Chapter 12 - Palaka (part 2)

Hello Everyone,
Missing me.?
So here I'm.! 😊 Yes, I'm back with another aspect of story..! So without talking too much, here you go.. 😊😃
Enjoy the Journey of "Unknown love"
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शाम 6 : 00 बजे ।

हमारे ऑफ़िस का समय ख़त्म होने के बाद मैं सलोनी के साथ घर पहुँची । आज ऑफ़िस में काम करते हुए देर हो चुकी थी और वापस घर लौटने तक अँधेरा हो चूका था । मगर इतनी देर तक काम करने के बावजूद मैं कुछ ख़ास नहीं कर पायी थी । अपने आर्टिकल के बारें में सोच-सोचकर मैं परेशान हो चूकी थी और दिन ढलने के साथ मुझे थकान महसूस होने लगी थी ।
कुछ देर आराम करने के बाद मैंने अपने लिए खाना बनाना शुरू किया । और खाना खाने के बाद बिना समय गवाए मैं फ़िर अपने आर्टिकल को लेकर बैठ गई । इस बार मैं क्रितिका मैडम और सलोनी को निराश नहीं करना चाहती थी । और इसी वजह से मैं इस आर्टिकल को लेकर बहुत गंभीर थी ।
नीचे होल में टेलीविजन के सामने बैठकर मैं अपना आर्टिकल लिखने की कोशिश कर रही थी । मुझे इस आर्टिकल का टोपिक बहुत अच्छा लगा था और मैं इसमें बहुत कुछ दिखाना चाहती थी । लेकिन मैं अपनी इस सोच को आर्टिकल के रूप में शब्दों में नहीं ढ़ाल पा रही थी । मेरे लिए किसी चीज़ के बारे में गहराई से सोचना काफ़ी आसान था, लेकिन उसे शब्दों में ज़ाहिर करना उतना ही मुश्किल । तब अपनी इसी उलझन के बीच मुझे किसी के होने का एहसास हुआ, जो अब मेरे लिए बिल्कुल भी अंजान नहीं था ।
"वेलकम बेक !" चंद्र ने मेरे पास आकर धीरे से कहा ।
लेकिन मेरे पास उसकी बात का कोई जवाब नहीं था । इसलिए मैंने बस हल्की सी उलझन भरी मुस्कुराहट के साथ उसकी तरफ़ देखा ।
"एनी प्रोब्लेम ? क्या मैं.. कुछ मदद कर सकता हूँ ?" मेरे बिना कहे उसने मेरी परेशानी जान ली ।
चंद्र की बातों ने एक बार फ़िर मुझे चौका दिया था । मैं समझ सकती थी कि, शुरू में उसने मेरे साथ जो किया वो सब मेरी जान बचाने के लिए था । लेकिन फ़िर भी मुझे मारने की कोशिश करना, मुझे डराना, मेरे सामने हर रोज़ एक नई चुनौती रखना, ख़ुद मेरी परेशानियों को बढ़ाकर आज इस तरह मेरा साथ देना, मेरे लिए बिल्कुल नया था । चंद्र की हर बात मुझे एक अनजान एहसास करवा रही थी ।
एक तरफ़ 'चंद्र का मेरे साथ होना मुझे सुकून दे रहा था तो दूसरी तरफ़ वो मेरे साथ क्या कर सकता था' इस बात का डर मुझे बार-बार चेतावनी दे रहा था ।
पर आज पहली बार चंद्र ने दूर गए बिना ख़ुद मुझसे बात करने की पहल की थी; मेरे सामने आकर मेरी परेशानी जाननी चाही ।
मैं जानती थी कि किसी इन्सान के साथ रहना चंद्र के लिए काफ़ी मुश्किल था । लेकिन अब वो.. मेरी मौजूदगी को अपना चुका था । वो इस सच को मानने लगा था कि, अब इस महल में उसके साथ मैं भी रहती थी ।
"हंहम..हाँ, वो.. मैं बस.. इस आर्टिकल पर काम कर रही थी ।" उसकी बात का जवाब देते हुए, "लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि, मैं इसमें क्या लिखू ।" मैंने धीरे से कहा ।
तब अगले ही पल, "क्या मैं देख सकता हूं ?" चंद्र ने मेरी फाईल की तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए मुझसे सहमति मांगी ।
