Chapter 17 - Chandra (part 1)

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So are you Ready?! Don't scare, Don't scream just Enjoy..!!
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गुरुवार,  रात  1:30  बजे ।
काफी  कोशिशों  के  बाद  पलक  अब  गहरी  नींद  में  सो  चुकी  थी ।  लेकिन  आज  भी  सोते  समय  उसके  मासूम  चेहरे  पर  चिंता  की  लकीरें  छाई  थी ।  मैं  उसे  इस  तरह  छोड़कर  नहीं  जाना  चाहता  था ।  पर  मेरा  उससे  दूर  रहना  ही  सही  था ।  इसलिए  मैं  पलक  को  गहरी  नींद  में  सोता  देखकर  अपनी  जगह  यानी  महल  की  छत  पर  लौट  आया ।
मेरे  मन  में  उठते  सवालों  की  तरह  आसपास  के  मौसम  में  भी  काफ़ी  उथल-पुथल  मची  हुई  थी ।  तेज़  ठंड़ी  पवन  कानों  में  फुसफुसाती  डरावनी  आवाज़ों  के  साथ  लहरा  रही  थी  और  हवाओं  की  धुन  पर  जंगल  के  पेड़-पौधे  खतरनाक  ठंढ  से  नाच  रहे  थे ।  आज  मेरे  मन  के  साथ  जैसे  मौसम  में  भी  अजीब  सी  कशमकश  फैली  थी ।
मैं  पलक  को  उस  कहानी  के  ज़रिए  जो  बता  सकता  था,  मैं  बता  चुका  था ।  उम्मीद  है,  पलक  इस  कहानी  को  सुनकर  समझ  गई  होगी  कि  इंसानों  से  परे  हमारी  इस  रूहों  की  दुनिया  में  बहुत  कुछ  ऐसा  था,  जो  जानते  हुए  भी  समझाया  नहीं  जा  सकता  था ।  जिसकी  खौफनाक  हकीक़त  से  वाकिफ़  होकर  भी  बदला  नहीं  जा  सकता  था ।  ये  दुनिया  इंसानों  की  सोच  से  काफ़ी  पेचीदा  और  उलझी  हुई  थी ।  बहुत  ही  ख़तरनाक  थी ।  इसलिए  वो  जितना  इस  दुनिया  से  दूर  रहे  उसके  लिए  उतना  बेहतर  था ।
उम्मीद  है,  पलक  अब  पहले  से  ज़्यादा  सावधान  हो  चुकी  होगी ।  और  समझ  गई  होगी  कि,  इन  चीज़ों  से  दूर  रहने  में  ही  उसकी  सलामती  है ।  क्योंकि  रूहों  की  इस  छलावे  और  भ्रम  से  भरी  दुनिया  में  किसी  भी  बदलाव  के  लिए  बहुत  बड़ी  कीमत  चुकानी  पड़  सकती  थी ।  और  मैं  उसे  किसी  भी  मुसीबत  में  नहीं  पड़ने  देना  चाहता  था ।  मैं  बस  पलक  को  हर  हाल  में  महफूज़  रखना  चाहता  था ।
पलक  के  ज़ोर  देने  पर  उसे  सावधान  करने  के  लिए  मैंने  इन  कहानियों  की  शुरुआत  की  थी ।  लेकिन  कहानी  सुनने  के  बाद  पलक  की  कंडिशन  देखकर  मुझे  उसकी  चिंता  हो  रही  थी ।  न  जाने  गौतम  और  पियाली  की  ये  कहानी  उसके  नाज़ुक  मन  पर  क्या  असर  छोड़  गई  थी ?!
