जाते ही, सेंराट ने उन्हें वो किताब दिखाई और इस बारे में उन से जानकारी पाना चाहा । तब किताब को पढ़ते हुए, 'इस किताब में हर तरह के तामसिक अनुष्ठान और निषेद क्रियाओं का उल्लेख किया गया है । इस क़िस्म की निषेध पूजा शैतानी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए की जाती है ।' कांजी काका ने कहा । इस पर सेंराट ने बेसब्र होकर पूछा कि, 'हां, वो तो है । लेकिन आप मुझे ये बताईए कि, उसे हराया कैसे जाए ?' मगर इस बात पर कुछ पलों के लिए कांजी काका ने चुप्पी साध ली और वो काफ़ी गंभीर हो गए । कुछ देर बाद काफ़ी परेशान होकर झिझते हुए उन्हें कहा कि, इस तरह की शैतानी शक्तियों को उन्हीं के हथियारों से हराया जा सकता है । जिस पर सेंराट ने गहरी सोच के साथ कहा, 'मोहिनी का हथियार है उसकी भयानक ताक़ते ।' और कांजी काका की सहमति पाते ही बिना कुछ सोचे झट से जाने के लिए बढ़ गया । 'बेटा.. एक चीज़ का ध्यान रखना, अगर अपने कार्यों को सफल बनाना है तो उन पर भरोसा करना सीखो । लेकिन ये भी याद रखना कि, अगर तुमने भरोसा किया, तो ये चीज़े तुम पर भी अपना बुरा प्रभाव डाल सकती है ।' कांजी राम काका ने चिंता करते हुए कहा । और उनके इन्हीं शब्दों को अपने मन में लिए वो हॉटेल लौट गया ।" मैंने कहानी को जारी रखा ।
"चंद्र..? क्या मैं तुमसे कुछ पुछ सकती हूं ?" कहानी के बीच बिल्कुल धीमी आवाज़ में पलक ने सवाल किया । और मैंने बस धीमे से अपनी पलकें झपका कर उस सहमति दी ।
मैं मन ही मन काफ़ी परेशान और बेशब्र हो रहा था । पता नहीं पलक मुझसे क्या जानना चाहती थी ? और क्या उस मनहूस साये की नज़रे हम पर होते हुए मेरा उसके सवाल का जवाब देना ठिक होगा ? लेकिन उसकी मासूमियत देखकर मैं उसे मना नहीं कर पाया ।
हल्की हिचकिचाहट के साथ, "चंद्र.. क्या ये सच है कि, इस किस्म की शैतानी शक्तियों को उन्हीं के हथियारों से हराया जा सकता है ?" पलक ने धीरे से सवाल किया । और उसका सवाल सुनते ही मेरी नज़रे गहरी सोच के साथ उस पर रूकी रही ।
कुछ पल सोचने के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए, "ये ज़रूरी नहीं के हर शैतानी शक्तियां उन्हीं के हथियारों से हराई जा सकती है । लेकिन कई बार ऐसा होता आया है कि, ऐसी शक्तियां अपने ही हथियार के आगे कमज़ोर पड़ जाती है ।" मैंने काफ़ी सोच-समझ कर कहा ।
मेरी बात सुनकर पलक ख़ामोश हो गई । "उसके बाद आगे क्या हुआ ?" और कुछ सोचते हुए उसने धीरे से कहा ।
तब उसी पल अचानक मैंने हमारे पीछे एक अजीब सी गतिविधि को महसूस किया । और पीछे मुड़कर देखते ही मैं परेशान हो गया । वो शैतानी साया एक बार फिर अपना सर उठा रहा था । उस आत्मा का लगभग पूरा शरीर अदृश्य था । पर इसके बावजूद मैं उसके शैतानी चेहरे पर ज़हरीली मुस्कुराहट देख सकता था । वो मुझे खुलेआम चुनौती दे रही थी । उसके डरावने भद्दे हाथ से निकलता गहरा काला धुआ पलक की ओर बढ़ रहा था ।
मैं ऐसे ही बैठे नहीं रहे सकता था । मुझे जल्दी कुछ तो करना होगा । वरना ये शैतानी आत्मा पलक पर हावी हो सकती थी । उसे नुकसान पहुंचा सकती थी । जो मैं हरगिज़ नहीं चाहता था । मुझे उसे इसी वक़्त रोकना था । वो भी पलक के सामने सच ज़ाहिर किए बगैर ।
