Chapter 10 - Palak (Part 2)

Hello fan of Abhiya and friends,
First of all sorry for late updating. But in these days I'm buys in my published novel's work. And in hurry I don't want to make this story 'Asmbhav' dull. So it's taking more time than before. So please accept my apology, be cool and keep sharing your love.
Surprise :- I have wonderful, mind wobbling surprise 🎁 For the admires of Abhiya & Asmbhav. And that will you all get so soon.. In Next chapter. So till then try to guess that surprise and let me know your guesses... 👍✌💝
Enjoy the story...! 😊
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शाम 8:00 बजे
उस दिन ऑफ़ीस ना जाने के कारण मैं सुबह से शाम तक बिल्कुल अकेली थी । सुबह चंद्र से बात करने के बाद वो पूरा दिन मेरी आँखों के सामने से ग़ायब रहा । लेकिन, उस नयन तारा पेलिस में पूरा दिन अकेले रहने के बावजूद उस दिन मुझे किसी भी तरह का डर महसूस नहीं हुआ जबकि, मैं.. ये जानती थी कि चंद्र के सिवा यहां इस जगह कोई औंर भी था या फ़िर थी, जो बस इन्सानों को मारना चाहती थी ।
यहां आने से पहले मुझे आत्मा, भूत - प्रेत जैसी चीजें बनावटी कहानियाँ लगती थी । इन सारी बातों को मैं बस इन्सानों के दिलों में खौफ़ भरने के लिए रची गयी साज़िश समझती थी ।
लेकिन, चंद्र से मिलने के बाद मेरी सोच बदल गयी थी । उसने मुझे यकीन दिला दिया था कि कभी-कभार नज़र ना आनेवाली चीजों का भी एक वजूद होता है । वो चीजें भी बिल्कुल हमारी तरह सच हो सकती है । और ये.. ज़रूरी नहीं कि जिन चीजों की मौजूदगी होने का ख़्याल हमें डरा दे वो हमारे लिए बस ख़तरनाक ही साबित हो । चंद्र ने मुझे इन चीजों को एक अगल नज़रिए से देखना सिखाया था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती थी ।
रात 10 : 30 बजे
उस रात मैं अपने काम को लेकर काफ़ी परेशान थी । मैं नीचे होल में टेलीविजन के सामने, सोफा पर बैठकर अपना काम कर रही थी । मे'म ने मुझे जिस आर्टिकल की जिम्मेदारी दी थी आज मैं उसी पर काम कर रही थी ।
ये पहली बार था कि मैं किसी आर्टिकल पर अकेले काम कर रही थी । और इसी कारण मैं समझ नहीं पा रही थी कि मैं ये काम कहाँ से शुरू करती ।
मैं इस आर्टिकल को लेकर काफ़ी उलझन में थी । और किसी भी तरह इसे पूरा करने की कोशिश में थी, जिससे मैं मेड़म की उम्मीदों को पूरा कर पाऊँ । मैं अपने इस आर्टिकल की सोच में खोयी थी और तभी एक बार फ़िर मुझे अपने पीछे उसके होने का एहसास हुआ ।
मैं उसकी मौजूदगी पहचान गयी थी । लेकिन फ़िर भी सब जानते हुए भी मैं अंजान बनी रही; मैंने पीछे पलटकर उसे नहीं देखा । क्योंकि मैं देखना चाहती थी कि मेरी बातें सुनने के बाद वो क्या चाहता था । क्या वो मेरी बातों पर भरोसा कर मुझसे बात करना चाहता या हमेशा मुझसे छुपकर, मुझसे दूर जाना चाहता था ।
"माफ़ करना । लेकिन क्या तुम किसी बात से परेशान हो ?" उसने आते ही हल्की झिझक भरी धीमी आवाज़ में, "कहीं मैंने तुम्हें फिरसे डरा तो नहीं दिया ?" सवाल किया और मेरे सामने आकर खड़ा हो गया ।
आंखिरकार मुझसे दूर भागने की बजाय चंद्र मुझसे बात करने का फैसला कर चूका था । जिससे मेरे मन का बोज हलका हो गया था ।