पलक  कहानी  और  कहानी  के  किरदारों  से  एक  जुड़ाव  महसूस  कर  रही  थी ।  इसी  वजह  से  वो  कहानी  सुनते  समय  काफ़ी  जज्बाती  हो  गई ।  कहीं-ना-कहीं  इस  कहानी  ने  पलक  के  पुराने  ज़ख्मों  को  कुरेद  दिया  था ।  उसके  ज़हन  में  छुपा  डर  फिरसे  सर  उठाये  उसे  परेशान  कर  रहा  था ।  पर  मुझे  किसी  भी  तरह  उसे  फ़िर  उसी  अंधकार  में  जाने  से  रोकना  था,  जिसे  वो  मेरे  और  अपनी  तकदीर  के  कारण  पहले  ही  झेल  चुकी  थी ।
मुझे  शायद  पलक  को  इस  दुनिया  की  चीज़ों  के  बारे  में  नहीं  बताना  चाहिए  था ।  लेकिन  मैं  ये  भी  जानता  था  कि,  अगर  मैं  उसे  मना  भी  करता  तब  भी  वो  अपनी  बातों  से  मुझे  राज़ी  कर  लेती ।  इसलिए  शायद  यहीं  बेहतर  होगा  कि  मैं  सीधे  उसे  उन  चीजों  के  बारे  में  ना  बता  कर  कहानी  के  ज़रिए  उसे  सावधान  कर  पाऊं ।
मेरा  मन  लगातार  बस  पलक  के  बारे  में  सोच  रहा  था ।  चाहकर  भी  मैं  उसे  ख़यालों  से  दूर  नहीं  कर  पा  रहा  था ।  मैंने  ना  चाहते  हुए  भी  उसे  बहुत  परेशान  किया  था ।  पर  अब  मैं  उसे  एक  खुशहाल  इंसान  के  रूप  में  अपनी  ज़िंदगी  जीते  हुए  देखना  चाहता  था ।

अगले  दिन  सुबह  5 : 00  बजे ।
पुरी  रात  परेशान  होकर  महल  के  चक्कर  काटने  के  बाद  मैं  एक  बार  फिर  छत  पर  लौट  आया  था ।  सुबह  की  रोशनी  के  साथ  मौसम  अब  साफ  हो  गया  था ।  तेज़ी  से  चलती  हवाएं  अब  शांत  होकर  मन  को  ताज़गी  देने  वाले  ठंडे  झोके  में  बदल  गई  थी ।  हवा  के  कारण  जंगल  की  ओर  से  आने  वाली  पत्तियों  की  सरसराहट  और  चारों  ओर  अपने  घौंसले  से  निकलकर  पंख  फैलाते  पक्षियों  की  चहचहाहट  मेरे  कानों  में  नए  सुर  घोल  रही  थी ।  तो  वहीं  उगते  सूरज  की  महल  पर  पड़ती  पहली  तेज़  कीरन  मेरे  आधे  अदृश्य  शरीर  को  भेदते  हुए  महल  की  दीवार  पर  मेरी  हल्की  परछाई  छोड़  गई ।
खुशनुमा  मौसम  के  साथ  मेरी  चिंताएं  कम  हो  गई  थी ।  और  पलक  के  रूप  में  मुझे  एक  नई  उम्मीद  मिल  गई  थी,  जिसे  मैं  हमेशा  खुश  देखना  चाहता  था ।
कल  रात  कहानी  सुनने  के  बाद  वो  जिस  तरह  बर्ताव  कर  रही  थी ।  वो  जिस  दुःख,  जिस  तकलीफ़  को  महसूस  कर  रही  थी ।  उसे  लेकर  मैं  बेचैन  था ।  और  इसी  वजह  से  जल्द  से  जल्द  उसे  मिलकर  मैं  ये  तसल्ली  करना  चाहता  था  के  क्या  वो  अपने  उन  हालातों  से  उबर  पाई  थी ?  या  वो  डर  जो  मैंने  कल  रात  उसकी  आंखों  में  देखा  था  वो  अब  भी  कायम  था ?!