तब उस पल मुझे को ठिक लगा मैंने वही किया । मैं बैठे हुए अचानक पलक के क़रीब सरक गया और अपना हाथ पलक की हिफाजत में पीछे की तरफ फैला दिया । और मैंने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर उस काले धुएं को पलक तक नहीं पहंचने दिया ।
मुझे अपने इतना नज़दीक पाकर पलक ने हैरत भरी नज़रों से मुझे देखा । लेकिन मुझे तो बस उसकी सुरक्षा की परवाह थी । पलक का पूरा ध्यान मुझ पर था और मेरी नज़रे भी पलक ही रूकी थी । लेकिन मेरी नीले रंग में चमकती उंगलियों के बीच उस शैतानी साये का काला धुवा समाने लगा । मैंने अपनी शक्तियों के इस्तेमाल से उस ख़तरनाक धुएं को निगल लिया था । और अगले ही पल अपने हाथ को झटका देते हुए मैंने उस काले धुएं को उसी मनहूस साये पर उगल दिया । उस धुएं के छूते ही वो आत्मा परेशान हो गई और पीछे हट गई । लेकिन मैं जानता ये बस शुरुआत थी । वो वापस ज़रूर आयेगी ।
"क्या हुआ ? तुम परेशान लग रहे हो ।" पलक ने परेशान होकर कहा । उसकी घबराहट भरी नज़रे मेरी चेहरे पर अपना जवाब ढूंढ़ रही थी ।
बनावटी मुस्कान के साथ, "नहीं । मैं बस आगे की कहानी के बारे में सोच रहा था ।" मैने कहा और उससे दूर हो गया ।
"वापस लौट कर सेंराट ने हर बार की तरह सारी बातें हरून को कही । हरून इन चीज़ों को पहले ही गंभीरता से लेता था । लेकिन कौसंबा का रहस्य जानकर वो काफ़ी परेशान रेहने लगा । हरून इन चीज़ों को सुधारना चाहता था । लेकिन इन चीज़ों के बारे में जानकर डरने भी लगा था ।" मैंने कहानी केहत हुए, "और उस रात भी कुछ ऐसा ही हुआ । सेंराट कौसंबा और जिया से जुड़े अपने एहसास को लेकर परेशान था । वो ना तो ये बात जिया से केह पा रहा था और नाहिं वो अपने जज़्बात छुपा पा रहा था । अपनी इसी कशमकश से चलते वो जल्दी ही अपने कमरे में लौट गया । हरून अभी अपने कमरे में लौटा नहीं और सेंराट अपने बिस्तर में पड़े-पड़े सोने की कोशिश कर रहा था । लेकिन सारी घटनाओं के बारे में सोचकर उसके मन में उथल-पुथल मची हुई थी । इसलिए वो सो नहीं पा रहा था । और इसी बीच उसे फ़िर वही धुन सुनाई दी । उस धुन को सुनते ही सेंराट अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और उसने कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर देखा । हॉटेल की लॉबी से गुजरते हुए सेंराट ने उस धुन का पीछा करते हुए उसका पता लगाना चाहा । लेकिन हॉटेल के बाहर तक पहुंच कर भी उसे इस रहस्यमय संगीत का कोई पता नहीं चला । तब अचानक उसके पीछे से एक हाथ उसके कंधे पर पड़ा और उसने सेंराट को आगे बढ़ाने से रोक लिया । सेंराट के कंधे पर हाथ रखते ही, 'भाई ! इतनी रात को यहां कहां घुम रहे हो ?' हरून ने कहा । तब पीछे मुड़ते ही, 'नहीं वो मुझे कुछ आवाज़..' सेंराट ने सच बताना चाहा । मगर सामने से कौशिक और जिया को आते देख वो ख़ामोश हो गया । और साथ देखते वो बिना कुछ कहे वापस अपने कमरे में लौट आया । उसी रात अचानक अपने सपने से डरकर आंखें खोलते ही सेंराट ने ख़ुद को कमरे में पाया । लेकिन जब उसने आसपास नज़र घुमाई तो कमरे में कोई नहीं था । सेंराट के साथ वाले बिस्तर से उसका दोस्त गायब था । आधी रात को हरून कमरे से गायब है ये जानकर सेंराट परेशान हो गया । उसने सबसे पहले अपने दोस्त के मोबाईल पर कॉल लगाया । लेकिन उसका फ़ोन वहीं कमरे में था । उसके बाद उसने कमरे से बाहर आकर सभी से पूछताछ की । सेंराट ने अपने कॉलेज के सभी सटूडेंट्स का दरवाज़ा खटखटाया और हरून के बारे में पूछा । साथ ही उसने जिया और कौशिक से भी इस बारे में बात की । लेकिन किसी को कुछ पता नहीं था । 