और मैंने बिना किसी सवाल के अपनी फाईल उठाकर उसकी तरफ़ आगे बढ़ा दी । तभी उस फाईल को थामते हुए चंद्र ने अपना हाथ आगे बढ़ाया । लेकिन चंद्र के छूए बिना वो फाईल चंद्र के हाथ पर उसके सामने हवा में तैर रही थी । और चंद्र की अंगुलियों के हल्के से इशारे पर उसके पन्ने अपनेआप पलटनें लगे ।
कुछ ही मिनटों में पूरी फाईल स्टडी करने के बाद, "पैड़-पौधें, जंगल, पृथ्वी; सेव द नेत्चर । काफ़ी अच्छा टोपिक है । तुम इसमें बहुत कुछ लिख सकती हो ।" चंद्र ने मेरी तरफ़ देखकर अदृश्य मुस्कराहट के साथ कहते हुए मुझे फाईल लौटायी ।
"हाँ, शाायद ।" मैंने मायूसी भरी आवाज़ में, "लेकिन ये मेरे लिए बहुत मुश्किल है । म..मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं.. लिखना कहां से शुरू करूँ ।" धीमे से कहा ।

"कहीं रेगिस्तान बह रहे, तो कहीं बर्फ बिछा रहे ।
लोहे के पर्वत खड़े किए, तो कहीं नदियाँ बहा रहे ।
नजाने क्यूँ प्रकृति को मारकर इन्सान अपनी नियति जला रहे हैं।" चंद्र की इस अनोखी सोच को खूबसूरत कविता के जरिए बाहर आते देख मैं गहरी सोच में पड़ गई ।
चंद्र की इस कविता के शब्द मेरे कानों में घुलते ही वो सीधा मेरे मन को छु गए । मैं जानती थी कि ये कविता मेरे लिए नहीं है लेकिन फ़िर भी उसके वो गहरे और सूरीले शब्द मेरे होंठों पर अजब-सी मुस्कराहट ले आए थे । और मेरी नज़रे बिना पलकें झपकाये उसी पर टिकी रही ।
"ये बहुत ही खूबसूरत कविता है, चंद्र.. तुम ये.. कैसे.." मेरी खुशी अपनेआप इन आधे-अधूरे शब्दों के जरिए बाहर चली आई ।
अगले ही पल उसकी तेज़ नज़रे मुझ पर उठते मेरी पलकें झूक गई ।
"कॉलेज के समय से ।" काफ़ी नम आवाज़ में चंद्र ने कहा, "तब मैं.. एक ज़िदा इन्सान हुआ करता था । इन शब्द को महसूस कर सकता था ।" मगर अगले ही पल कठोर होकर, "लेकिन आज मेरे लिए इसके कोई मायने नहीं है । ये बस मेरे लिए बेजान शब्द बनकर रह गए हैं ।" कड़ी आवाज़ में कहा ।
लेकिन मैं चंद्र की आंखों में खालीपन देख सकती थी । उसकी आवाज़ में कंपन सुन पा रही थी । कहीं ना कहीं वो आज भी अपने इन शब्दों में छिपी गहराई को महसूस कर सकता था ।
"आई'एम सोरी । मुझे वो सवाल नहीं करना चाहिए था ।" मैं उसकी परेशानी नहीं देख पायी, "मैं बस तुम्हारी इस लाजवाब कविता सुनकर ख़ुद को कहने से नहीं रोक पायी ।" और मैंने माफ़ी मांगी ।
मेरी बात सुनते ही, "नो, इट्स ओल राईट । शायद मैं.. कुछ ज़्यादा ही सख़्त हो गया था ।" चंद्र ने मेरे पास आकर नर्मी से कहा, "वैसे तुम इस कविता को अपने तरीके से इस्तेमाल कर सकती हो ।" और मैंने नज़रे उठाकर उसकी तरफ़ देखा ।
चंद्र ख़ुद को जैसा समझ रहा था वो वैसा बिल्कुल नहीं था । वो सख़्त या बेजान बिल्कुल नहीं था । पर ये सच्चाई वो ख़ुद नहीं जान पा रहा था ।
अपने मन की बात ज़ाहिर ना करते हुए, "शुक्रिया.. मैं इसे ज़रूर इस्तेमाल करूंगी । और इतनी सुन्दर कविता को.. मेगज़ीन में आना ही चाहिए ।" मैंने हल्की मुस्कराहट के साथ कहा ।