सुबह  8 : 00  बजे ।
मैं  पलक  को  सुबह-सवेरे  नींद  से  जगाकर  परेशान  नहीं  करना  चाहता  था ।  इसलिए  अपने  मन  में  चल  रही  हलचल  के  बावजूद  मैं  उसके  जागने  का  इंतजार  करता  रहा ।  पर  अब  मेरा  इंतज़ार  खत्म  हो  चुका  था ।
'शायद  अब  पलक  नींद  से  जाग  चुकी  होगी और  ऑफिस  जाने  के  लिए  तैयार  भी  हो  चुकी  होगी',  यहीं  सोचकर  मैं  नीचे  महल  के  होल  तक  जा  पहुंचा ।  पर  वो  वहां  नहीं  थी ।  इसलिए  मैं  उसे  ढूंढते  हुए  कित्चन  तक  जा  पहुंचा ।  लेकिन  हैरत  की  बात  थी  कि  वो  वहां  पर  भी  मौजूद  नहीं  थी ।  उसे  वहां  ना  पाकर  मैं  काफी  परेशान  हो  गया  और  तुरंत  मैं  उसके  कमरे  की  ओर  मुड़  गया ।
अपने  अदृश्य  रूप  में  कित्चन  की  दीवार  से  होकर  बाहर  निकलते  ही  मैं  ऊपरी  मंजिल  पर  बने  पलक  के  कमरे  की  खिड़की  से  अंदर  चला  आया ।  और  आते  ही  मैंने  पलक  को  बाथरुम  से  बाहर  आते  देखा ।
चमकीले  उजले  रंग  की  कुर्ती  और  गहरे  नीले  रंग  की  स्कर्ट  पहने  पलक  सफेद  रूमाल  से  अपने  गिले  बालों  को  हल्के  से  पोंछते  हुए  बाथरूम  के  दरवाजे  से  बाहर  आई ।
वो  सही-सलामत  थी ।  उसे  अपनी  आंखों   के  सामने  ठीक  देखकर  मुझे  चैन  मिला ।
तब  बाथरुम  के  दरवाज़े  को  बंद  कर  उसके  पलटते  ही  मैंने  ख़ुद  को  पलक  के  सामने  उजागर  किया ।  पलटने  पर  जैसे  ही  पलक  की  नज़रे  मुझ  पर  पड़ी  वैसे  ही  हैरत  से  उसकी  आंखें  थोड़ी  बड़ी  हो  गई  और  उसके  होठों  पर  हल्की  मुस्कान  आ  गई ।  लेकिन  उसके  सामने  होकर  भी  मैं  उसे  कुछ  नहीं  कह  पाया ।  मैं  बस  खामोशी  से  असमंजस  में  उसकी  ओर  देखता  रहा ।
"चंद्र..!"  तुरंत  मेरी  ओर  बढ़ते  ही,  "मांफ  करना,  आज  मुझे  थोड़ी  देर  हो  गई ।"  पलक  ने  धीमे  से  कहा ।
मेरे  यहां  अचानक  आने  पर  वो  मुझसे  नाराज़  नहीं  थी ।  और  नाहिं  मेरी  मौजूदगी  से  वो  घबराई  थी ।  पता  नहीं  पलक  तुम  किस  किस्म की लड़की  हो ?!  इतनी  नाज़ुक..  इतनी  जज़्बाती..  फ़िर  भी  इतनी  सहनशील..  इतनी  निडर..