'यहीं कहीं गया होगा । हरून कोई छोटा बच्चा नहीं है ।' कमरे से बाहर आते ही कौशिक ने लापरवाही से कहा । उसे अपने दोस्त की कोई परवाह नहीं थी । उसे तो बस अपनी नींद प्यारी थी । लेकिन जिया ऐसी नहीं थी । उसे अपने दोस्तों की परवाह थी और इस मामले में उसने सेंराट का साथ दिया । उसी उनके ग्रुप की एक लड़की सुमी ने भी बताया कि, उसकी दोस्त तारा भी गायब है । एक साथ दो लोगों के गायब होने की ख़बर से उनके ग्रुप में सनसनी फ़ैल गई । उन्होंने मिलकर ये बात हॉटेल के मैनेजर को बताई । लेकिन रात काफ़ी हो चुकी थी और ज़्यादातर हॉटेल स्टाफ जा चुका था । इसलिए वो पुलिस को ख़बर देने के अलावा और कुछ नहीं कर पाए । कुछ समय बाद सब लोग अपने-अपने कमरे में लौट चुके थे । पर सेंराट पुरी रात वहीं रिसेप्शन के पास सोफ़ा पर बैठा रहा । और जिया ना चाहते हुए भी कौशिक के डर से अपने कमरे में चली गई । अगली सुबह जल्दी से तैयार होकर सेंराट पुलिस स्टेशन जा पहुंचा और उसने अपने दोस्त और तारा की मिसिंग कंप्लेंट की । उसने वो सारी प्रोसीजर पूरी की को ज़रूरी थी । और वापस लौट आया । सेंराट बहोत परेशान था । उसे अपने दोस्त की फिक्र हो थी और इसके चलते वो वहीं हॉटेल के गार्डन में बैंच पर बैठा रहा । जब जिया ने उसे परेशान देखा तो वो भी उसके पास पहुंची । उसने सेंराट से हरून और तारा के बारे में पूछा । और सेंराट ने बताया कि, 'पुलिस उनकी खोज कर रही है । और यहां भी हकीक़त करने आएंगे । क्योंकि वो दोनो यहीं से गायब हुए हैं ।' तब सेंराट को परेशान देखकर, 'जिसके साथ तुम जैसा दोस्त हो उसे कुछ नहीं हो सकता । फ़िक्र मत करो वो जल्द ही मिल जाएंगे ।' जिया ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे दिलासा दिया । 'उम्मीद है वो सेफ हो ।' पर सेंराट अब भी बहोत परेशान था । 'मैं समझ सकती हूं, हरून तुम्हारा सबसे ख़ास दोस्त है । और तुम उसके काफ़ी क़रीब हो । लेकिन प्लीज़ ख़ुद पर इतना दबाव मत डालो । वो ज़रूर सही-सलामत वापस लौट आएंगे ।' जिया उसे समझाना चाहा । लेकिन जिया को अपने करीब देखकर सेंराट अपने जज़्बात नहीं छुपा पाया । अपने कंधे से जिया का हाथ दूर करते ही, 'नहीं, तुम मुझे नहीं समझ सकती । क्योंकि अगर समझती तो तुम्हें पता होता कि, मैं क्या महसूस कर रहा हूं । मैं क्या चाहता हूं ।' सेंराट ने जिया की तरफ़ देखकर कहा । और परेशान होकर गुस्से में उठकर चला गया । सेंराट के इन शब्दों ने जिया के मन पर गहरा असर डाला । जिया ने पेहली बार सेंराट को इतना जज़्बाती होते हुए देखा था । वो पेहली उसे इतने क़रीब से जान पाई थी । और सेंराट का ये बर्ताव देखकर जिया को उसकी फ़िक्र होने लगी । वो दिन सबके लिए काफ़ी मायूसी भरा था । पर उस शाम जब कौसंबा के उस हॉटेल में पुलिस अयी तब तारा भी उनके साथ थी ।" हमारे बीच फासला बढ़ा दिया ।
