Chapter 15 - Chandra (part 1)

Hello Friends,
I know I keep you waiting from so long and I apologize for that. But now I'm here again with another Chapter of PalakChandra 💕
Please enjoy the Reading. 😊
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
मंगलवार, सुबह 9 : 00 बजे ।
घर से निकलते समय पलक ने आंखरी बार पीछे मुड़कर देखा । उसकी नज़रे मुझे ही ढूंढ रही थी । मैं उसे जाते देख रहा था । मगर कल रात हमारे बीच हुई बातों से परेशान होने के कारण मैं पलक का सामना नहीं कर पाया ।
कुछ देर बाद सलोनी के आते ही चेहरे पर हल्की मायूसी लिए पलक घर से चली गई । लेकिन उसकी कहीं बाते अब तक मेरे कानों में गूंज रही थी । मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो इस ख़तरनाक और भयानक दुनिया के बारे में जानने की ज़िद क्यों कर रही थी । जबकि वो अच्छी तरह जानती थी कि इस दुनिया के नियमों में दख़लअंदाज़ी करना उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता था ।
मुझे पलक की फ़िक्र होने लगी थी । पर मैं ये भी जानता था कि पलक बिना इस सच्चाई को जाने मानने वाली नहीं थी । मैं.. पलक से वादा कर चुका था कि, 'मैं उसे इस दुनिया के बारे में वो सब बताऊंगा जो मैं जानता था ।' पर मैं ये नहीं जान पा रहा था कि मुझे पलक से क्या कहना चाहिए, जिससे मैं उसे इस दुनिया की सच्चाई से वाकिफ करा पाऊं और उसे सुरक्षित भी रख पाऊं ।

शाम 6 : 00 बजे ।
जैसे-जैसे पलक के घर लौटने का समय करीब आता जा रहा था वैसे-वैसे मेरी चिंता बढ़ने लगी थी । पलक किसी भी मिनट यहाँ पहुँच सकती थी । और मुझे उसका सामना करना ही होगा ।
क्योंकि, मैं नहीं चाहता था कि मेरे इस तरह अचानक गायब होने से पलक फ़िर परेशान हो जाए या वहीं डर महसूस करे, जो उसे ज़िन्दगी से दूर करने वाला था ।
तब अगले ही पल दरवाज़े पर दस्तक सुनते ही मैंने बाहर जाकर देखा । पलक की दोस्त उसे यहाँ छोड़ते ही जा चुकी थी । और पलक घर वापस लौट आयी थी । उसके चेहरे पर हल्की सी खुशी नज़र आ रही, जिसे देखकर मुझे सुकून मिला । मगर वहीं दूसरी तरफ़ पलक के सवालों का सामना करने के ख़्याल से मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी ।
पलक के सामने जाने की हिम्मत करते हुए, "तुम्हें खुश देखकर अच्छा लगा ।" आख़िरकार मैंने अपनी खामोशी को तोड़ दिया ।
बेसब्री से मेरी तरफ़ मुड़ते ही, "मुझे भी ।" पलक ने हल्की मुस्कान के साथ कहा ।
"इस खुशी की कोई ख़ास वजह ?" मैंने हिचकिचाते हुए धीमे से सवाल किया ।
"हाँ, असल में मे'म ने मुझे नयी मेगज़ीन के लिए अपोईंट किया है । लेकिन.." पलक ने मुस्कराहट के कहना चाहा पर कहते हुए अचानक उसके चेहरे पर उदासी उभर आई ।
"लेकिन.. क्या ? कोई परेशानी है ?" उसकी परेशानी की वजह पूछे बगैर मैं नहीं रह पाया ।
"कोई गंभीर बात नहीं लेकिन, सलोनी की बजाय उनका मेरा नाम अपोईंट करना, मुझे ठीक नहीं लगा ।" पलक कहते हुए, "इसलिए मैंने मे'म से उसे भी शामिल करने की गूज़ारिश की ।" मायूस होकर सोफा पर बैठ गई ।