गहरी  सोच  के  साथ  उसे  देखते  हुए,  "कोई  बात  नहीं ।  तुम्हें  माफ़ी  मांगने  की  कोई  ज़रूरत  नहीं ।"  मैंने  धीमे  से  कहा ।
मेरी  बात  सुनते  ही  फीकी  मुस्कान  के  साथ  पलक  ने  शर्मिंदा  होकर  अपना  सर  झूका  लिया  और  हड़बड़ाहट  में  दूसरी  तरफ  मुड़ते  ही  जल्दबाज़ी  में  अपने  कमरे  और  बिस्तर  को  साफ़  करने  लगी ।
"पता  नहीं  आज  मैं  इतनी  देर  तक  कैसे  सो  गई ?!"  पलक  ने  कहते  हुए  अपने  काम  को  जारी  रखा ।
लेकिन  मैं  बिना  कुछ  कहे  बस  ख़ामोशी  से  उसे  देख  रहा  था ।  पलक  के  बर्ताव  से  और  उसके  चेहरे  को  देखकर  मुझे  तसल्ली  हो  गई  थी  कि,  कल  रात  कहानी  सुनने  के  बाद  वो  जिस  तकलीफ़  को  गुज़र  रही  थी  उसने  मुझे  परेशान  कर  दिया  था ।  पर  अब  वो  अपने  उन  नाज़ुक  हालात  से  बाहर  आ  चुकी  थी ।
कल  उसके  चेहरे  पर  अंजान  दर्द,  उलझन  और  सिवाय  बेबसी  कुछ  नहीं  था ।  पर  आज  उसकी  आंखों  में  उम्मीद  की  हल्की  चमक  मौजूद  थी ।  पलक  के  चेहरे  पर  सुकून  और  मुस्कान  थी ।  वहीं  कमरे  में  खिड़की  से  आती  सूरज  की  कीरनें  पलक  पर  पड़ते  ही  उसका  ख़ूबसूरत  चेहरा  चमक  उठा  था ।  उसके  नम,  हल्के  बिखरे  बाल  पलक  की  सुंदरता  को  और  बढ़ा  रहे  थे ।  और  उसे  खुश  देखकर  मेरे  होठों  पर  भी  अंजान  मुस्कुराहट  आ  गई ।
अपना  काम  ख़त्म  कर  पलक  के  सामने  आते  ही,  "शुक्रिया..!  मेरा  ख्याल  रखने  के  लिए ।"  मैंने  अपनी  सोच  के  बीच  उसकी  आवाज़  सुनी ।
"तुम्हारा  भी  शुक्रिया..!"  मैं  अपनी  गहरी  सोच  के  बीच  कह  गया ।  जो  पलक  की  समझ  से  बाहर  था ।
शुक्रिया..  पलक ।  मेरी  ज़िंदगी  के  बाद  भी  मेरी  इस  बेजान  और  बेमतलब  जिंदगी  में  आने  लिए ।
"क्या  तुम  ठीक  हो ?"  पलक  की  आंखों  में  देखते  हुए  मैंने  धीमे  से  सवाल  किया ।
"हां,  मैं  ठीक  हूँ ।  सिर्फ  तुम्हारी  वजह  से ।"  हल्की  मुस्कान  के  साथ  पलक  ने  जवाब  दिया ।
"मुझे  पता  है,  मैंने  पारलौकिक  दुनिया  के  बारे  जानने  की  ज़िद  की  थी ।  इसीलिए  तुम  मुझे  लेकर  बहुत  परेशान  हो ।"  मेरे  करीब  आते  ही,  "लेकिन  मेरा  भरोसा  करो,  मैं  ऐसा  कुछ  नहीं  करूंगी,  जिससे  मेरी  जान  खतरे  में  पड़  जाए ।  और  मैं.  जानती  हूं,  तुम्हारे  होते  हुए  मुझे  कुछ  नहीं  हो  सकता ।  ट्रस्ट  मी ?"  पलक  ने  मुझे  यकीन  दिलाते  हुए  कहा ।
पलक  का  दृढ़  विश्वास  देखकर  मैं  उसे  इनकार  नहीं  कर  पाया ।  और  मैंने  उसकी  सहमति  में  हल्के  से  अपनी  पलकें  झुका  ली ।  मेरी  सहमति  पाते  ही  उसके  होठों  पर  मुस्कान  लौट  आई ।  और  उसके  बाद  वो  जल्दीबाजी  में  ऑफिस  के  लिए  तैयार  होकर  सलोनी  के  साथ  चली  गई ।