"तो क्या तारा उस रहस्यमय संगीत के कारण गायब नहीं हुई थी ?" पलक ने गहरी सोच के साथ सवाल किया ।
पलक की तरफ़ देखते ही, "हां, वो भी उसी रहस्यमय संगीत के पीछे गई थी ।" मैंने कहा । "पुलिस को मिलने पर तारा ने उन्हें बताया कि, 'वो अपने कमरे में थी, जब उसने किसी की आवाज़ सुनी । और वो उसे देखने उसके पीछे गई । लेकिन उस आवाज़ का पीछा करते हुए दूर तक चली गई और रास्ता भटक गई । कुछ देर रास्ता ढूंढ़ने के चक्कर में काफ़ी देर तक इधर उधर भटकती रही और कमज़ोरी के कारण बेहोश हो गई । इसके अलावा उसे कुछ याद नहीं ।' लेकिन सेंराट तारा की इस बात से सहमत नहीं था । सेंराट ने देखा कि तारा ना के परेशान थी बल्कि काफ़ी डरी हुई भी थी । वो पुलिस से कुछ छुपा रही थी । और यही बात जानने वो उसके पास पहुंचा । लेकिन वो काफ़ी परेशान थी और किसी से बात नहीं करना चाहती थी । इसलिए सेंराट ने जिया की मदद मांगी । और वो उसे अपने साथ अपने कमरे में ले आयी, जहां सेंराट उनका इंतजार कर रहा था । 'तारा.. मैं जानता हूं तुम कुछ तो छुपा रही हो । लेकिन..' सेंराट ने सावधानी से बिल्कुल धीमे से केहना चाहा । लेकिन इससे पहले कि वो आगे केह पाता तारा उस पर भड़क उठी । 'तो तुम इसीलिए मुझे यहां ले आई ।' तारा ने गुस्से में आकर जिया को धक्का दे दिया । पर सेंराट ने तेज़ी आगे आकर जिया को गिरने से बचा लिया । उसी समय तारा जाने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ गई । मगर कौशिक को दरवाज़े के पास देखते ही वो वहीं थम गई । जिया को सेंराट की बांहों में देखते ही कौशिक गुस्सा में बिना कुछ कहे वहां से चला गया । और उसे समझाने के लिए जिया भी उसके पीछे चली गई । इसी बीच तारा ने भी वहां से जाना चाहा । लेकिन सेंराट ने उसे रोक लिया । उसने तारा से कहा कि, 'अगर तुम डर की वजह से कुछ छुपा रही हो तो प्लीज़ मुझे बता दो । मैं वो बात किसी से नहीं कहूंगा । लेकिन शायद तुम्हारी वजह से मैं अपने दोस्त को बचा पाऊं ।' और सेंराट के दिलासा देने पर तारा ने उसे सारी सच्चाई बताई । उसने बताया कि, 'वो देर रात तक किताब पढ़ रही थी, जब उसने हरून को अकेले कहीं जाते देखा । पढ़ते समय किसी किस्म के संगीत की आवाज़ सुन वो बाहर आई । और उसने इतनी रात गए हरून को कहीं जाते देखा तो उसने हरून का पीछा किया । उसने हरून को आवाज़ भी दी । लेकिन वो तो जैसे किसी के वश में था । ऐसा लग रहा था जैसे वो हिप्नोटाइज़ हो गया था ।' तारा की बात सुनकर सेंराट समझ गया कि, हो न हो ये हादसा ज़रूर कौसंबा के राज़ से जुड़ा है । इसीलिए वो सावधान हो गया । 'हरून बिना रुके आगे चलता जा रहा था । मुझे उसकी फ़िक्र होने लगी इसलिए मैं भी उसका पीछा करती रही । और इसी तरह आगे बढ़ते हुए हम जंगल जा पहुंचे । हरून आगे बढ़ गया । लेकिन जैसे ही मैंने अंदर जाना चाहा एक डरावनी काली परछाई मेरे सामने आ गई और मैं वहीं बेहोश हो गई ।' तारा की बातें सुनकर सेंराट समझ गया के हरून बहोत बड़ी मुसीबत में है और वो उसे किसी भी तरह वहां से निकालना चाहता था । उसी वक़्त उन्हें कमरे के बाहर से जिया की आवाज़ सुनाई दी और सेंराट तेज़ी से भागते हुए उसके पीछे चला गया । हॉटेल के लॉन तक पहुंचते ही उसने देखा कि जिया एक बैंच पर बैठकर रो रही थी । उसे रोता देखकर सेंराट उसके पास पहुंचा और उसे इसकी वजह पूछी । तब जिया ने कहा कि, 'कौशिक मुझ से गुस्सा होकर कहीं चला गया है । उसे लगता है कि हम दोनों में कुछ चल रहा है ।' 