इसी तरह चंद्र से बात करते हुए मैंने अपने आर्टिकल पर काम करना शुरू कर दिया । उसने आर्टिकल के टोपिक को लेकर मुझे काफ़ी कुछ समझाया । चंद्र के साथ होने से जैसे मेरा दिमाग़ भी हरकत में आ गया था और मैं.. बिना किसी रोक-टोक के हर बात अपनी तरह से लिखती गयी । उस रात बस दो घंटों में मैंने इतना काम पूरा कर लिया था, जितना मैं तीन दिनों में नहीं कर पायी थी ।
उस दिन के बाद मेरे ऑफ़िस से लौटते ही मैं अपने इसी आर्टिकल को पूरा करने में जुट जाती । पर मैं ये काम अकेले नहीं कर सकती । उस समय चंद्र का होना मेरे लिए उतना ही ज़रूरी था, जितना कि कागज़ के लिए स्याही का होना । और चंद्र भी मेरे कुछ कहें बिना, बिना किसी शिकायत या रोक-टोक के हर रोज़ मेरे काम शुरू करने से लेकर ख़त्म करने तक हमेशा मेरे साथ रहता ।
मेरी किताब में लिखे गए ज़्यादातर शब्द चंद्र के थे । इस आर्टिकल को लिखनेवाली पैन भले ही मेरे हाथ में थी लेकिन इसकी सोच पूरी तरह से चंद्र की थी । इसी तरह लगातार तीन दिनों तक काम करते हुए आख़िरकार वो दिन आ गया, जब मुझे इस आर्टिकल को सब्मीट करना था ।
कल सोमवार था और कल मुझे पता चलने वाला था कि मैं मैडम का भरोसा जित पाने में कामयाब हो पायी थी या नहीं । मैं अपने काम को लेकर काफ़ी परेशान थी । लेकिन चंद्र की के कारण मेरा ये डर कुछ हद तक कम हो गया था और मैं.. इस काम को पूरा करने की हिम्मत कर पायी ।

सोमवार, सुबह 10 : 30 बजे ।
सुबह के साढ़े दस बजे थे और मैं हमेशा की तरह सलोनी के साथ सही समय पर ऑफ़िस पहुंच चुकी थी । मैंने अपना आर्टिकल पूरा कर लिया था । अब बस मुझे ये मैडम को दिखाना था ।
ऑफ़िस पहुंचते ही मैं सबसे पहले मैडम के केबिन में जा पहुंची । और कुछ ही पलों बाद मैं उनकी केबिन में बिल्कुल मैडम के सामने बैठी थी । मैडम मेरी दी गई फाईल के पन्नों को धीरे-धीरे कर काफ़ी गंभीरता से पलट रहे थे । उन्हें गंभीर देखकर घबराहट के मारे मेरे हाथों ने कुर्सी को जकड़ लिया और मैं कुर्सी में धसती जा रही थी ।
तभी मैडम के मेरी तरफ़ देखते ही, "वैल डन, पलक । तुमने सच में बहुत ही अच्छा काम किया है ।" मैं झटसे कुर्सी पर सीधी बैठ गई, "मैंने जितना सोचा था ये तो उससे भी ज़्यादा अच्छा है ।" और मैडम की बात सुनते ही मेरे चेहरे पर हैरानी भरी मुस्कान आ गई ।
तब चंद्र के बीते वो पल अचानक मेरे ज़ेहन में उतर आये, "थेंक यू मे'म, मुझे ये मौका देने के लिए ।" और मैंने मैडम का शुक्रियादा करते हुए अपनी अंगुलियों से आंखों पर छाए धुंधलेपन को दूर किया, जिनमें अचानक गिलापन उभर आया था ।
मैडम मेरे काम से बहुत खुश थे । और बाहर जाते ही मैंने यही बात सलोनी को बतायी । मेरी बात सुनते ही वो खुशी से उछल पड़ी । वही मैडम और सलोनी की खुशी देखकर मुझे सुकून था कि मैं उन दोनों के यक़ीन को कायम रख पायी थी ।
आज यहां अब तक का मेरा सबसे अच्छा दिन था । और ये सब चंद्र की वजह से मुमकिन हो पाया था । अगर वो नहीं होता तो आज मैं इस काम को कभी समय पर पूरा नहीं कर पाती थी । अब बस मैं.. आज के इस सुकून भरे दिन के बाद सबसे पहले चंद्र से मिलना चाहती थी; उसे.. शुक्रिया कहना चाहती थी ।
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