मैं जानती थी कि किसी इन्सान के साथ इस तरह से रहना शायद चंद्र के लिए भी उतना ही मुश्किल था, जितना की मेरे लिए किसी रुह के साथ रहना । इसी के साथ मुझे ये बात भी तक़लीफ पहुंचा रही थी कि मेरे यहाँ आने से चंद्र की परेसानियाँ बढ़ गयी थी । मेरे कारण उसे यहाँ से दूर रहना पड़ रहा था; उसकी आज़ादी छिन गयी थी । लेकिन अब.. उसके इस एक फैसले ने मेरे अशांत मन को राहत पहुंचायी थी । अब मैं.. अपने मन पर बिना कोई बोज लिए यहाँ रह सकती थी । लेकिन कितने दिनों तक पता नहीं ।
"नहीं, बिलकुल नहीं ।" मैंने हिचकिचाहट भरी आवाज़ में जवाब देते हुए, "मैं.. बस काम की वजह से परेशान हूँ । असल में, मुझे.. समझ नहीं आ रहा कि मैं इस आर्टिकल को लिखना.. कहाँ से शुरू करूँ ।" चंद्र की तरफ़ देखकर कहा ।
"अगर मेरी वजह से तुम्हारे काम में रुकावट आ रही हो तो कोई बात नहीं ।" मेरी बात सुनते ही, "मैं चलता हूँ । तुम अपना काम आराम से पूरा कर लो । हम बाद में बात करेंगे ।" उसने परेशान होकर कहा ।
"नहीं, ऐसी बात नहीं है ।" चंद्र को रोकते हुए, "लेकिन अ..गर.. तुम मेरी परेशानी कम करना चाहते हो तो क्या इस काम में तुम.. मेरी हेल्प करोगे ?" मैंने धीरे से हिचकिचाते हुए सवाल किया ।
चंद्र ने तुरंत मेरी तरफ़ देखकर, "अगर कर पाया तो ज़रूर करुँगा ।" हल्की-सी मुस्कान के साथ धीरे से जवाब दिया ।
चंद्र के इस तरह मेरे सामने आकर बात करने से मुझे काफ़ी सुकून मिल रहा था । उसके इस बर्ताव ने ज़ाहिर कर दिया था कि चंद्र ने इस महल में मेरी मौजूदगी को एक्सेप्ट कर लिया था । मुझे यकीन था कि अब वो कभी मुझे यहां से जाना के लिए नहीं कह सकता था । और अब उसकी सहमति ने काफ़ी हद तक मेरी परेशानी दूर कर दी थी ।
"थेंक यू । एन्ड थेंक यू सो मच, उस दिन मेरी जान बचाने के लिए ।" उसका जवाब सुनते ही मैंने बिलकुल हल्की मुस्कराहट के साथ कहा । लेकिन चंद्र ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया । वो बस अपनी हैरानी भरी नज़रों से मेरी तरफ़ देखता रहा ।
शायद उसके मन में यही चल रहा था कि कोई कमजोर-सी दिखनेवाली मामूली लड़की किसी रुह से इस तरह कैसे बात कर सकती थी । या इस डरावने और ख़तरनाक महल में आत्माओ के बीच अकेले रहने की हिम्मत कैसे कर सकती थी । लेकिन वो ये नहीं जानता था कि अपने परिवार के बग़ेर जिना मेरे मौत से कम नहीं था ।
मैंने हमारे बीच की खामोशी तोड़ते हुए, "ठिक है । हम इस बारें में कल आराम से बात करेंगे । अभी काफ़ी रात हो चूकी है ।" धीरे से कहा । और अपनी जगह से खड़े होते ही सारा सामान अपनी जगह पर रख दिया ।
मेरी बात सुनते ही, "बिल्कुल ।" चंद्र ने इतना कहकर मेरे सामने से अदृश्य हो गया ।
चंद्र के जाने कुछ मिनटों बाद होल की सभी लाइटे बुझाते ही मैं ऊपरवाले कमरे में सोने चली गई ।

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