'क्या वो सच में तुम्हारा बचपन का दोस्त हैं ! अगर वो तुम पर इतना भी भरोसा नहीं कर सकता तो वो पूरी ज़िंदगी तुम्हारा साथ कैसे निभाएगा ?!' सेंराट ने गेहरी सोच के साथ गंभीरता से कहा । और तुरंत आगे बढ़ गया । तब उसके पीछे भागते हुए, 'तुम.. कहां जा रहे हो, सेंराट ? हरून के जाने के बाद अब मुझे बहोत डर लग रहा है । कौशिक भी यहां नहीं है और अगर अब तुम भी मुझे बिना बताए छोड़कर चले जाओगे तो मैं.. क्या करूंगी ?!' जिया ने काफ़ी परेशान होकर कहा और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे । सेंराट जिया को रोते हुए नहीं देख पाया और उसने जिया के आंसू पोछते हुए सारी हकीक़त बताई । तब जिया ने भी उसके साथ जाने की ज़िद की । और वो दोनों कांजी काका के पास पहोंचे । वहां जाकर सेंराट ने उन्हें बताया कि, किस तरह उसका दोस्त हरून जंगल की ओर चला गया । और वापस नहीं लौटा । तब पूरी हकीक़त जानने के बाद कांजी काका ने बताया कि, 'हरून जिन हालातों जंगल की ओर गया है । उन हालातों में वो आज तक कोई ज़िंदा वापस नहीं लौटा । लेकिन फ़िर भी अगर सेंराट उसे ढूंढ़ना चाहता है तो उसे सुबह तक का इंतजार करना होगा । क्योंकि इन जंगलों में रात के समय जाना बहोत ही ख़तरनाक साबित हो सकता था ।' उस रात सेंराट अपने दोस्त को लेकर काफी परेशान था । उसे अगली सुबह हरून को ढूंढ़ने जाना था । मगर वो इतना बेचैन था कि, सुबह तक का भी इंतजार नहीं कर पा रहा था । सेंराट कौसंबा के एक होटेल के कमरे में आज अकेला था । अपने दोस्त के गुमशुदा होने से बिस्तर में पड़े होने के बावजूद उसे नींद नहीं आ रही थी । इसी बीच अचानक उसे कुछ अजीब महसूस हुआ और उसे हरून की आवाज़ सुनाई दी । और अचानक उसने देखा कि, उन्हीं सरकंडों के बीच हरून डर के मारे अपनी जान बचाकर तेज़ी से भाग रहा था और कोई खौफ़नाक परछाई उसके पीछे पड़ी थी । वो परछाई अपने भयानक शिकंजे में हरून को जकड़ने ही वाला था कि, सेंराट की आंखें खुल गई । और सेंराट ने ख़ुद को डर के मारे पसीने से तरबतर अपने बिस्तर में पाया । उस भयानक सपने के बाद सेंराट एक पल के लिए भी अपनेआप को नहीं रोक पाया । और रात के अंधेरे में ही हरून को ढूंढ़ने निकल पड़ा । उसी समय जिया भी कौशिक के साथ हुई अपनी बहस को लेकर परेशान थी और सो नहीं पाई थी । और इन ख़तरनाक हालातो में सेंराट को अकेला बाहर जाते देख वो उसके पीछे चल पड़ी । लेकिन इससे पेहले कि वो सेंराट के पीछ होटेल के गेट से बाहर जा पाती कौशिक ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक दिया । जिया कौशिक को देखकर काफ़ी ख़ुश थी । 