दोपहर  3 : 30  बजे ।
पलक  मुझे  पहले  ही  बता  चुकी  थी  कि  आज वो  अपने  आर्टिकल  के  सिलसिले  में  फ़िर  शिमला  के  उसी  मशहूर  कॉलेज  में  जाने  वाले  थे ।  और  शायद  इस  वक्त  वो  लोग  वहां  पहुंच  चुके  होंगे ।
वो  सुबह  ठीक  लग  रही  थी ।  पर  ऑफिस  जाने  के  बाद  कहीं  उसे  कुछ  हुआ  तो  नहीं,  जिससे  वो  फ़िर  परेशान  हो  जाए ?  वो  क्या  कर  रही  होगी ?  अपनी  उलझनों  के  साथ  वो  कैसे  काम  कर  रही  होगी ?  और  अगर  वापस  घर  लौटने  पर  उसने  मुझे  अगली  कहानी  के  बारे  में  पूछा  तो  मैं  क्या  कहूंगा ?!  पलक  के  जाने  के  बाद  भी  उसके  ख्याल  हर  वक्त  मेरे  झहन  में  चलते  रहे ।  काफी  देर  सोचने  के  बाद  आख़िरकार  मैं  इंतजार  नहीं  कर  पाया  और  मैं  पलक  के  पीछे  चल  पड़ा ।
कुछ  ही  मिनटों  में  मैं  महल  से  ग़ायब  होकर  उस  कॉलेज  के  ग्राउंड  पर  था,  जहां  पलक  हो  सकती  थी ।  मगर  वो  वहां  आसपास  नहीं  थी ।  इसलिए  मैं  आगे  बढ़  गया ।  उसी  वक़्त  मेरी  नज़रें  वहां  बने  प्लें  ग्राऊंड  पर  पड़ी  और  उस  ओर  जाते  ही  मैंने  पलक  को  कुछ  लड़के-लड़कियों  से  बातें  करते  देखा ।  वहां  पलक  के  साथ  उसकी  दोस्त  सलोनी  और  कोई  लड़का  भी  मौजूद  था ।
उन  दोनों  के  पलक  के  साथ  होने  से  मेरी  फिक्र  कम  हो  गई  थी ।  उसके  होते  हुए  पलक  सुरक्षित  थी ।  शायद  वो  सभी  अपनी  नयी  मैगज़ीन  के  आर्टिकल  के  लिए  यहां  आए  थे ।  पलक  अपने  काम  को  लेकर  काफ़ी  डेडिकेटेड  थी ।  और  वो  अपने  काम  से  खुश  लग  रही  थी,  जैसा  मैं  उसे  देखना  चाहता  था ।
मैं  पलक  के  काम  में  रूकावट  नहीं  बनना  चाहता  था ।  मैं  बस..  उसे  देखना  चाहता  था ।  इसलिए  अपने  अदृश्य  रूप  में  ख़ामोश  रह  कर  मैं  उसे  देखता  रहा ।
पलक  और  कोई  इंसान  मुझे  नहीं  देख  सकता  था ।  पर  तभी  तेज़  हवा  का  झोका  महसूस  करते  ही  पलक  ने  अचानक  मुड़कर  अपनी  हैरत  भरी  नज़रों  से  उस  दिशा  में  देखा,  जहां  पर  मैं  मौजूद  था ।
ना  देखकर  भी  शायद  पलक  को  ये  एहसास  हो  गया  था  कि  मैं  यहीं  पर  हूं ।  और  उसक
उसकी  ये  छोटी  सी  बात  मेरे  होठों  पर  मुस्कान  ले  आई ।  पर  अब  मैं  उसे  और  परेशान  नहीं  करना  चाहता  था  और  नाहिं  मैं  उसे  डराना  चाहता  था  कि,  मुझ  जैसी  एक  आत्मा  हर  जगह  उसका  पीछा  कर  रही  है ।  इसलिए  पलक  को  अपने  दोस्तों  के  साथ  छोड़कर  मैं  वापस  लौट  आया ।

रात  8:30  बजे ।