"इसमें हिचकिचाने वाली कोई बात नहीं । उन्हें जो बेहतर लगा उन्होंने वहीं किया । पर तुमने अपनी दोस्त को शामिल करने का फैसला लेकर अच्छा किया । अब उदास होने की कोई ज़रूरत नहीं ।" मैंने उसे समझाने की कोशिश की ।
"शुक्रिया !" मेरी बात सुनते ही, "मुझे लगता है, मुझे कित्चन में जाकर अपने लिए कुछ बना लेना चाहिए ।" पलक ने मेरी तरफ़ देखकर धीमे से कहा ।
पलक की बात पर मैंने सर झुका कर 'हाँ' में जवाब दिया । और वो खड़ी होकर कित्चन की तरफ चली गई ।
लेकिन उसने एक बार भी उन रहस्यों का ज़िक्र नहीं किया । शायद वो इस बारे में भूल चुकी थी । और अगर यहीं सच था तो उसके लिए इन बातों को भूलना ही सुरक्षित था ।

रात 8 : 30 बजे ।
पलक मुझसे कुछ ही दूरी पर, मेरे सामने हॉल में टेलीविजन ऑन करके सोफा पर बैठी थी । मैं अपने अदृश्य रूप में पलक के करीब ही था । मेरी नज़रे उसी पर थी । लेकिन मैं उसके सामने जाने से हिचकिचा रहा था । क्योंकि उन ख़तरनाक रहस्यों को लेकर मैं अब भी निश्चित (not sure) नहीं था ।
"चंद्र..!" मैंने पलक को बिल्कुल धीमी आवाज़ में अपना नाम पुकारते सुना ।
और उसे अपनी तरफ देखते देख मैं हैरान रह गया । मैं उस वक़्त अपने अदृश्य रूप में था, जिसका मतलब पलक या कोई इन्सान मुझे नहीं देख सकता था । पर इसके बावजूद पलक की नज़रे उसी दिशा में बिछी थी, जहां मैं खड़ा था ।
अपने ज़ाहिर रूप में उसके पास जाते ही, "माफ़ करना अगर मेरी वजह से तुम्हें डर लगा हो तो । लेकिन तुम्हें डराने का मेरा कोई इरादा नहीं था ।" मैंने अपना सर झुका कर माफ़ी मांगी ।
हल्की उलझन भरी मुस्कान के साथ, "सच कहूं तो डर लगता है । लेकिन तुमसे नहीं, तुम्हारे ना होने से ।" पलक ने मेरी आंखों में देखकर कहा, "जब तक मैं.. तुम्हें देख नहीं लेती तब तक एक अजीब सा डर लगता है ।" पर अचानक गहरी सोच में डूब कर वो खामोश हो गई और उसने अपनी पलकें नीचे झुका ली ।
उसे  गहरी  सोच  में  देख  मैं  उसके  नजदीक  गया ।  मैं  अपनी  परछाई  उसकी  खूबसूरत  आंखों  में  देख  सकता  था ।  और  तब  पलक  का  ध्यान  एक  बार  फ़िर  अपनी  ओर  खिचते  ही  उसने  नज़रे  उठा  कर  मेरी  तरफ़  देखा ।  उसकी  आंखों  में  आंसू  उतर  आए  थे ।
"मैं  तुम्हें  महसूस  कर  सकती  हूँ ।  लेकिन  जब  तक  मैं  तुम्हें  देख  नहीं  लेती  तब  तक  मुझे  लगता  है  जैसे  मेरा  अंदाज़ा  झूठ  तो  नहीं ।"  पलक  ने  अपनी  नम  आंखों  से  मेरी  आंखों  में  देखते  हुए,  "अगर  वहां  तुम  ना  होकर  तुम्हारी  बजाय  कोई  औऱ, हुआ  तो  मैं  क्या  करूंगी !"  काफ़ी  परेशान  होकर  कहा । 
उस वक़्त पलक की आंखों में और उसकी हल्की कांपती हुई आवाज़ में मैं उसका डर, उसकी परेशानी साफ़ महसूस कर पा रहा था ।
जब वो घर लौटी थी तब वो काफ़ी ख़ुश थी । लेकिन इस एक वजह ने उसके होठो की वो मुस्कान फ़िर छीन ली, जिसे मैं नहीं देख सकता था । और कहीं ना कहीं उसके तकलीफ की वजह मैं ख़ुद था, जिसका अफसोस मुझे बेचैन कर रहा था ।