'भगवान का शुक्र है कि, सही-सलामत वापस लौट आए ।' और उसने कौशिक को गले लगाया । लेकिन उसने गुस्से में आकर जिया को ये कहेकर दूर कर दिया कि, 'मुझे क्या हो सकता है ? इतनी जल्दी उन्हें छुटकारा मिलने वाला नहीं था ।' तब कौशिक की बेरुखी देखकर जिया ने उसकी वजह पूछी । और इस पर कौशिक ने सवाल उठाया कि, वो इंतनी रात को सेंराट के साथ क्यूं जा रही थी ?' इस पर जिया ने कौसंबा में घट रही घटनाओं और हरून के बारे में बताया । लेकिन कौशिक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा । उसने ये केहकर इस बात से किनारा कर लिया कि, 'अगर सेंराट को अपने मर चुके दोस्त के पीछे भागने का शौक है तो वो बेशक जाए । लेकिन उन दोनों में से कोई इस लफड़े में नहीं पड़ेगा । जिया और उसके पास अपनी पूरी ज़िंदगी पड़ी है । और वो उसे गवाना नहीं चाहता था ।' लेकिन जिया उसकी तरह मतलबी नहीं थी । उसे अपने दोस्तों की परवाह थी । इसलिए, 'अगर इस तरह अपने दोस्तों की लाशों पर चलकर हमें अपनी ज़िंदगी जीनी पड़े तो नहीं चाहिए मुझे ऐसी ज़िंदगी । और अगर तुम ऐसा ही सोचते हो तो आज से हमारे रास्ते अलग हो चुके हैं ।' ये कहेकर वो तेज़ी से सेंराट के पीछे चली गई । सेंराट सीधे चलते हुए उन्हीं ख़तरनाक सरकंडों में जा पहुंचा । और तभी उसे हरून की चीख सुनी । हरून की चीख सुनकर सेंराट बिना कुछ सोचे उस ओर चल पड़ा । बगैर ये जाने कि, जिया भी उसके पीछे है । तभी अचानक सेंराट ने हरून को एक बड़े से पैड़ के नीचे बेहोश पड़ा पाया और वो झट से उसे बचाने वहां जा पहुंचा । मगर जैसे ही सेंराट हरून के क़रीब गया वैसे ही एक डरावनी आवाज़ ने उसे चौंका दिया । 'आँखिरकर तुम मेरे पास लौट ही आए ।' मोहिनी की घमंड भरी आवाज़ उसके कानों में पड़ी । वो बिल्कुल सेंराट के सामने अपने भयानक रूप में खड़ी थी । और उसकी डरावनी शक्ल देखते ही सेंराट और जिया की आंखें फटी फटी रह गई । 'मैं तुम्हारे बारे में सब जान चुका हूं, मोहिनी । तुम कई वर्षों से यहां के बेकसूर लोगों की जान लेती अाई हो । लेकिन अब मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा । दूर रहो मेरे दोस्त से ।' सेंराट ने हरून की सुरक्षा में मोहिनी को चेतानी दी । लेकिन मोहिनी जैसी शैतान पर इसका कोई असर नहीं हुआ । 'वैसे भी अब मुझे तुम्हारे इस नासमझ दोस्त ने ज़रूरत नहीं रही । मैं तो बस तुम्हें यहां लाना चाहती थी । लेकिन तुम... आज भी उतने ही ज़िंद्दी हो !' और मोहिनी ने ज़हरीली मुस्कान के साथ कहा । 'बंध करो अपनी ये बकवास ।' सेंराट ने गुस्से में कहा और तुरंत हरून की मदद करने मुड़ गया । मगर सेंराट की बातें सुनते ही मोहिनी भड़क उठी और 'इस बार मैं तुम्हें हराकर रहूंगी, बाजी ।' कहते हुए मोहिनी ने अपनी मायावी शक्तियों से सेंराट के पीछे से उस पर वार कर दिया । लेकिन जिया अचानक मोहिनी के सामने चली आई और उसने वो वार अपने ऊपर ले लिया । जिया की चीख सुनते ही सेंराट ने झट से पीछे मुड़कर देखा और गिरती हुई जिया को अपनी बाहों में थाम लिया । पर वो मोहिनी के वार से बेसुध होकर गिर पड़ी । 'नहीं जिया, तुम्हें कुछ नहीं हो सकता । अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं भी जी नहीं पाऊंगा । तुम्हें कुछ नहीं होगा । मैं तुम्हें.. कुछ नहीं होने दूंगा ।' जिया को अपनी बाहों में समेटते हुए सेंराट ज़मीन पर बैठ गया और जिया को मुसीबत में देखकर सेंराट के मन की बात ज़ुबान पर आ गई । जिससे मोहिनी और भी आगबबूला हो गई । 