भाग-14
(27.) देखो तो
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एकबार प्यार का रोग पालकर देख लो।
अंदर से खुद को खंगालकर देख लो।
आएंगे सदा तुम्हें अपने ही नजर हम,
बस एक नजर हमपर डालकर देख लो।
है सच ये कि मैं शय तो हूँ दोस्त,
एक बार जरा संभालकर देख लो।
आए हैं हम जहाँ में तुम्हारे लिए सनम,
बस तुम खुदी को निकालकर देख लो।
हजारों गीत लिख देंगे तुम्हारे पर,
तुम दिल पर डाका डालकर देख लो।
आकर आगौश में मेरे ऐ 'कश्यप',
खुद को मुझमें ढालकर देख लो।
-अरूण कश्यप
(28.) पहले थी जिंदगी
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पहले थी जिंदगी हमारी गमों की गली।
मौत लगती थी खामोश जिंदगी से भली।
जिनसे करते थे प्यार हम टूट-टूटकर,
तबियत उनकी निकलती थी बडी मनचली।
बहुत सिंचता था खून पसीने से महौब्बत को,
पर कभी ना मौहब्बत मेरी फूली - फली।
एक वहसी को इंसान बनाने हम लगे,
मगर टूटकर बिखर गई नन्ही - सी कली।
बेरहम बेवफा के इंतजार में क्यों,
ये जिदंगी हर बार तिल-तिल जली।
फर्क दोनों के जलने में बस इतना रहता था,
वो जलन से मरे वो पिघल कर जली।
-अरूण कश्यप
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