पलक  को  घर  लौटे  काफी  समय  बीत  चुका  था ।  पर  मैं  इतनी  देर  से  उसके  सामने  जाने  की  हिम्मत  नहीं  कर  पाया ।  मैं  दोपहर  में  हुई  घटना  को  लेकर  थोड़ा  बेचैन  था ।  मैं  समझ  नहीं  पा  रहा  था  कि,  मैंने  ऐसा  क्यूँ  किया ?  वो  कौनसी  वजह  थी  जिसने  मुझे  पलक  के  पास  जाने  से  मजबूर  कर  दिया  था ?  अच्छा  होगा  अगर  पलक  को  कोई  परेशानी  ना  हुई  हो ।  और  अच्छा  होगा  अगर  उसने  इस  घटना  को  हल्के  में  लेकर  भूला  दिया  हो ।
आख़िरकार  पलक  के  पास  जाने  की  हिम्मत  करते  हुए,  "कैसा  रहा  तुम्हारा  दिन ?"  मैंने  सवाल  किया ।  और  मैं  उसके  सामने  जा  पहुंचा ।
खाना  खाने  के  बाद  अपने  आसपास  के  सभी  काम  ख़त्म  करने  के  बाद  पलक  महल  के  होल  में  सोफा  पर  बैठी  थी ।  उसके  हाथों  में  वहीं  डायरी  थी,  जिसमें  वो  अपनी  सभी  यादों  को  कैद  करना  पसंद  करती  थी ।  और  उसके  सामने  टेलिविजन  में  कोई  शो  चल  रहा  था ।
मेरी  आवाज़  सुन  मेरी  ओर  मुड़ते  ही,  "बहुत  अच्छा  रहा ।  उन  कॉलेज  स्टूडेंट्स  और  वहां  के  खिलाड़ियों  से  हमें  बहुत  सी  जानकारी  हासिल  हुई ।  अब  हम  हमारी  मैगज़ीन  में  सबसे  पहला  आर्टिकल  उन्हीं  के  बारे  में  लिखेंगे ।"  पलक  ने  उत्साह  के  साथ  पर  धीमे  से  जवाब  दिया ।
"जानकर  अच्छा  लगा  कि  तुम  अब  इस  काम  को  लेकर  निश्चित  हो ।"  उसकी  ओर  देखकर  मैंने  कहा ।
"हाँ ।  अब  धीरे-धीरे  मैं  अपने  काम  को  समझने  लगी  हूं ।  और  ये  सब  तुम्हारी  वजह  से ।"  पलक  ने  कहते  ही  हल्की  झिझक  के  साथ  अपना  सर  झुका  लिया ।
"तो  अगली  कहानी  के  लिए  तैयार ?"  उसकी  हिचकिचाहट  दूर  करने  की  कोशिश  करते  हुए मैंने  पूछा ।
मेरे  सवाल  पर  उसने  चौकते  हुए  अपना  सर  उठा  लिया ।  मगर  अगले  ही  पल  वो  अपनी  डायरी  और  पेन  लेकर  तैयार  हो  गई ।  पलक  का  ध्यान  पूरी  तरह  मुझ  पर  था ।  और  उसकी  कई  सारे  सवालों  भरी  नज़रे  उम्मीद  के  साथ  मुझे  देख  रही  थी ।

2) The Dangerous Harmony.
"ये  कहानी  है  एक  ख़तरनाक  और  जानलेवा  संगीत  की ।  ऐसा  संगीत  जिसे  सुनने  वाले  हमेशा  के  लिए  गहरी  नींद  में  सो  गए ।"  कहानी  की  शुरुआत  करते  हुए  मैंने  रहस्यमयी  ढंग  से  कहा ।
"संगीत..!?"  उन  शब्दों  के  साथ  पलक  की  हैरत  भरी  नज़रे  मुझ  पर  ही  बिछी  थी ।

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Video made by : Author B. Talekar
This is a video trailer of my published book, 'The Dark Dekken'. Abhiy & Pkyek lover must read this book. I'm sure you will like to read it.

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