'तुम चाहे जो कर लो । लेकिन इस बार तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा । इस मैं तुम्हें ख़ुद से दूर नहीं जाने दूंगी ।' मोहिनी उन दोनों को साथ देखकर जल उठी । 'नहीं मोहिनी । ये तुम्हारी ग़लतफेमी है । इस मैं वो भूल नहीं करूंगा जो मैंने पिछली बार की थी । क मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा है । जिसे तुम कभी नहीं पा सकती ।' मोहिनी को चेतावनी देते हुए सेंराट ने जिया के माथे को चूमते हुए उसे सावधानी से ज़मीन पर लेटाया और मोहिनी के सामने बिना किसी खौफ के तनकर खड़ा हो गया । उसी वक़्त मोहिनी ने गुस्से में अपने हाथ आगे करते हुए सेंराट पर अपनी मायावी शक्तियों से वार कर दिया । लेकिन ठिक उसी पल सेंराट ने मोहिनी की वहीं जादुई किताब आगे कर दी और मोहिनी के हाथों से निकलने वाली बिजली के किताब से टकराते ही जल उठी और इसी के साथ मोहिनी के यातना शरीर (मरने के बाद मृत्यु लोक की यात्रा करने के लिए प्राप्त होने वाला शरीर) में भी तेज़ आग की लपटते सुलग उठी । 'तुम्हें क्या लगा था कि, पिछली बार की तरह आज भी मैं डर जाऊंगा ? अपने प्यार को खोने का डर पालकर तुम्हारी काली शक्तियों को इसे सच में बदलने का मौक़ा दूंगा ?! नहीं, हरगिज़ नहीं । मैं एक बार अपनी स्वर्णरेखा को खो चुका हूं । लेकिन इस बार मैं अपने प्यार को कुछ नहीं होने दूंगा ।' सेंराट ने अपनी सारी शक्ति समेट कर मोहिनी के जलते हुए शरीर को देखते हुए कहा और कुछ ही पलों में मोहिनी की शैतानी रूह काला धुआ बनकर फना हो गई ।" मैं कहानी के अंत की ओर बढ़ते हुए कहना जारी रखा ।
"इसका मतलब सेंराट ही बाजी था ?!" कहानी के बीच पलक आश्चर्य में पड़ गई । और मैंने हल्की मुस्कान के साथ सेहमती में हामी भर दी ।
"उसके बाद आगे क्या हुआ ?" पलक आगे की कहानी जानने के लिए काफ़ी उत्सहित थी ।
और तब पलक के इस सवाल का जवाब देते हुए, "मोहिनी के ख़त्म होते ही सेंराट भी कमज़ोर होकर ज़मीन पर गिर पड़ा । और जब अगले दिन उसकी आंखें खुली तो वो कौसंबा के हॉस्पिटल में था । हरून उसी के बगल वाले बिस्तर पर लेटा था । और डॉक्टर ने कहा कि वो बिल्कुल ठिक था । मगर जिया वहां पर नहीं इसलिए वो डॉक्टर से इजाज़त लेकर तुरंत उससे मिलने गया । वो परेशान होकर तेज़ी से जिया के कमरे तक जा पहुंचा । लेकिन कौशिक को जिया के साथ बैठा देखकर वो वापस लौट गया । सेंराट का दिल को एक चोट अाई थी और वो अकेले ही हॉस्पिटल के बाहर बैंच पर बैठा रहा । पर कुछ ही मिनटों बाद जिया की आवाज़ सुनकर वो चौक गया और उसने खड़े होते ही जिया की तरफ़ देखा । 'देखकर ख़ुशी हुई कि, तुम और कौशिक ठीक हो ।' जिया के आगे सेंराट ने अपने गम को छुपा लिया । 'हां, वो बिल्कुल सुरक्षित है । लेकिन ठिक नहीं ।' जिया ने सेंराट के पास आते ही धीमे से कहा । 'क्या मतलब ?! वो तो तुम्हारा बचपन का दोस्त है । और अब तो तुम दोनों साथ हो । तो वो ठीक कैसे नहीं हो सकता ?' और उसकी इस बात ने सेंराट को उलझन में डाल दिया । 'ये सच है कि, कौशिक मेरे बचपन का दोस्त है । लेकिन मेरे दिल ने कभी उसे अपना हमसफ़र नहीं माना । मेरा प्यार हमेशा से सिर्फ़ एक इंसान के लिए रहा है और ये बात मुझे कल रात पता चली । जब.. तुमने.. मुझे अपनी बाहों में भरा । जब तुमने मुझे अपने होठों से छूआ ।' जिया की इस बात से सेंराट के चेहरे पर हल्की मुस्कान उभर आई । 