पलक को इस तरह कमज़ोर पड़ते देख मैं ख़ुद को उसके नजदीक जाने से नहीं रोक पाया । मैंने हल्के से अपना हाथ उसके चेहरे पर रखा ।
"अगर मेरे ओझल रहने से तुम्हें इतनी तकलीफ होती है तो मैं वादा करता हूँ, 'मैं हमेशा अपने इसी रूप में तुम्हारे सामने रहूँगा ।'" मैंने पलक की ओर देखते हुए प्यार से कहा । और उसने अपनी पलकें उठा कर मेरी आंखों में देखा ।
पर तब पलक को अपनी ओर देखते हुए देख मुझे एहसास हुआ कि पलक मेरे स्पर्श को महसूस तक नहीं कर सकती थी । वो तो ये तक नहीं जानती थी कि मेरा हाथ उसके चेहरे को छू रहा था । पर फ़िर भी मैं ऐसा करने से ख़ुद को नहीं रोक पाया; मैं अपनेआप उसकी ओर खिचता चला गया ।
अपनी भूल का एहसास होते ही झट से अपना हाथ पीछे खीचते ही, "लेकिन अगर तुम्हें मेरे अदृश्य रूप से इतना डर लगता है तो तुमने मुझे ये पहले क्यूँ नहीं बताया ? इतने दिनों तक ये तकलीफ क्यूँ सेहती रही ?" मैंने परेशान होकर सवाल किया और उससे दूर हो गया ।
"मुझे नहीं पता मैंने ऐसा क्यूँ किया । एक अजीब सी कशमकश ने मुझे रोके रखा था । मुझे लगा जैसे ये बस एक भ्रम था । और मैं तुम्हें.. परेशान नहीं करना चाहती थी ।" पलक ने मेरी ओर देखकर, "मुझे नहीं पता कि, ये सब मेरे साथ क्यूं हो रहा है । मैं तुम्हें क्यूँ और कैसे मिल पायी । लेकिन मैं इसकी वजह जानना चाहती हूँ ।" परेशान होकर कहा ।
"मैं समझ सकता हूँ, तुमने ऐसा क्यूँ किया ।" मैंने भरोसे के साथ कहा, "लेकिन आगे से मेरी एक बात हमेशा याद रखना, चाहे कोई भी तकलीफ हो तुम मुझे बताने से पीछे नहीं हटोगी ।" और मेरी बात सुनते ही पलक ने बिल्कुल हल्की मुस्कान के साथ सहमति में अपना सर हिलाया ।
ख़ुद को तैयार करते हुए, "और.. जहां तक मैं जानता हूँ, तुम्हारे सवाल का जवाब तुम मेरी इस कहानी से जान पाओगी ।" आख़िरकार मैं पलक को उन रहस्यों के बारे में बताने के लिए तैयार था ।
मैं समझ चुका था कि मुझे पलक को क्या और किस तरह बताना चाहिए था । और अब मैं पलक को उन सभी ख़तरों से सावधान कर सकता था, जो उसे नुकसान पहुँचा सकती थी । और उसकी शुरुआत उस कहानी से होने जा रही थी, जो मैं पलक को सुनाने जा रहा था ।
▲△▲△▲△▲△▲△▲△▲△▲△▲
I hope you all enjoyed the chapter.
Now Palak & Chandra are slowly coming closer. And with that, their Asmbhav story taking new tweet and turn.
But I need your love & Support to write more existing chapters.
Must share your feeling & feedback about the story.
Love,
B. Talekar 💖
Announcement
A great News for my Readers & Friends.
Now you can Also Read my 2 Newly Published Novels; The Dark Dekken & Alamana from Amazon, Flipkart, Pustakmamdi.com, rediif.com and My Books Also Available in Book Shops At All over In Mumbai - Maharashtra.
Please also show your love against my Published Work and Be the Part of my Journey. 💓💕💞

Bạn đang đọc truyện trên: AzTruyen.Top