'लेकिन.. तुम ये कैसे जानती हो ?! तुम तो बेहोश हो गई थी ।' सेंराट किसी से भी लड़ सकता लेकिन जिया के सामने शर्म से उसकी पलके झुक गई । 'हां, मगर उस बेहोशी में भी मैं तुम्हारा स्पर्श मेहसूस कर सकती थी । जिस तरह.. तुमने अपनी स्वर्णरेखा को खोया था । उसी तरह मैंने भी तो.. तुम्हें खोया था ।' जिया ने कापतें हुए और उसकी आंखों में आंसू भर आए । मगर उसकी बातें सुनते ही सेंराट समझ चुका था कि, उसके सामने जो लड़की खड़ी थी । वही उसकी स्वर्णरेखा थी । जो आज तक जिया के रूप में उसके साथ थी । तब जिया की आंखों से आंसू पोंछते ही सेंराट ने उसे अपनी बाहों में भर लिया । कौसंबा के इस एक किस्से ने सेंराट की पूरी ज़िंदगी बदलकर रख दी । सेंराट को मोहिनी जैसी शैतानी आत्मा से लड़ना पड़ा । उसे अपना खोया हुआ प्यार एक बार फिर मिल गया और अब वो अपने बाबा शरद सागर का और भी सम्मान करने लगा । उनके सिद्धांतों पर भरोसा करने लगा । सेंराट और उसके बाबा शरद सागर बहोत ही खाश शक्तियां थी । इसीलिए वो पारलौकिक समस्याओं से लड़ पाए । बेकसूर लोगों को इन मुसीबतों से निजात दिला पाए । लेकिन जो इन चीजों के परिधान से बेखबर है । उन्हें इन चीजों से दूर ही रहना चाहिए ।" मैंने कहानी को अंत तक पहुंचा । और इन्हीं शब्दों के साथ मैंने अपना संदेश भी पलक तक पहुंचा दिया ।
उसी दौरान मेरी नज़रे पलक पर पड़ी । और उसे देखते ही मैं हैरत में पड़ गया । इतने उतार-चढ़ाव से भरी गमगीन और डरावनी कहानी सुनने के बाद भी पलक के होठों पर मंद सी मुस्कान थी । और वो पूरी तरह मेरे कहें लब्जों को अपनी डायरी के पन्नों पर उतारने में खोई थी । और मैं सिवाय उसे देखने के और कुछ नहीं कहे पाया ।
"चंद्र.. तुमसे एक बात कहूं ?" उसी समय मेरी ओर मुड़ते ही, "मुझे ख़ुशी है कि, आख़िरकार स्वर्णरेखा और राजकुमार बाजी सेंराट और जिया के रूप में मिल पाए । थैंक यू सो मच ! मुझे ये कहानी सुनाने के लिए ।" पलक ने धीमे से कहा और उसे देखकर मेरे चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान आ गई ।
कहानी का अंत जानने की जिज्ञासा में आज पलक देर रात तक जागती रही । और आख़िरकार कौसंबा का रहस्य जानने के बाद वो अपने कमरे में जाकर चैन से सो पाई ।
रविवार सुबह 2 : 30 बजे ।
पलक मेरे सामने अपने बिस्तर पर आराम से सोयी थी । मगर पिछली रात की तरह आज भी मैं पूरी रात पलक की सुरक्षा में उसके सामने खुर्शी पर बैठा रहा । और मेरी नज़रे हर पल सतर्कता से आसपास का जायज़ा लेती रही ।
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हेल्लो दोस्तों, तो इस मोड़ पर हमारी इस असंभव सी कहानी के सीज़न 1 का अंत होता है। उम्मीद है, आपको हमारी ये कहानी पसंद आई होगी। अपने इस भाग के अंत में अपने कमाल के अभिप्राय तथा जमकर😉 प्रोत्साहन राशि देना जारी रखे। और सीज़न 2 को लेकर अपनी इच्छाएं तथा उत्सुकता हमारे साथ ज़रूर साझा करें। 😇🙏🏻
कौशिक और जिया ।
सेंराट और जिया ।
A scary memory from my childhood... 😉
It's old but too mysterious and thrilling...
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